क्या दौसा में राजेश पायलट की विरासत जोड़ेगी गहलोत-पायलट के रास्ते?
राजस्थान की सियासत में एक बार फिर हलचल तेज है। 11 जून को पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. राजेश पायलट की 25वीं पुण्यतिथि के अवसर पर दौसा में होने वाला श्रद्धांजलि कार्यक्रम केवल एक भावनात्मक आयोजन नहीं,

राजस्थान की सियासत में एक बार फिर हलचल तेज है। 11 जून को पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. राजेश पायलट की 25वीं पुण्यतिथि के अवसर पर दौसा में होने वाला श्रद्धांजलि कार्यक्रम केवल एक भावनात्मक आयोजन नहीं, बल्कि राजस्थान कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति में संभावित सियासी मेल-मिलाप का मंच भी बन सकता है। इस मौके पर कांग्रेस के दो ध्रुव—पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट—एक साथ मंच साझा करेंगे, जिस पर पूरे प्रदेश की निगाहें टिकी हैं।
पिछले कई वर्षों से राजस्थान कांग्रेस दो खेमों में बंटी रही है—गहलोत और पायलट गुट। यह विभाजन कई बार सरकार के अस्तित्व तक को चुनौती देता नजर आया, खासकर 2020 में जब पायलट खेमे की बगावत ने पार्टी को संकट में डाल दिया था। लेकिन इस बार जो तस्वीर उभर रही है, वह बीते तनावों के उलट है। तीन दिन पहले खुद सचिन पायलट अशोक गहलोत के जयपुर स्थित आवास पर पहुंचे और उन्हें दौसा आने का न्योता दिया। गहलोत ने न केवल इस निमंत्रण को स्वीकार किया, बल्कि सोशल मीडिया पर एक भावनात्मक पोस्ट कर राजेश पायलट से अपने पुराने संबंधों को याद किया।
गहलोत ने लिखा, “1980 में हम दोनों साथ लोकसभा पहुंचे थे। उनका जाना पार्टी के लिए बड़ी क्षति थी।” गहलोत की इस पहल को राजनीतिक विश्लेषक सकारात्मक संकेत मान रहे हैं, खासकर ऐसे समय में जब पार्टी को आगामी चुनावों में एकजुटता की सख्त ज़रूरत है।
इस कार्यक्रम को लेकर पायलट गुट ने पिछले 15 दिनों से तैयारियों में कोई कसर नहीं छोड़ी है। कांग्रेस के विधायकों, जिलाध्यक्षों के साथ-साथ दिल्ली और उत्तर प्रदेश के कई बड़े नेताओं को न्योता दिया गया है। प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर रंधावा, कई सांसद, पूर्व मंत्री, और वरिष्ठ नेता कार्यक्रम में शामिल हो सकते हैं। इससे यह भी स्पष्ट है कि यह केवल एक पारिवारिक श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि कांग्रेस की ताकत और एकजुटता दिखाने का मंच बनने जा रहा है।
अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या यह मुलाकात राजस्थान कांग्रेस की दरार को भरने की शुरुआत होगी या फिर यह सिर्फ एक ‘सियासी प्रतीकवाद’ तक सिमटकर रह जाएगी? सियासी गलियारों में इसे एक “सीजफायर मूवमेंट” के तौर पर देखा जा रहा है—जहां फिलहाल कोई हमला नहीं होगा, लेकिन युद्ध पूरी तरह खत्म भी नहीं हुआ है।
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि इस कार्यक्रम से पार्टी आलाकमान को भी यह संदेश देने की कोशिश की जाएगी कि राजस्थान की कांग्रेस अब अंदरूनी झगड़ों को पीछे छोड़ आगे बढ़ने को तैयार है। हालांकि असल तस्वीर तब साफ होगी जब दौसा में पायलट समर्थक गहलोत की उपस्थिति पर किस तरह का स्वागत करते हैं, और मंच से दोनों नेता क्या संदेश देते हैं।
बहरहाल, 11 जून का दिन कांग्रेस की आंतरिक राजनीति के लिए निर्णायक भले न हो, लेकिन यह निश्चित रूप से एक ऐसा पड़ाव है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह दिन तय करेगा कि राजस्थान कांग्रेस दोबारा एकजुट होकर मिशन 2028 की तैयारी में जुटती है या फिर सियासी बर्फ कुछ पल को पिघलकर फिर से जमने लगती है।
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