राजस्थान की ब्यूरोक्रेसी में काम ज्यादा, अफसर कम: 50 IAS पर अतिरिक्त बोझ, 75 पद खाली... जानें वजह
राजस्थान में लंबे समय से आईएएस अधिकारियों के तबादलों की प्रतीक्षा खत्म नहीं हो रही है, और इसका सीधा असर प्रशासनिक कार्यों और योजनाओं की निगरानी पर पड़ रहा है।

राजस्थान में लंबे समय से आईएएस अधिकारियों के तबादलों की प्रतीक्षा खत्म नहीं हो रही है, और इसका सीधा असर प्रशासनिक कार्यों और योजनाओं की निगरानी पर पड़ रहा है। वर्तमान स्थिति यह है कि राज्य के 50 से अधिक आईएएस अधिकारियों के पास करीब 75 अतिरिक्त पदों की जिम्मेदारी है। यानी एक अधिकारी पर दो से तीन विभागों का अतिरिक्त कार्यभार है, जिससे प्रशासनिक दक्षता और योजनाओं की निगरानी कमजोर हो रही है।
तबादलों में देरी, जिम्मेदारियों का बोझ
तबादलों की सूची का इंतजार महीनों से चल रहा है, लेकिन सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। इसके चलते जिन विभागों को अलग-अलग अधिकारियों के जिम्मे होना चाहिए था, वे फिलहाल एक ही अधिकारी के भरोसे चल रहे हैं। यह हाल तब है जब कई विभाग सीधे जनता से जुड़े हैं और उनकी मॉनिटरिंग अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।
प्रशासनिक भ्रम और प्राथमिकता का संकट
कई अधिकारियों का कहना है कि वे इस उलझन में हैं कि मूल विभाग को प्राथमिकता दें या अतिरिक्त दिए गए कार्यों को। परिणामस्वरूप, दोनों ही कार्यों में अपेक्षित गुणवत्ता और गति नहीं आ पा रही है। इससे न केवल योजनाओं की मॉनिटरिंग प्रभावित हो रही है, बल्कि जनता को मिलने वाली सेवाओं की रफ्तार भी धीमी पड़ रही है।
पदोन्नति के बाद भी पुराने पद का कामकाज
राज्य में कुछ ऐसे अधिकारी भी हैं जो राजस्थान प्रशासनिक सेवा (RAS) से पदोन्नत होकर अब IAS बन चुके हैं, लेकिन उन्हें अभी भी उन्हीं पुराने पदों का कार्य देखने को कहा गया है। इससे न केवल पदोन्नति का उद्देश्य प्रभावित हो रहा है, बल्कि अधिकारियों के मनोबल पर भी असर पड़ता है।
कार्यालयों की दूरी बढ़ा रही प्रशासनिक खर्च और समय की बर्बादी
कई मामलों में अधिकारियों के अतिरिक्त कार्यभार के विभाग अलग-अलग स्थानों पर स्थित हैं। इससे न केवल अधिकारियों, बल्कि विभागीय कार्मिकों की भागदौड़ बढ़ गई है। कर्मचारियों को दिनभर फाइलें लेकर विभिन्न कार्यालयों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। इससे समय की बर्बादी हो रही है और सरकारी वाहनों के खर्च में भी अप्रत्याशित वृद्धि देखी गई है।
किसे मिला कौन सा अतिरिक्त प्रभार?
राज्य सरकार द्वारा जिन अधिकारियों को अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है, उनमें कई वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं:
शुभ्रा सिंह – अध्यक्ष, राजस्थान राज्य बस टर्मिनल विकास प्राधिकरण
अभय कुमार – आयुक्त, राजस्थान नदी बेसिन एवं जल संसाधन योजनाएं; एसीएस, कृषि कमांड एरिया डवलपमेंट व जल उपयोगिता विभाग; इंदिरा गांधी नहर परियोजना
अपर्णा अरोरा – अध्यक्ष, राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
कुलदीप रांका – अध्यक्ष, बाल अधिकार संरक्षण आयोग; एसीएस, बाल अधिकार विभाग
श्रेया गुहा – महानिदेशक, HCM-RIPA; एसीएस, प्रशिक्षण
आनंद कुमार – एसीएस, न्याय विभाग और सैनिक कल्याण विभाग
अजिताभ शर्मा – अध्यक्ष, रीको
आलोक गुप्ता – अध्यक्ष, राजस्थान अक्षय ऊर्जा निगम; प्रमुख सचिव, सूचना एवं जनसंपर्क
हेमंत कुमार गेरा – अध्यक्ष, रूडा; प्रशासक, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड अजमेर; संभागीय आयुक्त, अजमेर
वैभव गलरिया – अध्यक्ष, राजस्थान आवास बोर्ड; एमडी, जयपुर मेट्रो
डॉ. कृष्णकांत पाठक – सचिव, देवस्थान विभाग
डॉ. जोगाराम – सचिव एवं आयुक्त, पंचायतीराज; आवासीय आयुक्त, नई दिल्ली
इनके अलावा 37 अन्य आईएएस अधिकारी भी हैं, जिनके पास विभिन्न आयोग, बोर्ड और विभागों का अतिरिक्त प्रभार है।
राज्य में तबादलों में हो रही देरी और अधिकारियों पर बढ़ते अतिरिक्त प्रभार से स्पष्ट है कि प्रशासनिक तंत्र दबाव में है। यदि समय रहते स्थायी नियुक्तियां नहीं की गईं, तो इसका असर सरकारी कामकाज की गुणवत्ता और जनता को मिलने वाली सेवाओं पर और गहराता जाएगा। अब देखना यह होगा कि सरकार इस जमीनी समस्या पर कब तक संज्ञान लेती है और कब राहत की सूची सामने आती है।
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