पायलट राजवीर की तस्वीर से रोज़ बातें करती थी मां, 13वें दिन मां ने बेटे के ग़म में तोड़ा दम
जयपुर की शास्त्री नगर राणा कॉलोनी इस शनिवार सुबह मातम में डूब गई। घर के बाहर बैठे लोग अभी बेटे की तस्वीर को निहार ही रहे थे कि एक और हृदयविदारक खबर ने सबको झकझोर दिया—58 वर्षीय विजय लक्ष्मी चौहान, जो अपने बेटे पायलट लेफ्टिनेंट कर्नल (रिटायर्ड) राजवीर सिंह चौहान के ग़म में टूटी हुई थीं

जयपुर की शास्त्री नगर राणा कॉलोनी इस शनिवार सुबह मातम में डूब गई। घर के बाहर बैठे लोग अभी बेटे की तस्वीर को निहार ही रहे थे कि एक और हृदयविदारक खबर ने सबको झकझोर दिया—58 वर्षीय विजय लक्ष्मी चौहान, जो अपने बेटे पायलट लेफ्टिनेंट कर्नल (रिटायर्ड) राजवीर सिंह चौहान के ग़म में टूटी हुई थीं, उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।
राजवीर की मौत को अभी महज 13 दिन हुए थे। 15 जून को उत्तराखंड के केदारनाथ में हुए हेलिकॉप्टर क्रैश में राजवीर समेत 7 लोगों की जान चली गई थी। सेना से लेफ्टिनेंट कर्नल के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद वे एक प्राइवेट एविएशन कंपनी में हेलिकॉप्टर उड़ा रहे थे। राजवीर न सिर्फ एक जिम्मेदार पायलट थे, बल्कि एक समर्पित परिवारिक पुरुष भी। चार महीने पहले ही उनके घर जुड़वा बेटों की किलकारियां गूंजी थीं। लेकिन वक्त को कुछ और ही मंज़ूर था।
शनिवार सुबह जब कॉलोनी के लोग राजवीर की याद में आयोजित होने वाले सर्व समाज कार्यक्रम की तैयारी कर रहे थे, तभी विजय लक्ष्मी को सीने में तेज़ दर्द उठा। बेटा खोने के बाद वह मानसिक और भावनात्मक रूप से बेहद टूट चुकी थीं। पड़ोसियों और परिवार के लोगों ने तुरंत उन्हें कांवटिया अस्पताल पहुंचाया, लेकिन डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया।
यह महज एक मौत नहीं थी, ये एक मां का बेटे के वियोग में पिघलता हुआ दिल था। विजय लक्ष्मी शायद हर रोज़ बेटे की तस्वीर से बातें करती थीं। जिस बेटे की शहादत पर पूरा देश गर्व कर रहा था, वही शहादत इस मां के लिए बर्दाश्त से बाहर साबित हुई।
रविवार को शास्त्री नगर में लेफ्टिनेंट कर्नल राजवीर सिंह चौहान के सम्मान में सर्व समाज द्वारा एक विशेष कार्यक्रम रखा गया था। इसमें मां भारती के इस वीर सपूत के नाम पर नंदी बाबा मंदिर चौक और सड़क का नामकरण, तिरंगा यात्रा, सामूहिक श्रद्धांजलि सभा और हनुमान चालीसा का पाठ प्रस्तावित था। लेकिन अब यह श्रद्धांजलि एक नहीं, दो आत्माओं को समर्पित होगी—एक उस बेटे को जिसने देश के लिए जान दी, और दूसरी उस मां को जिसकी सांसें बेटे की याद में थम गईं।
राजवीर की पत्नी, जो अब जुड़वा बच्चों के साथ अकेली रह गई हैं, पर इस दुख का पहाड़ टूट पड़ा है। परिवार, पड़ोस और परिचित स्तब्ध हैं। एक ही घर में 13 दिनों के भीतर दो-दो शवों को देखना किसी के लिए भी असहनीय है। यह कहानी महज एक हादसे की नहीं, ममता, बलिदान और बिछड़ने के असहनीय दर्द की है।
शास्त्री नगर की राणा कॉलोनी अब भी इस गहरे शोक से उबर नहीं पाई है। हर आंख नम है और हर दिल राजवीर और उनकी मां को श्रद्धांजलि दे रहा है। शायद अब स्वर्ग में वो मां-बेटे फिर साथ होंगे—जैसे इस धरती पर भी कभी अलग नहीं हुए थे।
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