सजा माफ हुई तो फिर बन जाएंगे विधायक... कंवरलाल की दया याचिका पर बवाल, जूली बोले-ऐसा हुआ तो लोकतंत्र की हत्या होगी
राजस्थान की राजनीति में इन दिनों बारां जिले की अंता विधानसभा सीट फिर चर्चा में है। वजह हैं पूर्व विधायक कंवरलाल मीणा, जो एसडीएम पर पिस्टल तानने के मामले में तीन साल की सजा पाए हुए हैं और अब राजभवन से दया की गुहार लगा रहे हैं।

राजस्थान की राजनीति में इन दिनों बारां जिले की अंता विधानसभा सीट फिर चर्चा में है। वजह हैं पूर्व विधायक कंवरलाल मीणा, जो एसडीएम पर पिस्टल तानने के मामले में तीन साल की सजा पाए हुए हैं और अब राजभवन से दया की गुहार लगा रहे हैं। कंवरलाल की दया याचिका के जरिए न सिर्फ उनकी संभावित राजनीतिक वापसी की राह तलाशी जा रही है, बल्कि इस प्रक्रिया को लेकर विपक्ष ने लोकतंत्र पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं।
क्या है मामला?
बीजेपी के पूर्व विधायक कंवरलाल मीणा को एसडीएम के साथ मारपीट और पिस्टल तानने के मामले में तीन साल की सजा हुई थी। यह सजा पहले ट्रायल कोर्ट और फिर हाईकोर्ट से भी बरकरार रही। सुप्रीम कोर्ट से भी उन्हें कोई राहत नहीं मिली। इसके बाद 2024 में उन्होंने अकलेरा कोर्ट में सरेंडर किया और जेल भेज दिए गए। 23 मई को विधानसभा अध्यक्ष की अनुमति के बाद उनकी सदस्यता समाप्त कर दी गई और चुनाव आयोग को सीट रिक्त होने की सूचना भेज दी गई।
दया याचिका से बहाली की उम्मीद
अब कंवरलाल मीणा ने अपनी सजा माफ करने के लिए राज्यपाल के समक्ष दया याचिका लगाई है। अगर यह याचिका मंजूर होती है और सजा माफ या कम होती है, तो उनकी सदस्यता बहाल हो सकती है। इसकी वजह यह है कि चुनाव आयोग ने अभी तक अंता सीट पर उपचुनाव की घोषणा नहीं की है। ऐसे में कानूनी जानकारों का कहना है कि जब तक उपचुनाव की अधिसूचना जारी नहीं होती, तब तक सजा में राहत मिलने पर बहाली संभव है।
जूली बोले- लोकतंत्र की हत्या
नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने इस पूरी प्रक्रिया पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि सरकार और राजभवन मिलकर लोकतंत्र की हत्या करने का काम कर रहे हैं। जूली का आरोप है कि भाजपा अपनी सत्ता और राजनीतिक पहुंच का इस्तेमाल कर लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों से खिलवाड़ कर रही है।
उनका यह बयान सीधे राज्यपाल की संवैधानिक भूमिका पर सवाल उठाने जैसा है। जूली ने यह भी कहा कि जिस व्यक्ति को अदालत दोषी मान चुकी है, उसे फिर से विधानसभा भेजने की कोशिशें जनता की भावना और संविधान दोनों के खिलाफ हैं।
राजभवन से रिपोर्ट तलब, पुलिस जुटी तैयारी में
राजभवन ने दया याचिका पर कार्रवाई शुरू कर दी है और झालावाड़ एसपी को अकलेरा थाने से संबंधित रिपोर्ट भेजने को कहा गया है। 20 जून और 24 जून को इसके लिए पत्र भेजे गए, और 26 जून को रिमाइंडर जारी कर तत्काल जवाब मांगा गया। यह तेजी राजनीतिक हलकों में कई सवाल खड़े कर रही है।
क्यों लिया दया याचिका का रास्ता?
सूत्रों के अनुसार सुप्रीम कोर्ट में गर्मी की छुट्टियों के चलते रूटीन सुनवाई फिलहाल नहीं हो रही है और जुलाई के मध्य से ही मामलों की सुनवाई की संभावना है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट से सजा में राहत मिलना भी निश्चित नहीं है। ऐसे में दया याचिका को ‘तुरंत राहत’ का जरिया माना जा रहा है।
न्याय और राजनीति के बीच खड़ा मामला
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या एक सजा प्राप्त व्यक्ति को संविधान के प्रावधानों के तहत राजनीतिक बहाली का अधिकार मिल सकता है? क्या राज्यपाल का फैसला राजनीति से प्रेरित माना जाएगा या एक संवैधानिक अधिकार?
विपक्ष जहां इसे लोकतंत्र के लिए खतरा मान रहा है, वहीं बीजेपी खेमे में इसे कानूनी अधिकार बताकर बचाव की तैयारी है।
कंवरलाल मीणा की दया याचिका सिर्फ एक कानूनी मामला नहीं है, यह एक राजनीतिक लिटमस टेस्ट बन चुका है – जिसमें संविधान, अदालत, राजभवन और राजनीतिक दल सभी अपनी भूमिका निभा रहे हैं। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या दया याचिका उन्हें राजनीति में वापसी का रास्ता दे पाएगी।
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