मंच सज चुका था, गहलोत पहुंच चुके थे… लेकिन सरकार की विज्ञप्ति ने कर दी बिसात उलट, जानें क्या है मामला
राजस्थान की राजनीति एक बार फिर ‘उद्घाटन पॉलिटिक्स’ के रंग में रंगी नजर आई। इस बार सियासी रंगमंच बना जोधपुर और केंद्र में रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत।

राजस्थान की राजनीति एक बार फिर ‘उद्घाटन पॉलिटिक्स’ के रंग में रंगी नजर आई। इस बार सियासी रंगमंच बना जोधपुर और केंद्र में रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत। कहानी एक स्कूल भवन के लोकार्पण से शुरू हुई, लेकिन जैसे-जैसे सियासी पर्दा उठा, सामने आया सत्ता और पूर्व सत्ता के बीच गहराता द्वंद्व—जिसका मंच सरदारपुरा और किरदार गहलोत के साथ राज्य की मौजूदा भाजपा सरकार बनी।
गहलोत 27 जून को अपने विधानसभा क्षेत्र सरदारपुरा के पहाड़गंज इलाके में 1.64 करोड़ की लागत से बने सरकारी स्कूल भवन का उद्घाटन करने वाले थे। यह वही स्कूल है जो पहले एक मंदिर में संचालित होता था। स्थानीय अभिभावकों और जनप्रतिनिधियों की वर्षों पुरानी मांग पर 2022 में मुख्यमंत्री रहते गहलोत ने इस भवन को स्वीकृति दी थी। अब भवन तैयार है, लेकिन जब पूर्व मुख्यमंत्री बतौर विधायक उद्घाटन करने पहुंचे, तो सत्ता पक्ष की सियासत ने मंच ही खींच लिया।
दरअसल, गहलोत के जोधपुर पहुंचने से कुछ घंटे पहले ही राज्य सरकार की ओर से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई, जिसमें कहा गया कि स्कूल का उद्घाटन अब शिक्षा मंत्री मदन दिलावर करेंगे और इसकी तारीख बाद में घोषित होगी। यहीं से पूरे घटनाक्रम ने राजनीतिक रंग लेना शुरू किया। गहलोत समर्थकों का आरोप है कि भाजपा सरकार उनकी विकास योजनाओं का श्रेय खुद लेना चाहती है और इसलिए सियासी दांव चला गया।
गहलोत ने इस मसले पर मीडिया से बातचीत में दो टूक कहा, “हमें जबरदस्ती उद्घाटन नहीं करना है, हमने तो प्रोग्राम ही कैंसिल कर दिया है। मैं एमएलए हूं, इसका मतलब ये नहीं कि मैं अधिकार लेकर आऊं। ये सरकार की सोच है। उनके लोग होते तो शायद लड़ लेते, लेकिन हम ऐसा नहीं करते।”
इस बयान से साफ हो गया कि गहलोत सियासी टकराव से खुद को अलग रखना चाहते हैं, लेकिन सत्ता पक्ष ने इस पूरे मामले को जिस तरह से संभाला, उसने उन्हें एक ‘बेबस विधायक’ की स्थिति में खड़ा कर दिया है।
अब मसला सिर्फ उद्घाटन का नहीं रहा। शिक्षा विभाग ने स्कूल की प्रिंसिपल प्रज्ञा त्रिवेदी और सीबीईओ सिटी मूलसिंह चौहान को कारण बताओ नोटिस थमा दिया है कि गहलोत के कार्यक्रम की अनुमति किस आधार पर दी गई? दिलचस्प बात ये कि प्रिंसिपल हरिद्वार जाने की छुट्टी पर थीं, लेकिन अब उस छुट्टी को भी सियासी मोड़ देकर निशाने पर लिया जा रहा है।
सूत्रों के मुताबिक, प्रिंसिपल ने 25 से 28 जून तक हरिद्वार जाने की अनुमति 24 जून को मांगी थी—एक सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया—लेकिन अब यही 'छुट्टी' सरकार को असुविधाजनक लग रही है। सवाल ये है कि क्या एक पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान विधायक को अपने क्षेत्र में बने विकास कार्य का निरीक्षण करने से रोकना लोकतांत्रिक मर्यादाओं के अनुकूल है?
विपक्ष का आरोप है कि यह केवल एक स्कूल भवन का मामला नहीं, बल्कि गहलोत के कार्यकाल में किए गए कामों को दबाने और भाजपा के नाम पर श्रेय लेने की रणनीति है। वहीं, सरकार इसे ‘नियमों का उल्लंघन’ कहकर तूल दे रही है।
सियासत का पाठ अब स्कूलों में भी पढ़ाया जा रहा है। सिर्फ बच्चे नहीं, अब भवन भी राजनीतिक पोस्टर बनते जा रहे हैं। जोधपुर की यह घटना इस बात का प्रमाण है कि राजस्थान में सत्ता बदलने के साथ-साथ विकास कार्यों का स्वरूप नहीं, बल्कि उसका ‘लोकार्पणकर्ता’ भी सियासी टकराव का कारण बन सकता है।
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