कोटा से उठे सियासी सुर—धारिवाल बनाम त्यागी: कांग्रेस में नेतृत्व पर उठे सवाल, अंदरूनी कलह आई सतह पर
राजस्थान की राजनीति में कोटा एक समय तक कांग्रेस का अभेद्य गढ़ माना जाता था। पूर्व मंत्री शांति धारिवाल की मजबूत पकड़ और दशकों पुराना राजनीतिक अनुभव यहां पार्टी की सफलता की गारंटी माने जाते थे।

राजस्थान की राजनीति में कोटा एक समय तक कांग्रेस का अभेद्य गढ़ माना जाता था। पूर्व मंत्री शांति धारिवाल की मजबूत पकड़ और दशकों पुराना राजनीतिक अनुभव यहां पार्टी की सफलता की गारंटी माने जाते थे। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस को कोटा में हार का सामना करना पड़ा, तब से ही यह सवाल उठने लगे कि क्या यह हार महज़ एक चुनावी चूक थी या फिर भीतर ही भीतर कोई बड़ी समस्या पनप रही थी?
अब यही असंतोष खुलकर सतह पर आ गया है। कांग्रेस के कोटा जिला अध्यक्ष रवि त्यागी का हालिया बयान पार्टी में तूफान ला चुका है। एक सार्वजनिक सभा में त्यागी ने सीधे तौर पर पार्टी नेतृत्व और चुनावी रणनीति पर सवाल उठाते हुए कहा कि "हमने तो जीत की पूरी बाज़ी खेली थी, लेकिन नेतृत्व की कमजोरी से हम पीछे रह गए।" यह बयान न सिर्फ वायरल हो गया, बल्कि कांग्रेस की अंदरूनी साख पर भी सवाल खड़े कर गया।
नेतृत्व बनाम कार्यकर्ता: टकराव की शुरुआत
रवि त्यागी का दावा है कि चुनाव से पहले ही उन्होंने तमाम ज़मीनी मुद्दों को पार्टी की बैठकों में रखा था। कार्यकर्ताओं ने मेहनत की, गली-गली प्रचार किया, लेकिन शीर्ष स्तर पर समय रहते फैसले नहीं लिए गए। उनका यह कहना कि "90% लोग मेहनत कर रहे थे, लेकिन 10% नेतृत्व ने दिशा नहीं दी," कांग्रेस के संगठनात्मक ढांचे पर सीधा प्रहार है।
त्यागी का यह बयान रिकॉर्ड होकर सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ और अब कांग्रेस आलाकमान की नजर इस मसले पर टिक गई है।
शांति धारिवाल का जवाब: पुराने वीडियो की दलील
इस विवाद में नाम आने के बाद पूर्व मंत्री शांति धारिवाल ने इसे महज़ एक ‘पुराना वीडियो’ बताकर खारिज करने की कोशिश की। उन्होंने कहा,
“अब कोई भी कुछ भी आरोप लगाता रहे। यह पुराना वीडियो है जिसे अब कोई वायरल कर रहा है। हम सबने मिलकर मेहनत की थी।”
हालांकि उनके लहजे से साफ है कि वे इस बयान को हल्के में नहीं ले रहे। धारिवाल ने यह भी संकेत दिया कि पार्टी संगठन के भीतर इस मामले पर अनुशासनात्मक चर्चा की जा सकती है।
राजनीतिक नफा-नुकसान: एक बयान के कई मायने
यह विवाद सिर्फ दो नेताओं के बीच की तकरार नहीं है, बल्कि यह कांग्रेस के भीतर नेतृत्व संकट और संवादहीनता की ओर इशारा करता है।
पार्टी अनुशासन पर असर: त्यागी के बयान को पार्टी हाईकमान अनुशासनहीनता मानकर उनके खिलाफ कार्रवाई कर सकता है। इससे स्थानीय इकाइयों में और असंतोष फैल सकता है।
कार्यकर्ताओं में भ्रम: आम कार्यकर्ता इस बात को लेकर दुविधा में हैं कि वे किसके नेतृत्व में काम करें – संगठनात्मक चेहरा या चुनावी रणनीतिकार?
विपक्ष को मौका: भाजपा और अन्य दल कांग्रेस की इस आंतरिक कलह को मुद्दा बनाकर उसकी एकता और निर्णय क्षमता पर सवाल उठा सकते हैं।
निकाय चुनाव पर असर: आने वाले स्थानीय चुनावों में यह विवाद कांग्रेस की स्थिति को कमजोर कर सकता है। विरोधी दल इस मौके को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
अंदरूनी संवादहीनता की पोल
कोटा में जन्मे इस विवाद ने यह साफ कर दिया है कि कांग्रेस में सिर्फ चुनावी रणनीति ही नहीं, बल्कि नेतृत्व के बीच संवाद की गंभीर कमी है। रवि त्यागी जैसे ज़मीनी नेता और शांति धारिवाल जैसे वरिष्ठ रणनीतिकार के बीच तालमेल की कमी पार्टी की साख को नुकसान पहुंचा रही है।
अगर कांग्रेस इस विवाद को जल्द नहीं सुलझाती और संगठनात्मक संवाद को मज़बूत नहीं करती, तो यह कलह अन्य जिलों में भी असर डाल सकती है और पार्टी की एकता को और अधिक नुकसान पहुंचा सकती है।
राजस्थान कांग्रेस के लिए यह समय आत्ममंथन का है। कोटा की हार के पीछे ज़मीनी हकीकत और नेतृत्व की असफलता – दोनों पहलुओं को गंभीरता से समझना जरूरी है। वरना कोटा में जो हुआ, वह कल जयपुर या जोधपुर में भी दोहराया जा सकता है।
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