सवाल का जवाब देते हुए प्रेमानंद महाराज ने कहा कि भजन की पहली सीढ़ी है संत महात्मा पुरुषों का संग करो। दूसरी सीढ़ी भगवान की लीलाएं और चरित्र को खूब सुनो।
महाराज जी कहते हैं कि इसके बाद सदगुरु का वरण करो और मान रहित होकर सद गुरुदेव की सेवा करो। महाराज जी कहते हैं कि चौथी भक्ति है कपट का त्याग करके भगवान की लीला चरित्रों का गायन करो।
उन्होंने कहा कि पांचवीं सीढ़ी है- जो गुरुदेव ने मंत्र दिया, उसका जाप करो। वो कहते हैं कि मंत्र जाप मम दृढ़ विश्वासा, पंचम भगत सुवेद प्रकाशा।
महाराज जी ने कहा कि दृढ़ विश्वास करके भगवान के मंत्र का जाप करें। प्रपंच के कर्मों का त्याग करके धर्म के कर्मों को करते हुए खूब नाम जप और मंत्र जप करते हुए जो सज्जन पुरुष आचरण करते हैं। उन आचरणों को करें।
महाराज जी कहते हैं कि सातवां साधन है सब में भगवान को देखना और संतों को भगवान से अधिक मानना। दूसरे को दोष दर्शन देखना, दूसरों की निंदा करना, ये सब छोड़ दें।
महाराज जी कहते हैं नवम है सरल स्वभाव रहे। धैर्य, गंभीर स्वभाव वाला दृढ़ भगवान का भरोसा हो। भगवत की प्राप्ति हो जाएगी। प्रथम शुरुआत होती है संत से।