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नसबंदी की जुनूनी सनक, बच्चे-बूढ़ों को भी नहीं बख्शा; दिल्ली में आज भी जिंदा है आपातकाल की दहशत

आपातकाल के 50 साल पूरे हो गए हैं। लेकिन अभी भी दिल्ली की गलियों में उन काले दिनों की गूंजे सुनाई देती हैं। कभी यहां तुर्कमान गेट इलाके में लोगों की जबरन नसबंदी की गई थी।

Anubhav Shakya लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीWed, 25 June 2025 11:42 AM
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नसबंदी की जुनूनी सनक, बच्चे-बूढ़ों को भी नहीं बख्शा; दिल्ली में आज भी जिंदा है आपातकाल की दहशत

84 साल के अब्दुल रज्जाक के लिए आज भी हथौड़े की चोट, बारात का शोर या कंट्र्क्शन का शोर दहशत की वजह बन जाता है। उनका परिवार उन्हें तुरंत दिलासा देता है कि आपातकाल को 50 साल हो चुके हैं, अब कोई नसबंदी के लिए नहीं आएगा। लेकिन पुरानी दिल्ली के तुर्कमान गेट की गलियों में बसी उन भयावह यादों को भूलना आसान नहीं।

तुर्कमान गेट में दहशत का आलम

जून 1975 में आपातकाल लागू होने के बाद तुर्कमान गेट की तंग गलियां खौफ से कांप उठी थीं। संजय गांधी के जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम के तहत सरकार ने इस इलाके को नसबंदी अभियान का केंद्र बनाया। डिस्पेंसरी, स्कूल और नगर निगम के हॉल तक में नसबंदी कैंप लगाए गए। गरीबों को पहले खाने और छत का लालच देकर, फिर जबरदस्ती इन कैंपों में लाया गया। चांदनी चौक के पास फर्नीचर बेचने वाले रज्जाक बताते हैं कि पहले गरीबों को लालच दिया गया। रिक्शा चालकों को कुछ लीटर घी या मकान का वादा कर लाया जाता था। उनके पास खोने को कुछ था ही नहीं। जैसे-जैसे तुर्कमान गेट, जामा मस्जिद, दूजाना हाउस और चितली कब्र के आसपास कैंप बढ़े, वैसे-वैसे जबरन नसबंदी का डर गहराता गया।

नसबंदी के लिए ऐसे करते थे टारगेट

रज्जाक बताते हैं कि सरकारी कर्मचारी और एजेंट बार-बार उनसे संपर्क करते थे। एक बार तो स्थानीय मस्जिद के पास उन्हें पकड़ने की कोशिश हुई, लेकिन वे भाग निकले। उन्होंने कहा, “हर वक्त डर था कि कहीं पकड़ न लें और नसबंदी करवा दें। हम घर से बाहर निकलना ही छोड़ देते थे। एजेंट को निश्चित संख्या में लोगों को कैंप में लाने का टारगेट था, जिसके लिए उन्हें पैसे मिलते थे।

नसबंदी की जुनूनी सनक

आपातकाल के दौरान सरकार के 20-सूत्री कार्यक्रम में नसबंदी एक प्रमुख हिस्सा थी। 1970-80 के दशक में जनसंख्या नियंत्रण राष्ट्रीय जुनून बन चुका था। संजय गांधी ने देश भर में दौरा कर मुख्यमंत्रियों को नसबंदी के टारगेट पूरे करने को कहा। नतीजा? निचले स्तर के अधिकारियों पर दबाव बढ़ा। ट्रक ड्राइवरों के लाइसेंस, झुग्गीवासियों के पुनर्वास भूखंड, और सरकारी कर्मचारियों की बकाया राशि तक नसबंदी सर्टिफिकेट से जोड़ दी गई।

मारिका विक्ज़ियानी की किताब कुरिशियल इन अ सॉफ्ट स्टेट के अनुसार, 1975-77 के बीच भारत में लगभग 1.1 करोड़ लोगों की नसबंदी और 10 लाख महिलाओं को आईयूडी लगाया गया। बाद में पता चला कि जन्मदर पहले ही कम हो रही थी, और इस जबरदस्ती ने उल्टा नुकसान किया क्योंकि लोगों का सरकारी योजनाओं पर भरोसा टूट गया।

'घर टूटने का डर और नसबंदी का खौफ'

75 साल के रघुनाथ सिंह बताते हैं, एक तरफ घर तोड़े जाने का डर, तो दूसरी तरफ नसबंदी का। न घर में चैन, न बाहर सुकून।' तुर्कमान गेट में ही एक नसबंदी कैंप था, जहां गरीबों को एक लीटर घी के लिए लालच दिया जाता था। 70 साल के धरम दास, जो रघुनाथ से कुछ सौ मीटर दूर रहते हैं, कहते हैं, 'एजेंट घर-घर जाकर लोगों को धमकाते थे। डिलाइट सिनेमा के बाहर भी एक कैंप था।'

स्कूल टीचर से पुलिस तक, सबको दिए टारगेट

शहर के इतिहासकार सोहैल हाशमी बताते हैं कि पुलिस और स्कूल शिक्षकों तक को नसबंदी के लिए टारगेट दिए गए। उन्होंने कहा कि मेरी मां एक स्कूल की हेड मास्टर थीं। उन्हें दो लोगों की नसबंदी करवाने का टारगेट मिला था। उन्होंने बताया कि AIIMS के बाहर एजेंट पैसे लेकर नसबंदी सर्टिफिकेट दे देते थे।

दूजाना हाउस: बेसमेंट में नसबंदी कैंप

दूजाना हाउस में डीडीए फ्लैट्स के एक बेसमेंट में दो डॉक्टरों ने टेंट लगाकर नसबंदी कैंप बनाया था। 48 साल के मोहम्मद अफाक बताते हैं कि उनके चाचा रज्जो, जो एक जनरल स्टोर चलाते थे, स्थानीय नेताओं के साथ मिलकर लोगों को नसबंदी के लिए मजबूर करते थे। वो ऑटो-रिक्शा चालकों, कचरा बीनने वालों और मजदूरों को टारगेट करते थे। नसबंदी के बाद दंगे भड़क गए थे। 52 साल के रईसुद्दीन बताते हैं कि दूजाना हाउस का वह बेसमेंट बाद में डिस्पेंसरी, फिर स्कूल बना, और अब खाली पड़ा है।

महिलाएं को भी नहीं बख्शा

76 साल की रजिया कुरैशी कहती हैं कि चावड़ी बाजार में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं को भी नसबंदी के लिए मजबूर किया गया। उन्होंने कहा कि जिन महिलाओं के बच्चे हो चुके थे, उन्हें टारगेट किया जाता था। कुछ महिलाएं अपने परिवार के पुरुषों की जगह नसबंदी करवाने चली जाती थीं।

दिल्ली से बाहर भी अत्याचार

हरियाणा के भिवानी में 86 साल के रिटायर्ड टीचर धरम सिंह बताते हैं कि गांवों में लाउडस्पीकर से 18 साल से ऊपर के पुरुषों को स्कूल या चौपाल में बुलाया जाता था। नसबंदी अनिवार्य थी। 16-17 साल के लड़कों को भी नहीं बख्शा गया। पुलिस और अधिकारी बसों में भरकर लोगों को अस्पताल ले जाते थे। 1976-77 में हरियाणा में 2.22 लाख लोगों की नसबंदी हुई।

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