एनएसए के तहत एहतियाती हिरासत में रखना गलत: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश में राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत एहतियाती हिरासत में लिए गए विधि छात्र अन्नू को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि हिरासत के कारण एनएसए की धारा की...

नई दिल्ली, एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश में राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत प्राथमिकी दर्ज किए जाने के बाद एहतियाती हिरासत में लिए गए एक विधि छात्र को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि यह पूरी तरह गलत है। न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने मध्यप्रदेश के बैतूल के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा 11 जुलाई, 2024 को पारित हिरासत आदेश में त्रुटि पाई। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह इस मामले में विस्तृत और तर्कसंगत आदेश पारित करेगी। बैतूल में एक विश्वविद्यालय परिसर में हुए विवाद के बाद पुलिस ने अन्नू उर्फ अनिकेत पर मामला दर्ज किया था।
याचिकाकर्ता अन्नू की कथित तौर पर प्रोफेसर से झड़प हुई थी। अन्नू के खिलाफ हत्या के प्रयास और अन्य संबंधित अपराधों को लेकर प्राथमिकी दर्ज की गई थी। जेल में जब अन्नू था तब उसके खिलाफ एनएसए के प्रावधानों के तहत हिरासत आदेश जारी किया गया था। बाद में इस आदेश की पुष्टि की गई और तब से हर तीन महीने में इसे बढ़ाया जाता रहा है। अब तक चार बार बढ़ाया गया। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने 25 फरवरी को अन्नू के पिता की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज कर दी थी। शीर्ष अदालत की पीठ ने शुक्रवार को अपने आदेश में कहा, 11 जुलाई, 2024 के पहले हिरासत आदेश के अवलोकन के बाद हमने पाया है कि अपीलकर्ता को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 की धारा तीन (दो) के तहत एहतियाती हिरासत में लिया गया है। हालांकि, हमारा मानना है कि जिन कारणों से उसे एहतियाती हिरासत में लिया गया है, वे राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 की धारा तीन की उपधारा (दो) की जरूरतों को पूरा नहीं करते हैं। पीठ ने कहा कि एहतियाती हिरासत अन्य आधारों पर भी अस्वीकार्य है, जैसे कि अपीलकर्ता (विधि छात्र) के आवेदन को राज्य सरकार के पास न भेजकर जिलाधिकारी ने स्वयं निर्णय ले लिया। साथ ही अन्य आपराधिक मामलों में अपीलकर्ता की हिरासत के तथ्य को भी ध्यान में नहीं रखा गया। इसपर भी विचार नहीं किया गया कि नियमित आपराधिक कार्यवाही में निरुद्ध होने के बावजूद उसे एहतियाती हिरासत में क्यों रखा जाना जरूरी था। पीठ ने कहा, इस प्रकार, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए हम निर्देश देते हैं कि फिलहाल भोपाल की केंद्रीय जेल में बंद अपीलकर्ता को किसी अन्य आपराधिक मामले में जरूरी न होने पर हिरासत से तुरंत रिहा किया जाए। उपरोक्त के मद्देनजर, आपराधिक अपील का निपटारा किया जाता है। बाद में तर्कसंगत आदेश जारी जाएगा।
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