भगवान ही जाने तकनीकी कारणों से कितने लोग यूपी की जेलों में सड़ रहे होंगे- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि तकनीकी कारणों से कितने लोग जेलों में सड़ रहे हैं। कोर्ट ने जबरन धर्मांतरण मामले में आरोपी की रिहाई में देरी की न्यायिक जांच का आदेश दिया...

नई दिल्ली। विशेष संवाददाता सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उत्तर प्रदेश सरकार की खिंचाई करते हुए कहा कि ‘भगवान जाने कितने लोग तकनीकी कारणों से आपकी जेलों में सड़ रहे हैं। शीर्ष अदालत ने जबरन धर्मांतरण के मामले में जमानत के आदेश में खामी बताकर आरोपी को गाजियाबाद के जेल रिहा करने से इनकार किए जाने के मामले की जांच का आदेश देते हुए यह टिप्पणी की है। जस्टिस केवी विश्वनाथन और एन कोटिश्वर सिंह की अवकाशकालीन पीठ ने गाजियाबाद के मौजूदा जिला जज द्वारा मामले की न्यायिक जांच का आदेश दिया और कहा कि यह जांच इस बात पर केंद्रित होगा कि याचिकाकर्ता आफताब की रिहाई में देरी क्यों हुई और क्या कुछ भयावह चल रहा था? इसके साथ ही, जमानत मिलने के बाद भी आरोपी को जेल में रखने के लिए शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार से आरोपी को 5 लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा देने का भी आदेश दिया है।
शीर्ष अदालत ने आरोपी के रिहाई के आदेश जारी होने के 28 दिन बाद रिहा किए जाने के लिए मुआवजा देने का आदेश दिया है। इस मामले की सुनवाई शुरू होने पर, उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता (एएजी) गरिमा प्रसाद ने शीर्ष अदालत को बताया कि आरोपी को 24 जून को रिहा कर दिया गया। साथ ही कहा कि रिहाई में देरी क्यों हुई, इसकी जांच डीआईजी मेरठ को सौंपी गई है ताकि पता चल सके कि रिहा किए जाने में इतनी देरी क्यों हुई? इस पर जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि ‘आरोपी को जमानत देने का स्पष्ट आदेश था, बावजूद उसे रिहा नहीं किया गया और उसे (आरोपी) को संशोधन की मांग को लेकर दोबारा से अदालत का रूख करना पड़ा। जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि ‘भगवान ही जाने आपके (यूपी) जेलों में तकनीकी कारणों से ऐसे कितने लोग सड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को रिहा करने के लिए वैध आदेश दिया है, तो उसे कैसे छीना जा सकता है। उन्होंने कहा कि हम इस मामले को ऐसे नहीं जाने देंगे, राज्य में बहुत सारी जेलें हैं, इसकी जांच जरूरी है। शीर्ष अदालत ने कहा कि ‘यदि हमारे आदेश के बाद भी आप लोगों को सलाखों के पीछे रखते हैं तो हम क्या संदेश दे रहे हैं? इसके साथ ही पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार के उस आग्रह को ठुकरा दिया, जिसमें कहा गया है कि मामले की जांच डीआईजी मेरठ कर रही है। पीठ ने कहा कि मामले की न्यायिक जांच जरूरी है। शीर्ष अदालत ने न्यायिक जांच के आदेश देने के साथ ही, राज्य सरकार से आरोपी को 5 लाख रुपये अंतरिम मुआवजा देने को कहा है। पीठ ने यह साफ कहा है कि यदि इस मामले में कोई अधिकारी दोषी पाया जाता है तो यह अदालत उसकी व्यक्तिगत दायित्व मानकर जुर्माना लगाएंगे। पीठ ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि देरी से रिहाई में अधिकारी की भूमिका मिली तो जुर्माने की भुगतान उक्त अधिकारी को ही करना होगा। साथ ही कहा कि मुआवजे की रकम हम 10 लाख रुपये भी कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में मंगलवार को उत्तर प्रदेश के जेल महानिदेशक को वीडियो कंफ्रेंसिंग के जरिए और गाजियाबाद जिला जेल के अधीक्षक को निजी रूप से पेश होकर यह बताने के लिए कहा था कि उसके आदेश के बाद रिहाई में देरी क्यों हुई। राज्य के जेल महानिदेशक और गाजियाबाद के जेल अधीक्षक सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद जेल प्रशासन ने मंगलवार को ही, आरोपी आफताब को जेल से रिहा कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि आरोपी को रिहा किए जाने से साफ पता चलता है कि आदेश स्पष्ट था और इसमें किसी भी तरह की स्पष्टीकरण की जरूरत नहीं थी। यह है मामला उत्तर प्रदेश में जबरन धर्मांतरण रोकने के लिए बनाए गए कानून के उल्लंघन के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को 29 अप्रैल को जमानत दे दी थी। इसके बाद गाजियाबाद की जिला अदालत ने 27 मई को जेल अधीक्षक को एक रिहाई आदेश जारी करते हुए, मुचलका जमा करने पर जेल से रिहा करने का आदेश दिया था। लेकिन जेल प्रशासन ने आरोपी को रिहा करने से इनकार कर दिया। जेल प्रशासन ने यह कहते हुए रिहा करने से इनकार कर दिया था कि जमानत के आदेश में, उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 की धारा 5 के खंड (1) को जिक्र नहीं किया गया था। इसके बाद आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर 29 अप्रैल के आदेश में संशोधन की मांग की थी ताकि 2021 अधिनियम की धारा 5 के खंड (1) को विशेष रूप से शामिल किया जा सके।
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