यौन उत्पीड़न की शिकार नाबालिग ने मांगी गर्भपात की अनुमति, दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया यह जवाब
जस्टिस जैन ने यह भी निर्देश दिया कि ऐसी रिपोर्ट 30 जून को या उससे पहले एक सीलबंद लिफाफे में इस न्यायालय को भी भेजी जाए, या संबंधित मेडिकल बोर्ड द्वारा मामले के जांच अधिकारी को इस रिपोर्ट को सीलबंद लिफाफे में दिया जाए।

दिल्ली हाई कोर्ट ने एम्स (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान) में गठित एक मेडिकल बोर्ड को उस नाबालिग लड़की की जांच करने का निर्देश दिया है, जिसने कोर्ट से गर्भपात कराने की अनुमति मांगने को लेकर अपील दायर की है। यह नाबालिग यौन उत्पीड़न होने की वजह से गर्भवती हो गई थी, और अब वह अपने 26 सप्ताह के गर्भ को गिराने की अनुमति मांग रही है। उसने अपनी मां के माध्यम से उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। याचिकाकर्ता के वकील अन्वेष मधुकर ने कहा कि याचिकाकर्ता गर्भावस्था को जारी रखने के लिए इच्छुक नहीं है, तथा उसकी मां ने भी यही भावना व्यक्त की है, जो सुनवाई के दौरान मौजूद थी।
मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस मनोज जैन ने मेडिकल बोर्ड को नाबालिग की जांच करने और रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया। जस्टिस जैन ने 27 जून को पारित अपने आदेश में कहा, 'बताई गई तात्कालिकता को ध्यान में रखते हुए, एम्स के मेडिकल बोर्ड को जरूरी मेडिकल जांच करने और अपेक्षित रिपोर्ट देने का निर्देश दिया जाता है।'
इसके साथ ही जस्टिस जैन ने यह भी निर्देश दिया कि ऐसी रिपोर्ट 30.06.2025 को या उससे पहले एक सीलबंद लिफाफे में इस न्यायालय को भी भेजी जाए, या संबंधित मेडिकल बोर्ड द्वारा मामले के जांच अधिकारी को इस रिपोर्ट को सीलबंद लिफाफे में लेने की अनुमति दी जाएगी।
मामले की अगली सुनवाई 30 जून को होगी। न्यायालय ने इस तथ्य पर गौर किया कि याचिकाकर्ता इस अनचाहे गर्भ से छुटकारा पाना चाहती है, और इसी वजह से उसने प्रार्थना की है कि चिकित्सा गर्भपात अधिनियम, 1971 के अनुसार मेडिकल टर्मिनेशन पर राय देने के लिए एक मेडिकल बोर्ड का गठन किया जाए। इसी कड़ी में उसने उसे चिकिसकीय गर्भपात के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया।
याचिकाकर्ता की तरफ से यह भी कहा गया है कि चूंकि गर्भावस्था यौन उत्पीड़न का प्रत्यक्ष परिणाम है, इसलिए इस तरह की गर्भावस्था के कारण होने वाली पीड़ा को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 की धारा 3(2)(बी) के स्पष्टीकरण II के अनुसार नाबालिग पीड़िता के मानसिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर चोट के रूप में माना जाना चाहिए। जिसके बाद स्थायी वकील संजय लैप ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा किए गए अनुरोध के आधार पर, एम्स ने पहले ही एक मेडिकल बोर्ड का गठन कर दिया है।