अधिकारी सोते रहते हैं और अचानक उठकर:बुलडोजर ऐक्शन पर भड़का दिल्ली हाई कोर्ट
दिल्ली हाई कोर्ट ने ध्वस्तीकरण पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि हमें यह देखने की ज़रूरत है कि अधिकारी क्यों सोते रहते हैं जब लोग ढांचे बनाते रहते हैं और एक दिन उठकर उन्हें गिराने का फैसला कर लेते हैं। हमें न्याय सुनिश्चित करने की जरूरत है।

दिल्ली हाई कोर्ट ने देश की राजधानी में हो रहे ताबड़तोड़ बुलडोजर ऐक्शन पर गुस्सा जाहिर किया। कोर्ट ने कहा कि अधिकारी सोते रहते हैं और एक दिन अचानक उठकर घर गिराने लगते हैं। अदालत ने कहा कि यह देखने की जरूरत है कि जब लोग घर बना रहे होते हैं तो ये अधिकारी कहां रहते हैं। दिल्ली हाई कोर्ट ने इसके बाद आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्ला खान को बटला हाउस में चल रहे बुलडोजर ऐक्शन के खिलाफ अपनी याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी,लेकिन प्रभावित लोगों को कोर्ट जाने के लिए तीन दिन का समय दिया है।
दिल्ली हाई कोर्ट ने ध्वस्तीकरण पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि हमें यह देखने की ज़रूरत है कि अधिकारी क्यों सोते रहते हैं जब लोग ढांचे बनाते रहते हैं और एक दिन उठकर उन्हें गिराने का फैसला कर लेते हैं। हमें न्याय सुनिश्चित करने की जरूरत है। यह आदेश तब आया जब दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) ने फिलहाल तोड़फोड़ रोकने के लिए कोई आधिकारिक आश्वासन देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि किसी याचिका पर सामान्य आदेश पारित करने से व्यक्तिगत याचिकाकर्ताओं के मामले खतरे में पड़ सकते हैं और कोर्ट को इस मामले की सुनवाई करने की जरूरत है।
आप विधायक अमानतुल्लाह खान ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि डिवीजन बेंच ने प्रभावित पक्षों को तीन दिनों के भीतर व्यक्तिगत रूप से अपनी रिट याचिका दाखिल करने का समय दिया है। लोग वहां 1971 से रह रहे हैं और आपने अचानक इसे अनधिकृत घोषित कर दिया और इसे पीएम-उदय योजना से अलग कर दिया। जिस तरह से डीडीए इस पूरे क्षेत्र को ध्वस्त करना चाहता है,वह मेरी समझ से परे है। उनके द्वारा किया गया सीमांकन सही नहीं है। मैंने अपनी याचिका वापस ले ली क्योंकि मैं सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सीमांकन को चुनौती दूंगा।
यह आदेश तब आया जब दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) ने फिलहाल तोड़फोड़ रोकने के लिए कोई आधिकारिक आश्वासन देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि किसी याचिका पर सामान्य आदेश पारित करने से व्यक्तिगत याचिकाकर्ताओं के मामले खतरे में पड़ सकते हैं और कोर्ट को इस मामले की सुनवाई करने की जरूरत है। जस्टिस गिरीश कथपालिया और जस्टिस तेजस कारिया की एक पीठ ने कहा कि कोर्ट जनहित याचिकाओं (PILs) के माध्यम से इन प्रार्थनाओं पर विचार नहीं कर सकता और यह उल्टा नतीजा देगा। वकील ने इशरत जहां के मामले का हवाला दिया,जहां हाई कोर्ट की एकल-न्यायाधीश पीठ ने राहत दी थी,तो पीठ ने कहा कि एक पीड़ित व्यक्ति को खुद कोर्ट में आना होगा जैसा कि उसने किया था।