बात-बात पर हर किसी को समन नहीं करना चाहिए.. दिल्ली हाई कोर्ट ने क्यों कहा ऐसा?
दिल्ली हाईकोर्ट ने 98 लाख की ठगी मामले में समन रद्द किया। कोर्ट ने कहा, बिना सबूत समन जारी करना गलत है और सिविल विवाद को आपराधिक रंग देना कानून का दुरुपयोग है।

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में साफ किया कि ट्रायल कोर्ट्स को बिना ठोस कारण के किसी व्यक्ति को आरोपी के तौर पर समन जारी करने से बचना चाहिए। जस्टिस अमित महाजन ने 23 जून को दिए अपने फैसले में कहा, 'समन जारी करना कोई हल्का-फुल्का मामला नहीं है। इसके लिए मजिस्ट्रेट को तथ्यों और सबूतों की गहन पड़ताल करनी होगी। केवल सतही तौर पर संतुष्टि जाहिर करना या कारण बताए बिना समन जारी करना कतई स्वीकार्य नहीं है।'
क्या है पूरा मामला?
यह मामला 98 लाख रुपये की कथित ठगी से जुड़ा है, जिसमें एक व्यक्ति को ट्रायल कोर्ट ने 28 सितंबर 2013 को समन जारी किया था। शिकायत इंडियाबुल्स सिक्योरिटीज लिमिटेड नामक कंपनी ने दर्ज की थी, जो शेयर बाजार में कारोबार करती है। कंपनी ने आरोप लगाया कि व्यक्ति ने धोखे से उनके साथ खाता खुलवाया और मार्जिन ट्रेडिंग की सुविधा ली, जिसमें निवेशक ब्रोकर से उधार लेकर शेयर खरीदता है। कंपनी का दावा था कि व्यक्ति ने बार-बार मार्जिन कॉल के बावजूद उधार राशि नहीं चुकाई।
हाईकोर्ट में अपील
आरोपी व्यक्ति ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि ट्रायल कोर्ट का समन आदेश बिना सोचे-समझे और गलत तरीके से पारित किया गया। उसने दावा किया कि कंपनी ने बिना उसकी सहमति के उसके 7 करोड़ रुपये के शेयर बेचकर उसे नुकसान पहुंचाया। उसने कहा कि कंपनी के आरोप बेतुके और असंभव हैं और यह मामला आपराधिक नहीं, बल्कि सिविल प्रकृति का है।
वहीं कंपनी ने तर्क दिया कि याचिका ठीक नहीं है और इसे सात साल बाद दायर किया गया, इसलिए इसे स्वीकार नहीं करना चाहिए। हालांकि, हाईकोर्ट ने कंपनी के इस तर्क को खारिज कर दिया।
'सिविल मामले को आपराधिक रंग देना गलत'
जस्टिस महाजन ने कहा कि समन बिना उचित जांच-पड़ताल और सबूतों की समीक्षा के जारी किए गए। उन्होंने टिप्पणी की कि कंपनी ने सिविल मामले को आपराधिक रंग देकर उगाही की कोशिश की। कोर्ट ने कहा, 'शिकायत और प्रारंभिक सबूतों की सतही जांच से साफ है कि मजिस्ट्रेट का फैसला बिना दिमाग लगाए लिया गया। इसमें आपराधिक तत्व का कोई सबूत नहीं है।'
हाईकोर्ट ने साफ किया कि इस तरह के मामले में आपराधिक कार्यवाही जारी रखना कानून का दुरुपयोग होगा। जस्टिस महाजन ने चेतावनी दी कि आपराधिक प्रक्रियाओं का इस्तेमाल बदला लेने या दूसरों को परेशान करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के समन आदेश को रद्द कर दिया और इस मामले को सिविल विवाद करार दिया।