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JNU छात्रों ने खोज लिया था अनोखा फॉर्मूला, इमरजेंसी में पुलिस को ऐसे देते रहे चकमा

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 25 जून, 1975 को घोषित आपातकाल की घोषणा की गई और यह 21 मार्च, 1977 तक प्रभावी रहा। इस दौरान व्यापक प्रेस सेंसरशिप, बिना सुनवाई के गिरफ्तारियां तथा शिक्षा जगत, राजनीति और नागरिक समाज में असहमति को दबा दिया गया।

Nisarg Dixit भाषाWed, 25 June 2025 09:32 AM
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JNU छात्रों ने खोज लिया था अनोखा फॉर्मूला, इमरजेंसी में पुलिस को ऐसे देते रहे चकमा

इंदिरा गांधी सरकार द्वारा लगाए गए आपातकाल के दौरान जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के विद्यार्थियों ने प्रतिरोध का नायाब तरीका अपनाते हुए गिरफ्तारी से बचने के लिए एक गुप्त योजना बनाई। इस योजना के तहत वे चुपचाप खुद को छात्रावास के कमरों में बंद कर दरवाजे पर बाहर से ताला लगवा दिया करते थे। यह तरीका उस समय अहम साबित हुआ जब पुलिस ने व्यापक कार्रवाई करते हुए पूरे परिसर को अर्धसैनिक बलों के साथ घेर लिया था।

आपातकाल के दौर में जेएनयू में स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) के सचिव व इतिहासकार सोहेल हाशमी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए साक्षात्कार में आठ जुलाई, 1975 की नाटकीय रात को याद किया उन्होंने कहा, 'हमें पता था कि छापेमारी होने वाली है। कुछ छात्रों ने, जो वास्तव में खुफिया एजेंट थे, हमें इसकी सूचना दी थी। यह (छापेमारी) छह से आठ जुलाई के बीच कभी भी हो सकती थी।'

हाशमी ने बताया कि छापे से पहले, छात्र नेताओं ने एक आंतरिक नेटवर्क तैयार कर लिया था। उन्होंने बताया, 'हम कमरे बदलते रहते थे। जिन लोगों को गिरफ्तार किए जाने की आशंका थी, उनके कमरे को बाहर से ताला लगा दिया जाता था। जो व्यक्ति उन्हें बंद करता था, वह दूसरे कमरे में चला जाता था और उसे भी (बाहर से) बंद कर ताला लगा दिया जाता था। चाबियां चुपचाप हममें से कुछ लोगों में बांट दी जाती थीं।' उन्होंने बताया, 'केवल ताला लगाने वाले को पता होता था कि उक्त व्यक्ति वास्तव में कहा है।'

हाशमी के मुताबिक छापेमारी की कार्रवाई आधी रात को शुरू हुई और उस समय जेएनयू को किले में तब्दील दिया गया था। उन्होंने बताया, 'वहां पुलिस और अर्धसैनिक बलों के करीब 30 से 40 ट्रक थे। कुछ लोग बताते हैं कि 500 ​​अधिकारी थे, जबकि अन्य कहते हैं कि 1,500 तक थे। तीनों छात्रावासों को बंदूकधारी सुरक्षा बलों ने घेर रखा था। इसके अलावा, पूरे परिसर को एक और सुरक्षा घेरे में कैद किया गया था।'

इतिहासकार ने बताया कि छात्रों को भीतर रख कमरे को बाहर से ताला लगाने की योजना काफी कारगर साबित हुई। उन्होंने कहा, 'वे जिन लोगों को गिरफ्तार करने आए थे, उनमें से ज्यादातर को वे ढूंढ नहीं पाए।' हालांकि हिरासत में लिए गए कुछ लोगों में वे भी शामिल थे।

उन्होंने कहा, 'जिस दोस्त को मुझे कमरे में बंद कर ताला लगाना था, वह उस रात परिसर नहीं पहुंच सका था। मुझे बैगर बाहर से ताला बंद कमरे में सोना पड़ा। जब उन्होंने दस्तक दी, तो मेरे पास दरवाजा खोलने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।'

हाशमी को लगभग एक दर्जन अन्य लोगों के साथ भारत रक्षा नियम (डीआईआर), 1969 के तहत गिरफ्तार किया गया था, जो बिना मुकदमे के एहतियातन हिरासत में रखने की अनुमति देता है। उन्होंने बताया, 'वे हमें तिहाड़ जेल ले गए। कुछ दिनों बाद हमें अदालत में पेश किया गया।'

हाशमी ने बताया कि विश्वविद्यालय के शिक्षकों के गवाही देने के बाद हिरासत में लिए गए लोगों को जमानत दे दी गई। उन्होंने बताया, 'मेरे शोध मार्गदर्शक प्रोफेसर मुनीश रजा और कुलसचिव एनवीके मूर्ति हमारे साथ खड़े रहे। उन्होंने मजिस्ट्रेट को बताया कि कोई साजिश या सार्वजनिक बैठक नहीं हुई थी।'

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 25 जून, 1975 को घोषित आपातकाल की घोषणा की गई और यह 21 मार्च, 1977 तक प्रभावी रहा। इस दौरान व्यापक प्रेस सेंसरशिप, बिना सुनवाई के गिरफ्तारियां तथा शिक्षा जगत, राजनीति और नागरिक समाज में असहमति को दबा दिया गया।

हाशमी ने कहा, 'जेएनयू देश का पहला संस्थान था जिसे इस स्तर की कार्रवाई का सामना करना पड़ा।' उन्होंने कहा, 'हम छात्र थे, लेकिन वे हमारे साथ विद्रोहियों जैसा व्यवहार कर रहे थे।'

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