Hindi Newsदेश न्यूज़Who was Girish Pandey Due to his testimony Indira Gandhi lost power and Emergency was imposed in india

कौन थे गिरीश पाण्डेय? जिनकी गवाही से चली गई थी इंदिरा गांधी की सत्ता, देश में लगा था आपातकाल

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सदस्यता खत्म करने के लिए चले केस में लालगंज के निवासी पूर्व मंत्री गिरीश नारायण पाण्डेय प्रमुख गवाहों में थे। तमाम प्रलोभनों व दबाव के बावजूद वह डिगे नहीं और गवाही दी।

Himanshu Jha हिन्दुस्तान टीम, सुनील पाण्डेयWed, 25 June 2025 07:53 AM
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कौन थे गिरीश पाण्डेय? जिनकी गवाही से चली गई थी इंदिरा गांधी की सत्ता, देश में लगा था आपातकाल

Emergency: आपातकाल के 50 बरस बीत चुके हैं। उन दिनों दुख-दर्द सहने वाले लोग तब के जुल्मों-सितम को याद कर आज भी सिहर उठते हैं। ये लोग बताते हैं कि आपातकाल में नागरिकों के सामान्य जीवन जीने के अधिकार ही समाप्त हो गए थे। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खत्म हो गई थी। पुलिस जिसे चाहती उसे कहीं भी गिरफ्तार कर जेल में ठूंस देती। गिरफ्तारी के बाद परिजनों को सूचना तक नहीं दी जा रही थी। जेल में तरह-तरह की यातनाएं दी गईं। थाने तक यातनागृह में तब्दील हो गए थे। लोगों को पकड़-पकड़कर नसबंदी करा दी जा रही थी।

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सदस्यता खत्म करने के लिए चले केस में लालगंज के निवासी पूर्व मंत्री गिरीश नारायण पाण्डेय प्रमुख गवाहों में थे। तमाम प्रलोभनों व दबाव के बावजूद वह डिगे नहीं और गवाही दी। इसी गवाही ने उनकी सदस्या खत्म कर दी। रायबरेली संसदीय क्षेत्र गांधी परिवार का गढ़ है। वर्ष 1971 में इंदिरा गांधी ने रायबरेली से लोकसभा का चुनाव लड़ा और भरी बहुमत से जीत दर्ज की। उनके सामने समाजवादी नेता राजनारायण ने चुनाव लड़ा था। इंदिरा की जीत को लेकर राजनारायण हाईकोर्ट चले गए।

इस केस में लालगंज के निवासी गिरीश नारायण पाण्डेय प्रमुख गवाह थे। वह आरएसएस से जुड़े थे। उन पर गवाही न देने का खूब दबाव बनाया गया। उनके बेटे अनूप पाण्डेय बताते हैं कि पिता जी बताते थे कि कांग्रेस के जिला व प्रदेश पदाधिकारी तमाम प्रलोभन देते थे। पैसा, टिकट, राज्यसभा की सदस्यता जैसे लालच दिए गए। लेकिन, वह डिगे नहीं। उन्होंने इंदिरा के खिलाफ हाईकोर्ट में गवाही दी और चुनाव रद्द हुआ। गवाही में कहा था कि चुनाव में सरकारी साधनों का दुरुपयोग किया गया। इंदिरा के सचिव एवं सरकारी कर्मचारी यशपाल कपूर चुनाव का सारा कार्यक्रम देखते थे। हाईकोर्ट में डेढ़ घंटे तक जिरह की गई। इसके बाद देश में आपातकाल लागू कर दिया गया।

तत्कालीन डीएम ने बताया था खतरनाक आदमी

देश में 21 महीने आपातकाल लागू रहा। गिरीश नारायण पाण्डेय 11 महीने तक जेल में रहे। यूपी के पूर्व मंत्री गिरीश नारायण पाण्डेय उन दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तहसील कार्यवाह थे। उनके बेटे अनूप पाण्डेय बताते हैं कि 3 जुलाई 1975 की उनके पिता लालगंज स्थित घर पर सो रहे थे। दरोगा घर आया और कहा कि एसडीएम साहब बुला रहे हैं। पहले उन्होंने मना किया और कहा कि वह सुबह आएंगे। उसने अनुरोध किया कि वह उनके साथ चलें, वह वापस छोड़ देगा। सीढ़ी से नीचे उतरे तो देखा कि दर्जनभर पुलिसवाले खड़े थे। गिरीश नारायण पाण्डेय गाड़ी में बैठने के बजाय पैदल थाने तक पहुंचे। वहां एसडीएम बैठे थे। एसडीएम ने उनसे कहा कि आप मिल गए तो राहत मिल गई। डीएम और एसपी ने कहा था कि ये (गिरीश नारायण पाण्डेय) खतरनाक आदमी हैं। रातभर थाने में रहे। सुबह प्राइवेट बस से रायबरेली ले गए। शाम तीन बजे जेल भेज दिया।

चाय के लिए जेल में किया था अनशन

उनके बेटे अनूप बताते हैं कि जेल में उन्हें चाय तक नहीं दी गई। चौबीस घंटे अनशन किया तब लोगों को नाश्ता और चाय मिली। पांच दिन तक घर वालों को पता ही नहीं चला था कि वह कहां है। उनके खिलाफ एफआईआर भी झूठी लिखवाई गई थी। रिपोर्ट में बताया गया था कि वह अपने दरवाजे पर मीटिंग कर रहे थे। इनमें पूर्व फौजी थे। शासन के खिलाफ भड़काने के लिए हथियार लेकर गए थे। आपातकाल खत्म हुआ तो फिर चुनाव हुए। इंदिरा गांधी फिर रायबरेली से चुनाव लड़ीं। इस चुनाव में इंदिरा गांधी को रायबरेली की जनता ने नकार दिया था।

दो बार चुने गए थे विधायक

बाबरी विध्वंस के बाद गिरीश नारायण पाण्डेय रायबरेली जिले की सरेनी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े और दो बार विधायक बने। वह कल्याण सिंह की सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। वह हमेशा जनसंघ व भाजपा की विचारधारा से जुड़े रहे। तमाम अवसर आए, लेकिन वह डिगे नहीं। इसी साल 28 मार्च को उनका निधन हो गया। इसके एक दिन पहले उनकी पत्नी का स्वर्गवास हुआ था।

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