रूस कब देगा भारत को बची हुई S-400 मिसाइलें? आया बड़ा अपडेट, इस वजह से हो रही देरी
भारत ने 2018 में रूस के साथ 40,000 करोड़ रुपये के सौदे पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके तहत पांच S-400 स्क्वाड्रनों की आपूर्ति होनी थी। इस सौदे के अनुसार, सभी स्क्वाड्रनों की डिलीवरी 2023 के अंत तक पूरी हो जानी थी।

रूस ने भारत को आश्वासन दिया है कि वह अत्याधुनिक S-400 ट्रायम्फ सतह से हवा में मार करने वाले मिसाइल सिस्टम की शेष दो स्क्वाड्रनों की डिलीवरी 2026-27 तक पूरी कर देगा। यह आश्वासन गुरुवार को चीन के किंगदाओ में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) रक्षा मंत्रियों की बैठक के दौरान भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और उनके रूसी समकक्ष आंद्रे बेलौसोव के बीच हुई द्विपक्षीय वार्ता में दिया गया।
इस बहुप्रतीक्षित मिसाइल प्रणाली की डिलीवरी रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते लंबे समय से विलंबित चल रही है। इस मुद्दे पर भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और रूस के नवनियुक्त रक्षा मंत्री आंद्रे बेलोउसॉव के बीच विस्तार से चर्चा हुई। राजनाथ सिंह ने बैठक के बाद ‘X’ पर कहा, "भारत-रूस रक्षा सहयोग को और मजबूत करने को लेकर महत्वपूर्ण चर्चा हुई।"
ऑपरेशन 'सिंदूर' में S-400 की भूमिका
गौरतलब है कि बीते महीने पाकिस्तान के साथ सीमा पर हुई तीव्र झड़पों के दौरान “ऑपरेशन सिंदूर” में S-400 प्रणाली की अहम भूमिका रही। पाकिस्तान ने 7 से 10 मई के बीच दावा किया था कि उसने पंजाब के आदमपुर एयरबेस को निशाना बनाकर वहां तैनात S-400 बैटरी को नष्ट कर दिया है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 13 मई को खुद आदमपुर एयरबेस का दौरा किया और वहां S-400 के ऑल-टेरेन ट्रांसपोर्टर-एरेक्टर-लॉन्चर (TEL) के साथ तस्वीर खिंचवाकर इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया।
क्या है S-400 प्रणाली?
S-400 ट्रायम्फ मिसाइल प्रणाली को भारत में 'सुदर्शन चक्र' के नाम से जाना जाता है। यह एक अत्याधुनिक वायु रक्षा प्रणाली है। यह 400 किलोमीटर तक की रेंज में हवाई खतरों, जैसे कि लड़ाकू विमान, क्रूज मिसाइल, बैलिस्टिक मिसाइल और ड्रोन को नष्ट करने में सक्षम है। प्रत्येक स्क्वाड्रन में दो मिसाइल बैटरी होती हैं, जिनमें 128 मिसाइलें होती हैं, और यह 120, 200, 250 और 380 किलोमीटर की रेंज में लक्ष्य को भेद सकती हैं। इसके अलावा, यह प्रणाली लंबी दूरी के रडार और ऑल-टेरेन ट्रांसपोर्टर-इरेक्टर वाहनों से सुसज्जित है। इस प्रणाली में लंबी दूरी तक टारगेट को ट्रैक और एंगेज करने वाले राडार, ऑल-टेरेन ट्रांसपोर्ट व्हीकल और लॉन्चर शामिल हैं।
भारत और रूस के बीच वर्ष 2018 में हुए 5.43 अरब डॉलर (लगभग 40,000 करोड़ रुपये) के समझौते के तहत भारत को कुल पांच स्क्वाड्रन मिलने थे, जिसकी डिलीवरी 2023 के अंत तक पूरी होनी थी। अब तक तीन स्क्वाड्रनों की तैनाती हो चुकी है- जिनमें से एक उत्तर-पश्चिम और दूसरी पूर्वी भारत में चीन और पाकिस्तान दोनों मोर्चों को ध्यान में रखकर लगाई गई है।
चौथी और पांचवीं स्क्वाड्रन की डिलीवरी
रूसी अधिकारियों के अनुसार, चौथी स्क्वाड्रन की आपूर्ति वर्ष 2026 में और पांचवीं स्क्वाड्रन की डिलीवरी 2027 में की जाएगी। S-400 वायु रक्षा प्रणाली भारत की एयर डिफेंस नेटवर्क की सबसे बाहरी परत के रूप में काम करती है और इसे भारतीय वायुसेना के इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम (IACCS) से जोड़ा गया है। यह दुश्मन के लड़ाकू विमान, ड्रोन, मिसाइल और निगरानी विमानों को 380 किमी तक की दूरी से पहचान कर मार गिराने में सक्षम है।
स्वदेशी विकल्प: प्रोजेक्ट 'कुशा'
इस बीच, भारत भी अपने स्वदेशी एयर डिफेंस सिस्टम ‘प्रोजेक्ट कुशा’ पर कार्य कर रहा है, जिसे DRDO विकसित कर रहा है। यह प्रणाली 350 किमी की दूरी तक लक्ष्य को मार गिराने में सक्षम होगी। सितंबर 2023 में रक्षा मंत्रालय ने भारतीय वायुसेना के लिए इस प्रणाली की पांच स्क्वाड्रनों की खरीद के लिए 21,700 करोड़ रुपये की स्वीकृति दी थी। सरकार का लक्ष्य इसे 2028-29 तक पूरी तरह ऑपरेशनल बनाना है।