युद्ध कोई बॉलीवुड फिल्म नहीं… भारत-पाक तनाव के बीच ऐसा क्यों बोले पूर्व सेना प्रमुख जनरल नरवणे
भारत और पाकिस्तान के बीच बनी युद्ध जैसे हालातों के बीच शनिवार को दोनों पक्षों ने सीजफायर पर सहमति जता दी। इसके बाद पूर्व सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे की प्रतिक्रिया सामने आई है।

India Pakistan Ceasefire: पूर्व सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष रोकने के फैसले पर उठ रहे सवालों की आलोचना करते हुए कहा है कि युद्ध न तो रोमांटिक होता है और न ही यह बॉलीवुड की कोई फिल्म है। उन्होंने रविवार को पुणे में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि आदेश मिलने के बाद वह युद्ध के लिए बेशक तैयार रहेंगे, लेकिन उनकी पहली प्राथमिकता हमेशा कूटनीति रहेगी। पूर्व सेना प्रमुख ने कहा है कि यह एक उथल-पुथल भरा सप्ताह रहा है, जिसकी शुरुआत 'ऑपरेशन सिंदूर' से हुई। भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान और उसके कब्जे वाले कश्मीर में आतंकवादी ठिकानों और बुनियादी ढांचे पर हमला कर आतंकवाद पर करारा प्रहार किया है। मनोज नरवणे ने कहा है कि आने वाले दिनों और हफ्तों में चीजें और बदल सकती हैं।
पूर्व सेना प्रमुख ने कहा कि कई लोग सैन्य कार्यवाही के निलंबन के पर सवाल खड़े कर रहे हैं जो ठीक नहीं है। उन्होंने कहा, "अगर आप तथ्यों और आंकड़ों पर विचार करें, खास कर युद्ध की लागत पर, तो आपको एहसास होगा कि एक बुद्धिमान व्यक्ति बहुत अधिक नुकसान होने से पहले ही निर्णय ले लेता है।" उन्होंने कहा, "मेरा मानना है कि हमने पाकिस्तान को यह साबित कर दिया है कि उनके आतंकवाद के रास्ते पर चलते रहने की कीमत बहुत अधिक होगी। इसीलिए आखिरकार उनके DGMO ने संघर्ष विराम की संभावना पर चर्चा करने के लिए हमें फोन किया।"
पीढ़ियों तक बना रहता है दर्द…
मनोज नरवणे ने आगे कहा कि युद्ध का सामाजिक पहलू भी होता है। नरवणे ने कहा कि जब रात में गोले गिरते हैं और सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों, खासतौर पर बच्चों को बचकर भागना पड़ता है, तो वह अनुभव उनके मन में गहरा असर छोड़ता है। उन्होंने कहा कि अपने मां-बाप को खोने का दर्द और इस तरह के विनाश को कोई बच्चा भूल नहीं पाएगा। उन्होंने कहा, ‘‘जिन्होंने अपने परिजन खोए हैं, उनके लिए वह दर्द पीढ़ियों तक बना रहता है। इसे 'पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर' कहते हैं। जो लोग ऐसे भयानक दृश्य देखते हैं, वे 20 साल बाद भी पसीने में भीगकर उठते हैं और उन्हें मनोचिकित्सकीय मदद की जरूरत पड़ती है।"
हिंसा अंतिम विकल्प
नरवणे ने आगे कहा, "युद्ध कोई रोमांटिक बात नहीं है। यह आपकी कोई बॉलीवुड फिल्म नहीं है। यह एक गंभीर विषय है। युद्ध या हिंसा अंतिम विकल्प होना चाहिए। हमारे प्रधानमंत्री ने भी कहा है कि यह युद्ध का युग नहीं है। भले ही अविवेकी लोग हम पर युद्ध थोपें, हमें उसका स्वागत नहीं करना चाहिए।" उन्होंने कहा, "फिर भी लोग पूछ रहे हैं कि हमने अब तक पूरी ताकत से युद्ध क्यों नहीं किया। एक सैनिक के रूप में यदि आदेश दिया जाएगा तो मैं युद्ध में जाऊंगा, लेकिन वह मेरी पहली पसंद नहीं होगी।" जनरल नरवणे ने कहा कि कूटनीति, संवाद के माध्यम से मतभेदों को सुलझाना और सशस्त्र संघर्ष की नौबत न आने देना भी कुछ विकल्प हो सकते हैं।
बंदूक बनाम मक्खन की लड़ाई
रक्षा बजट के महत्व पर प्रकाश डालते हुए जनरल नरवणे ने कहा कि "बंदूक बनाम मक्खन" की बहस बहुत पुरानी है। उन्होंने बताया कि रक्षा मंत्रालय राष्ट्रीय बजट का लगभग 15 प्रतिशत हिस्सा लेता है। जनरल नरवणे ने कहा, "अब आप पूछेंगे कि क्या यह एक सार्थक निवेश है या यह पैसा बरबाद हो रहा है? तो, मैं इसे दो या तीन अलग-अलग तरीकों से समझाऊंगा। मैं यह कहना चाहूंगा कि इसे एक प्रीमियम बीमा के रूप में देखें।" उन्होंने कहा कि देश को आपातस्थिति के लिए एक बैकअप योजना की जरूरत है और यह बात पिछले सप्ताह स्पष्ट रूप से सामने आई। जनरल नरवणे ने कहा, "अगर आपके सशस्त्र बल अच्छी तरह से तैयार हैं, तो वे किसी भी ऐसी आपात स्थिति से निपटने में सक्षम हैं जो देश पर बिना किसी चेतावनी के थोपी जा सकती है। यह ठीक उसी तरह है जैसे दुर्घटनाएं बिना किसी चेतावनी के घटित होती हैं।"