सेल्फ केयर स्वार्थ नहीं जरूरत है, दूसरों पर भरोसा करने से पहले ध्यान रखें ये टिप्स
संतुलन किसी भी रिश्ते के लिए जरूरी है। जरूरत से ज्यादा देना या मिलने की उम्मीद हंसते-खेलते रिश्ते में असंतुलन के बीज बोकर उसे कसैला बना सकती है। ऐसा कब होता है और कैसे इसेे रोकें, बता रही हैं दिव्यानी त्रिपाठी

माना की उदारता, त्याग एक शख्स को हर दिल अजीज बना देते हैं, पर यह भी उतना ही सही है कि किसी भी चीज की अति अच्छी नहीं होती। फिर चाहे बात आपके अपनों की हो या फिर उनके प्रति आपके त्याग और उदारता की। यकीन मानिए कि आपकी जरूरत से ज्यादा दरियादिली न सिर्फ आपके लिए घाटे का सौदा साबित होती है बल्कि आपके तथाकथित अपनों का मिजाज भी बिगाड़ सकती है।
हमें हमेशा से सिखाया जाता है - जो तेरा है, वो सबका है या फिर देते चलो, भगवान तुम्हें देगा। पर, कई बार जरूरत से ज्यादा मिलना या देना जरूरत और आवश्यकता के संतुलन को बिगाड़ देता है। आपकी उदारता को कुछ लोग आपकी मजबूरी समझ सकते हैं और आप कुछ वक्त बाद खुद को ठगा पाती हैं। भलाई करना एक बात है, लेकिन अगर हम हर समय दूसरों की खुशी के लिए अपनी सीमाएं लांघते रहें, तो इसका असर हमारे रिश्तों पर भी पड़ता है।
ना कहना है जरूरी
चलो हम कर देते हैं, अरे थोड़ा-सा है, कोई बात नहीं...ये शब्द छोटे से हैं, पर इसका असर आपकी जिंदगी में बहुत मायने रखता है। दोस्त हों, रिश्तेदार हों या सहकर्मी जब आप अपनों को मना नहीं करतीं या मना नहीं कर पातीं, तब क्या कभी सोचा है कि बार-बार आपका हां कहना आपकी हमेशा की जिम्मेदारी बढ़ा सकता है। इस बाबत मनोचिकित्सक डॉ़ स्मिता श्रीवास्तव कहती हैं कि शुरुआत में आपका हां दूसरों को अच्छा लगता है और आपको भी खुशी देता है, पर धीरे-धीरे लोग उसे आपकी जिम्मेदारी समझने लगते हैं। फिर जब आप एक दिन किसी बात या काम को न कहती हैं, तो सामने वाले को वह ना रास नहीं आता। मुमकिन है कि ऐसे में आपको गलत साबित कर दिया जाए। आपको ऐसे काम के लिए दोषी ठहरा दिया जाए, जहां आपका दोष हो ही नहीं। लिहाजा बेहतर होगा कि आप ना कहना सीख लें। एकदम से नहीं, लेकिन धीरे-धीरे अपनी सीमाएं बनाइए। विनम्रता से कहें- अभी समय नहीं है, अगली बार कर दूंगी।
खुद को भी रखें याद
कई बार हम दूसरों की मदद करते-करते खुद की जरूरतें भूल जाते हैं। ऑफिस में किसी का प्रोजेक्ट पूरा करवाना हो या घर में सबके छोटे-बड़े काम करने के लिए शिद्दत से जुटे रहते हैं। कई बार अपनी सेहत, समय और मानसिक सेहत की भी परवाह नहीं करते। बकौल डॉ. स्मिता कई बार लोग ऐसे भम्र में रहते हैं कि अगर वह काम नहीं करेंगे, तो काम होगा ही नहीं। उनका यह बर्ताव उन्हें थका देता है। नतीजा, थकान, चिड़चिड़ापन और कभी-कभी अवसाद। कहीं आप भी तो उस जमात का हिस्सा नहीं। अगर हां, तो जरूरी है खुद के लिए वक्त निकालना। याद रखें, अपना ख्याल रखना आपको स्वार्थी नहीं बनता बल्कि यह आपके लिए जरूरी है।
पड़ जाती है आदत
बिन मांगे मिली मदद को समय के साथ अकसर लोग अपना हक समझने लग जाते हैं। ऐसा न हो इसके लिए जरूरी है कि रिश्ते में बराबरी हो। याद रखें, किसी भी रिश्ते में जरूरत से ज्यादा देने से संतुलन बिगड़ सकता है और एक वक्त के बाद रिश्ता एकतरफा हो जाता है। आपको मदद करने से पहले इस बात को जेहन में रखना चाहिए कि लेन-देन के संतुलन से रिश्ते चलते हैं। जब रिश्ते में देने वाला हाथ हमेशा सिर्फ आपका होता है और बदले में सामने वाला कभी आगे नहीं आता, तो इसे खतरे की घंटी की तरह देखें।
अपनी खुशी के लिए कीजिए मदद
कई बार हम सिर्फ लोगों को खुश करने के लिए उनकी मदद करते हैं। उदार बनते हैं। पर, क्या स्वार्थ के धागे से बुना रिश्ता मजबूती से टिका रह पाता है? यकीनन, जवाब नहीं होगा। ऐसा रिश्ता असुरक्षा को जन्म देता है और बोझ बन जाता है। यह बोझ न बने इसलिए जरूरी है कि आप खुद से सवाल कीजिए। 'आप इसलिए मदद कर रही हैं क्योंकि आपको करना अच्छा लगता है या इसलिए कि आपको पसंद किया जाए?' जवाब आपको बहुत कुछ सिखा देगा।
गौर कीजिए इन छोटी बातों पर
इंसान को उसकी बड़ी-बड़ी बातों से नहीं बल्कि उसकी छोटी-छोटी गतिविधियों, भावों, शब्दों से परखना बेहतर तरीका है।
जब आपका दोस्त, बार-बार आपका या किसी और का भरोसा तोड़े, अपनी कही बातों से मुकर जाए, तो आपको समझना होगा कि आप उस पर ज्यादा भरोसा नहीं कर सकतीं।
अगर सामने वाला शख्स आपकी भावनाओं, अनुभवों और दर्द को सुनकर भी अनदेखा कर दे या फिर उसे कमतर आंके। उसमें आपका साथ देने के बजाय खुद को बचाने का प्रयास करे तो आपको समझना होगा कि आपका चुनाव गलत है।
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