बोले रांची : हमारी मेहनत और समर्पण का तो ख्याल रखे सरकार
झारखंड सरकार द्वारा जारी आउटसोर्सिंग नियमावली-2025 से राज्य के तीस हजार से अधिक आउटसोर्स कर्मियों में नाराजगी है। संघ ने सरकार से स्थायीकरण और समान वेतन की मांग की है। यदि सरकार ने सकारात्मक कदम नहीं...
रांची, संवाददाता। झारखंड सरकार की ओर से हाल ही में जारी आउटसोर्सिंग नियमावली-2025 से राज्य के लगभग तीस हजार से अधिक आउटसोर्स कर्मियों में गहरी नाराजगी है। हिन्दुस्तान के बोले रांची कार्यक्रम में आउटसोर्स कर्मियों ने अपनी पीड़ा साझा करते हुए कहा कि जो आउटसोर्स कर्मचारी पिछले 8 से 15 वर्षों से राज्य के विभिन्न सरकारी विभागों, कार्यालयों में कार्यरत हैं, उनकी सेवाओं को सरकार ने इस मैन्युअल के माध्यम से न केवल अस्थिर करने की कोशिश की है, बल्कि उनकी मेहनत और समर्पण को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया है। झारखंड राज्य आउटसोर्स कर्मचारी संघ ने सरकार की आउटसोर्सिंग नियमावली 2025 का विरोध किया है।
संघ का कहना है कि इस नियमावली से उन कर्मचारियों के भविष्य पर अनिश्चितता का साया मंडराने लगा है जो वर्षों ने समर्पण के साथ अपनी सेवा दे रहे हैं। संघ का कहना है कि नियमावली में हर साल कार्य मूल्यांकन के आधार पर सेवा विस्तार की बाध्यता रखी गई है, जिससे हर वर्ष नौकरी जाने का डर बना रहेगा। साथ ही एक ऐसा शपथपत्र भरवाने की बात कही गई है, जिसमें कर्मचारी यह घोषणा करेगा कि वह सरकार से किसी भी प्रकार का दावा नहीं करेगा। इसके अलावा, समान कार्य के बदले समान वेतन के सिद्धांत को दरकिनार करते हुए आउटसोर्सकर्मियों को अब भी संविदा कर्मियों की तुलना में कम वेतन दिया जा रहा है। 10 वर्षों से अधिक सेवा देने वालों का नियमितीकरण : संघ का कहना है कि जो आउटसोर्स कर्मचारी 10 वर्षों से अधिक समय से राज्य सरकार के विभिन्न विभागों में कार्यरत हैं, उन्हें स्थायी या संविदा रूप में नियमित किया जाए। उनका तर्क है कि एक दशक से अधिक सेवा देने वाले कर्मचारी अब स्थायीकरण की पात्रता रखते हैं। देश के कई राज्यों में 10 या 15 वर्षों की सेवा पूरी करने वाले आउटसोर्स कर्मियों को नियमित किया गया है। इन कर्मियों ने अनुभव, दक्षता और निष्ठा के साथ सेवा की है। अगर इन्हें नियमित नहीं किया गया, तो उनकी सेवा अस्थिरता और भय के साये में गुजरती रहेगी। नियमितीकरण से न केवल कर्मचारी लाभान्वित होंगे, बल्कि राज्य सरकार को भी प्रशिक्षित और भरोसेमंद मानव संसाधन मिलेगा। यह कदम कर्मचारी सम्मान के साथ-साथ शासन प्रशासन की गुणवत्ता बढ़ाने में सहायक होगा। समान कार्य के बदले समान वेतन: आउटसोर्स कर्मचारियों की मांग हैं कि उन्हें संविदाकर्मियों के समान वेतन दिया जाए। झारखंड हाईकोर्ट ने भी ‘समान कार्य के लिए समान वेतन का आदेश दिया है, जो संवैधानिक अधिकारों के अंतर्गत आता है। बावजूद आउटसोर्स कर्मचारियों को आज भी न्यूनतम मजदूरी या उससे भी कम वेतन पर काम करने को मजबूर किया जा रहा है। इससे वे आर्थिक रूप से कमजोर रह जाते हैं व सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर नहीं मिल पाता। जब काम की जिम्मेदारी, समय और प्रदर्शन में कोई अंतर नहीं है, तो वेतन में भेदभाव करना पूरी तरह से अन्यायपूर्ण है। सरकार को चाहिए कि वे वित्त विभाग की अनुशंसाओं के अनुरूप आउटसोर्स कर्मियों के लिए वेतन निर्धारण करे ताकि आत्मसम्मान और अधिकार की रक्षा हो सके। सरकार को कार्य बहिष्कार की चेतावनी : संघ ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि 15 दिनों के अंदर सरकार इस पर सकारात्मक पहल नहीं करती है तो पूरे राज्य में सभी आउटसोर्स कर्मचारी एकजुट होकर कार्य बहिष्कार, सचिवालय घेराव जैसे कड़े कदम उठाएंगे। उनका कहना है कि राज्य सरकार की कई योजनाओं और कार्यालय कार्यों की रीढ़ यही आउटसोर्स कर्मचारी हैं। आउटसोर्स कर्मियों और परिजनों को बीमा सुरक्षा लाभ से जोड़ा जाए आउटसोर्स कर्मचारी चाहते हैं कि उनकी सेवा के दौरान दुर्घटना या मृत्यु की स्थिति में उन्हें और उनके परिजनों को बीमा सुरक्षा मिले। उन्होंने मांग की है कि शारीरिक अपंगता की स्थिति में 5 लाख रुपये और मृत्यु की स्थिति में 10 लाख रुपये का एकमुश्त बीमा लाभ दिया जाए। चूंकि अधिकांश आउटसोर्स कर्मचारी फील्ड या जोखिम भरे कार्यों में तैनात होते हैं, उनके साथ दुर्घटनाएं होने की आशंका अधिक रहती है। पितृत्व अवकाश और उपार्जित अवकाश जैसे लाभ भी मिलें संघ का तर्क है कि आउटसोर्स कर्मचारियों को राज्य सरकार के स्थायी कर्मचारियों की तरह पितृत्व अवकाश और उपार्जित अवकाश जैसे मूलभूत सुविधाएं मिलनी चाहिए। वर्तमान में न तो उन्हें छुट्टियों की सुविधा मिलती है और न ही स्वास्थ्य। पारिवारिक कारणों केे समय अवकाश लेने पर उनका वेतन असुरक्षित रहता है। पितृत्व अवकाश आधुनिक श्रम नीति का अभिन्न अंग है, जिसे सराकर को लागू करना चाहिए। स्थायी कर्मचारियों की तरह 60 वर्ष तक सेवा की गारंटी दी जाए राज्य के आउटसोर्स कर्मचारियों की सबसे बड़ी मांग है कि उनकी सेवा को 60 वर्ष की आयु तक सुरक्षित किया जाए। वर्तमान मैन्युअल में सेवा की कोई गारंटी नहीं दी गई है, जिससे कर्मचारियों को हर साल नौकरी जाने का डर बना रहता है। ऐसे में कर्मचारी मानसिक अस्थिरता के साथ काम करते हैं, जिससे कार्य गुणवत्ता पर असर पड़ता है। कर्मचारी चाहते हैं कि स्थायी कर्मचारियों के जैसे आउटसोर्स की सेवा सीमा तय हो। राज्य में बिहार और एमपी का मॉडल किया जाए लागू आउटसोर्स कर्मचारी मांग कर रहे हैं कि झारखंड में भी बिहार और मध्यप्रदेश जैसे मॉडल को अपनाया जाए, जहां आउटसोर्स कर्मियों को सेवा सुरक्षा, न्यूनतम वेतन और बीमा जैसे लाभ दिए गए हैं। बिहार में राज्य सरकार आउटसोर्स कर्मियों के लिए नीति के तहत सेवा की न्यूनतम अवधि और बीमा प्रावधान तय कर चुकी है। वहीं, मध्यप्रदेश में चयनित एजेंसियों के तहत कार्यरत कर्मचारियों को राज्य कर्मियों के समान उपार्जित अवकाश और छुट्टियां मिलती हैं। झारखंड में अब तक कोई भी स्थायी नीति नहीं बनी थी, और अब जो मैन्युअल आया है, वह कर्मचारियों के हित में कम, और उन्हें बाहर करने की तैयारी जैसा प्रतीत हो रहा है। सवाल: दायित्व स्थायी तो दर्जा अस्थायी क्यों वर्षों से सेवा में होने के बावजूद कर्मचारियों को अस्थायी बनाए रखा गया है। हमें भी स्थायी करें, या 60 वर्षों के लिए सेवा सुरक्षा दिया जाए।-मो. नदीम अंसारी समान काम के लिए असमान वेतन, यह सिर्फ अन्याय नहीं, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 39 की खुली अवहेलना है। -सुनील कुमार अगर हम पर दायित्व स्थायी है, तो हमारा दर्जा क्यों अस्थायी है। 10 वर्षों की सेवा के बाद भी अगर हम नियमित नहीं हो सकते, तो यह कैसा न्याय है। -बब्लू कुमार समान कार्य करने के बावजूद वेतन में भारी अंतर है। आउटसोर्स कर्मियों को समान काम के एवज में समान वेतन मिले।-मो. खुर्शीद आलम अस्थायी कर्मचारी अपने जीवन का एक दशक से अधिक सरकारी सेवा में देता है, तो उसका भी भविष्य सुरक्षित होना चाहिए।-अमोल चिराग बिना मातृत्व अवकाश, पेंशन, बीमा और वार्षिक वृद्धि के हम वर्षों से काम कर रहे हैं। क्या यह उचित है। हम भी परिवार चलाते है। -आराधना खलखो सामाजिक सुरक्षा का अभाव है। पेंशन, बीमा अवकाश, जैसी मूल सुविधाओं से आउटसाेर्स कर्मियों को जोड़कर उसका लाभ दें। -प्रभात कुमार नीतियां बनती हैं, फैसले लिए जाते हैं, लेकिन आउटसोर्स कर्मचारियों की राय कभी नहीं पूछी जाती। हमें नीति निर्माण में भागीदारी चाहिए।-रवींद्र राम हर दफ्तर में हमारे कदम चलते हैं, लेकिन जब हक की बात आती है, तो हमारा नाम नहीं होता। आउटसोर्स कर्मियों को भी स्थायी करें। -सुनीता खांडित कर्मचारियों के स्थानांतरण या सेवा विस्तार की कोई नीति नहीं है। कर्मियों के लिए स्थानांतरण और रिटायरमेंट की नीति बने।-अनुपा दीप्ति डुंगडु्ंग हम वही काम करते हैं, वही समय देते हैं, कभी ज्यादा भी, लेकिन हमें न स्थायीत्व मिलता है, न सामाजिक सुरक्षा का लाभ दिया जाता है।-रामलाल महतो अगर कोई दुर्घटना हो जाए, तो हमारे परिवारों का क्या होगा, हमारे लिए बीमा और सुरक्षा योजनाएं न होना सरकार की गंभीर लापरवाही है। -मनोज पाटर
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