बोले रामगढ़:किले के इतिहास को सहेजिए ये सिर्फ पत्थर नहीं,पहचान है
रामगढ़ का राजागढ़ किला, जो दामोदर नदी के किनारे स्थित है, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यह किला अब खंडहर में बदल चुका है, लेकिन स्थानीय लोगों के लिए यह आस्था का प्रतीक है। स्थानीय...
रामगढ़। झारखंड में कई ऐतिहासिक स्थल आज भी उपेक्षा का शिकार हैं। रामगढ़ शहर से दो किलोमीटर दूर, दामोदर नदी के किनारे और पहाड़ियों के बीच स्थित राजागढ़ किला भी उन्हीं में एक है। कभी राजा की शान रहा यह किला अब खंडहर में बदल चुका है, लेकिन स्थानीय लोगों के लिए यह आस्था और गौरव का प्रतीक है। यहां आज भी गढ़ बाबा की पूजा होती है। यह सिर्फ एक पुरानी इमारत नहीं, बल्कि रामगढ़ के स्वर्णिम इतिहास और झारखंड की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। बोले रामगढ़ की टीम से यहां के लोगों ने इसके संरक्षण को जरूरी बताया।
कहा जाता है की राजागढ़ के किले का निर्माण 1640 ईसवीं के आसपास किया गया था। बड़े-बड़े चट्टान के टुकड़ों को जोड़कर बनाया गया रामगढ़ का यह किला आज जिला प्रशासन और सरकार के उपेक्षा के कारण बाहरी दुनिया की चकाचौंध से भले ही ओझल है। पर स्थानीय स्तर पर इसकी महत्ता किसी भी प्रसिद्ध प्राचीन किले अथवा दुर्ग से कम नहीं है। बड़े-बड़े चट्टानों को तरास कर बनाया गया यह गढ़ तात्कालिक मजदूरों, तकनीकी ज्ञान रखने वाले कारीगरों, राजमिस्त्री और चट्टानों की तरह ही फौलादी सोच रखने वाले राजा की दूरदर्शिता को भी दर्शाता है। राजगढ़ के उत्तर में दामोदर नदी बहती है। पूरब की ओर एक बड़ा सा तालाब है जिसे स्थानीय लोग गढ़ बांध के नाम से जानते हैं। छोटी सी पहाड़ी के ऊपर बसा यह किला सामरिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण था। ऊंचाई पर स्थित होने के कारण दूर से ही राजागढ़ की तरफ आने वाले लोगों अथवा सेना पर नजर रखी जा सकती थी। महल के अंदर सुरंगों का जाल फैला हुआ था। जहां से महल में रहने वाले अथवा राज परिवार के लोग गुप्त रूप से कभी भी महल के बाहर आवागमन कर सकते थे। स्थानीय लोगों के अनुसार पूरब दिशा की ओर फैला हुआ सुरंग कैथा तालाब और शिव मंदिर तक जाता था। दक्षिण की तरफ फैला सुरंग सुभाष चौक के नजदीक किला मंदिर तक था। वहीं पश्चिम की ओर जाने वाला सुरंग रामगढ़ मुक्तिधाम के नजदीक रामेश्वर मंदिर तक जाता था। गढ़ में आयोजित किए जाते थे। हालांकि इसका कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। खंडहरों को देखकर सहजता से अंदाजा लगाया जा सकता है की राजगढ़ केवल एक किला नहीं बल्कि एक जीवंत प्रशासनिक और सांस्कृतिक केंद्र था। 17 वीं सदी के मध्य तक अंग्रेज़ों का प्रभाव पूरे छोटा नागपुर क्षेत्र पर पड़ चुका था। 1764 ई में राजा विष्णु देव सिंह की मृत्यु के बाद उनके छोटे भाई मुकुंद सिंह को रामगढ़ का नया राजा घोषित किया गया। मुकुंद सिंह स्वाधीनता प्रेमी राजा थे। जीते जी इन्होंने रामगढ़ को अंग्रेजों की गुलामी की जंजीरों में जकड़ने नहीं दिया। राजा मुकुंद सिंह पलामू के चेरो राजवंश के राजा की मदद करते थे। साथ ही मराठों से भी राजा मुकुंद सिंह के बेहतर संबंध थे। इन सब के कारण राजा मुकुंद सिंह हमेशा अंग्रेजों की आंखों में खटकते रहते थे। अंग्रेज लगातार रामगढ़ राज्य के पड़ोसी रियासतों को राजा मुकुंद सिंह के विरुद्ध भड़का रहे थे। राजा मुकुंद सिंह को तरह-तरह के षडयंत्र कर कमजोर करने की अपनी चाल के तहत अंग्रेजों ने महल के अंदर ही उनके रिश्तेदारों को राजगद्दी का लालच देकर मिला लिया। 1772 में अंग्रेजों ने राजगढ़ पर हमला कर दिया। अंग्रेजों को भारी पड़ता देख और अपने लिए अन्य राजघरानों से समर्थन कजुटाने के लिए राजा मुकुंद सिंह गुप्त रास्ते से महल से बाहर निकल गए। इसके बाद कुछ लोगों के अनुसार राजा के बनारस जाने के रास्ते में अंग्रेजों ने पकड़ लिया और उन्हें बंदी बना लिया गया। एक अन्य संभावना के अनुसार अंग्रेजों के साथ लगातार लड़ाई और जख्मी होने के कारण उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया और उनकी मृत्यु हो गई। कुछ स्थानीय लोग बताते हैं उनके पीछे राजागढ़ में रानी ने अंग्रेजों से बचने के लिए नदी किनारे बर के पेड़ के नीचे आग में कूद कर जान दे दी थी। गढ़ बाबा पर है यहां के लोगों की आस्था राजगढ़ की कहानी के अंत के साथ ही गढ़ बाबा की रोचक कहानी शुरू होती है। लोगों के अनुसार राजगढ़ से जाने से पहले राजा ने अपने खास सेनापति दासो मुंडा को महल के बाहर सुरक्षा के लिए तैनात किया था। गढ़ और खजाने की रक्षा के लिए एक ब्रह्मचारी ब्राह्मण को जिम्मेदारी सौंपी गई थी। अंग्रेजों से लड़ते हुए दासो मुंडा और ब्रह्मचारी ब्राह्मण दोनों वीरगति को प्राप्त हुए थे। जिसके कारण राजगढ़ में ब्रह्मचारी ब्राह्मण की पूजा शुरू हुई। वहीं गढ़ के बाहर निचले हिस्से में दासो मुंडा की पूजा की जाती है। एक अन्य मान्यता के अनुसार गढ़ से जाने से पहले राजा ने ब्रह्मचारी को महल और इसके धरोहर की रक्षा के लिए शपथ दिलाई थी फिर तांत्रिक विधि से उसकी बलि दी गई थी। उपेक्षा की मार झेल रहा ऐतिहासिक धरोहर रामगढ़ की पथरीली पहाड़ियों पर स्थित राजगढ़ किला न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि स्थानीय लोगों की आस्था और पौराणिक मान्यताओं से भी गहराई से जुड़ा है। इसके बावजूद यह धरोहर प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार बनी हुई है। आज तक यहां कोई शिलालेख या जानकारी पट्ट नहीं लगाया गया जिससे आमजन को इसके गौरवशाली अतीत की जानकारी मिल सके। राजागढ़ को पर्यटन स्थल बनाने की हैं अपार संभावनाएं राजागढ़ किला ऐतिहासिक, पौराणिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यह किला केवल एक वीरता और विद्रोह की गाथा नहीं, बल्कि आस्था और परंपरा का प्रतीक भी है। इसके चारों ओर फैला नैसर्गिक सौंदर्य और रहस्यमय गुफाएँ इसे एक आदर्श पर्यटन स्थल बना सकते हैं। पर्यटन के रूप में विकसित करने हेतु यहाँ मूलभूत सुविधाओं जैसे सड़क, पेयजल, शौचालय, विश्राम स्थल और सूचना पट्ट लगाना जरूरी है। मनोकामना पूरी करने के लिए लोग चढ़ाते हैं प्रसाद गढ़ बाबा अपने शपथ के अनुसार आज भी महल के अंदर छुपे धरोहर और खजाने की रक्षा करते हैं। स्थानीय लोगों में गढ़ बाबा को लेकर काफी आस्था है। लोगों का मानना है अगर बाबा से सच्ची आस्था और विश्वास के साथ कुछ भी मांगा जाए तो वह जरूर पूरी होती है। आसपास के दुर दराज के लोग पूरे विश्वास के साथ गढ़ बाबा के शरण में अपनी इच्छा को पूरी की मन्नत लेकर आते हैं। पहुंच पथ का विकास करे प्रशासन गढ़ बाबा का मंदिर रामगढ़ जिले की ऐतिहासिक और धार्मिक आस्था का केंद्र है, लेकिन आज भी यह विकास की मुख्यधारा से वंचित है। पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर तक जाने के लिए श्रद्धालुओं को खतरनाक, उबड़-खाबड़ और फिसलन भरे रास्तों से गुजरना पड़ता है। छावनी परिषद के वार्ड नंबर 4 के कुंवर टोला को पार करने के बाद यहां तक पहुंचने वाले रास्ते को भी जिला प्रशासन अभी तक बना नहीं पाई है। राजागढ़ को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए रामगढ़ चेंबर ऑफ कॉमर्स ने भी मांग की है। राजागढ़ को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए सभी जरूरी कदम उठाए जाएंगे। राजागढ़ रामगढ़ जिले का एक ऐतिहासिक धरोहर है। स्थानीय युवाओं को इस पौराणिक धरोहर को बचाने के लिए आगे आना होगा। -योगेंद्र महतो, पेयजल व स्वक्षता मंत्री, झारखंड रामगढ़ चैंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज ने हाल ही में हुई आम सभा के दौरान झारखंड सरकार के मंत्री योगेंद्र महतो को जिले के ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व के इमारत को संरक्षित रखने का प्रस्ताव दिया गया है। राजागढ़ भी जिले का ऐतिहासिक धरोहर है। इसके संरक्षण के लिए स्थानीय स्तर पर भी प्रयास किया जाना चाहिए। -मनजीत साहनी, अध्यक्ष, चैंबर ऑफ़ कॉमर्स धरोहर अगर यूं ही उपेक्षित रह गई, तो आने वाली पीढ़ियाँ अपने अतीत से कट जाएंगी। सरकार को तुरंत संरक्षण का काम शुरू करना चाहिए। -महेंद्र मुंडा किला सिर्फ एक पुरानी इमारत नहीं, बल्कि शौर्य और विद्रोह की पहचान है। इसे संरक्षित कर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाना चाहिए। -वीर प्रधान गढ़ बाबा तक पहुंचने का रास्ता तक नहीं बना। सरकार की संवेदनहीनता साफ दिखती है। आस्था और इतिहास दोनों की उपेक्षा हो रही है। - शिव चंद्र प्रसाद युवाओं और बच्चों को जिले के इतिहास और सांस्कृतिक धरोहरों, ऐतिहासिक इमारतों के बारे में जानकारी होनी चाहिए। -कृष्ण कुमार किला हमारे पुरखों के संघर्ष की निशानी है। प्रशासन यहां शिलालेख, गाइड और साफ-सफाई की व्यवस्था करे। -अशोक कुमार किले की खुदाई, अध्ययन या कोई भी दस्तावेजीकरण नहीं हुआ। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की टीम को यहां भेजा जाना चाहिए। -सुरेश बरेलिया राजगढ़ को यदि पर्यटन मानचित्र पर लाया जाए, तो न केवल स्थानीय रोज़गार बढ़ेगा बल्कि रामगढ़ जिले को सांस्कृतिक पहचान भी मिलेगी। - शशि राम राजागढ़ किले तक पहुंचने के रास्ते में जंगल और झाड़ियाँ हैं। यहाँ ना तो प्रकाश की व्यवस्था है, ना ही सुरक्षा। यह गंभीर चूक है। -रोहित करमाली गढ़ बाबा की पूजा सदियों से होती आई है। सरकार रास्ता और बुनियादी सुविधाएं नहीं दे सकती तो श्रद्धालुओं का अपमान करती है। -सूरज कुमार लोग कई बार बैठक कर जिला प्रशासन और छावनी परिषद से यहां सुविधाओं की मांग करने के लिए मांग पत्र आदि सौंपने की बात करते हैं। -देवचरण पांडे सरकार रामगढ़ की पहचान को सशक्त करना चाहती है तो राजगढ़ किला उसका सबसे सशक्त प्रतीक बन सकता है। -उषा देवी लोगों में जागरुकता नहीं आएगी, सरकारें भी नहीं सुनेंगी। हमें खुद आगे आकर किले की रक्षा करनी होगी। ऐसे धरोहरों को बचाव की है जरूरत। -मोहन पांडे
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