विश्वविद्यालय में पारंपरिक लोटा-पानी की रस्म से पदयात्रियों को किया गया स्वागत
दुमका में, सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय में संताल हूल के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए पदयात्रियों का स्वागत किया गया। इस कार्यक्रम का नेतृत्व कुलपति प्रो. कुनुल कंदीर ने किया। हूल दिवस...

दुमका, प्रतिनिधि। संताल हूल के वीर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने हेतु शहीद ग्राम भोगनाडीह की ओर पदयात्रा कर रहे सैकड़ों पदयात्रियों का गुरुवार को सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर पारंपरिक और गरिमामय स्वागत किया गया। इसी कार्यक्रम के साथ विश्वविद्यालय में तीन दिवसीय हूल दिवस समारोह की औपचारिक शुरुआत भी हो गई। विश्वविद्यालय की ओर से उनका स्वागत पारंपरिक लोटा-पानी की रस्म से किया गया। इस आयोजन का नेतृत्व विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. कुनुल कंदीर ने स्वयं की। इसके बाद परिसर में स्थापित वीर शहीद सिदो-कान्हू की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। मौके पर पदयात्रियों को सम्मानपूर्वक मंचस्थ किया गया एवं उन्हें संथाल गौरव और बलिदान के प्रतीक पगड़ी, टोपी और अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम का आरंभ विश्वविद्यालय कुलगीत और कुलसचिव डॉ राजीव कुमार के स्वागत भाषण के साथ हुआ। मौके पर विधायक डॉ लुईस मरांडी विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित रहीं। उन्होंने हूल आंदोलन के शहीदों को स्मरण करते हुए विश्वविद्यालय को प्रतिवर्ष पदयात्रियों का स्वागत करने हेतु आभार प्रकट किया। उन्होंने कहा कि गोटा भारत सिदो कान्हू हूल बैसी संगठन लगातार समाज में जागरूकता फैलाने का कार्य कर रहा है जो सराहनीय है। उन्होंने कहा हूल क्रांति हमें आज भी प्रेरणा देती है। ऐसे आयोजन हमें अपने इतिहास से जोड़ते हैं और युवाओं को अपने गौरवशाली अतीत से परिचित कराते हैं। गोटा भारत संगठन के प्रतिनिधि गमालियाल हांसदा ने विश्वविद्यालय परिवार के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि 105 किलोमीटर की यह पदयात्रा शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के उद्देश्य से की जाती है। विवि के वितीय सलाहकार ब्रजनंदन ठाकुर ने कहा कि यह आयोजन 1855 के ऐतिहासिक हुल विद्रोह की स्मृति में किया गया है और सभी को शहीदों के बताए मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। कुलपति प्रो. कुनुल कंदीर ने सभी पदयात्रियों और अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि आपके आगमन से विश्वविद्यालय की गरिमा और संकल्प दोनों में वृद्धि हुई है। संताल हूल केवल एक विद्रोह नहीं था बल्कि यह ब्रिटिश शासकों और महाजनों के अत्याचार के खिलाफ एक संगठित क्रांति थी। उन्होंने कहा कि आज हमारी जमीन, जंगल और जल अगर सुरक्षित हैं तो वह हमारे पूर्वजों के बलिदान का ही परिणाम है। उन्होंने कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन विश्वविद्यालय के डीएसडब्ल्यू डॉ जैनेन्द्र यादव ने किया। 28 जून को विश्वविद्यालय स्तर पर विभिन्न प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएंगी। जिनमें अंगीभूत कॉलेजों से चयनित छात्र-छात्राएं भाग लेंगे। हूल दिवस का मुख्य कार्यक्रम 30 जून को विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवन-2 के कांफ्रेंस हॉल में आयोजित किया जाएगा। जिसमें जनप्रतिनिधि, विद्वान वक्ता, छात्र और समुदाय के अन्य सदस्य हिस्सा लेंगे। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के सभी पदाधिकारी एवं कर्मचारी उपस्थित थे।
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।