बारिश से खिले किसानों के चेहरे, खेतों में हल-बैल के साथ शुरू हुई जुताई
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सिमरिया प्रतिनिधि आषाढ़ महीने की बारिश धरती पर पड़ते ही गाँव की सूनी पगडंडियों पर एक बार फिर हल और बैल की चहल-पहल लौट आई। बादलों की बौछार ने न सिर्फ़ खेतों की प्यास बुझाई, बल्कि किसानों के मन में भी नई उम्मीदें जगा दीं। गाँव के कई हिस्सों में किसान अपने पारंपरिक बैलों के साथ खेतों की जुताई में जुटे दिखाई दे रहे हैं। हल चलाने के बाद अब किसान धान की बुवाई की तैयारी कर रहे हैं। स्थानीय किसान शंकर सिंह ने बताया कि इस बार वर्षा समय पर हुई है। जिससे जुताई कार्य में कोई बाधा नहीं आ रही।
पिछले कुछ वर्षों से बारिश देर से हो रही थी, जिससे फसलें प्रभावित हो रही थीं। अब समय पर पानी मिलने से अच्छी पैदावार की उम्मीद है। वहीं एक अन्य किसान शंभु पाठक ने कहा कि इस बार वर्षा थोड़ी ज्यादा हो गई है। ऐसे में बैलों की घंटियों की टन-टन और मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू खेतों में एक नया उत्साह भर रही है। यह मौसम हमारे लिए नयी शुरुआत का प्रतीक है। बहरहाल बुजुर्ग किसान उदय सिंह बताते हैं कि यह समय सिर्फ़ खेती की शुरुआत का नहीं, बल्कि सांस्कृतिक परंपराओं के जीवंत होने का भी होता था। पहले खेत जोतने से पहले बैलों की विधिपूर्वक पूजा की जाती थी। लोकगीतों की गूंज और सामूहिक श्रम की भावना गाँवों की पहचान थी। लेकिन आधुनिकता की दौड़ में ये परंपराएँ अब धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही हैं। नई पीढ़ी जहाँ मशीनों पर निर्भर हो रही है, वहीं हमारी सांस्कृतिक विरासत गुमनामी की ओर बढ़ रही है। मकई की नहीं हो सकी खेती, सब्जियों के दामों में भारी उछाल अत्यधिक बारिश होने से मकई की खेती नहीं हो पा रही है। दरअसल धुप नहीं होने के कारण खेत नहीं सुख पा रहे हैं। गीले खेतों में मकई की खेती संभव नहीं है। इधर ज्यादा बारिश होने से अधिकतर सब्जियां गलने के कगार पर पहुंच गई है। ऐसे में टमाटर, आलू, भिंडी, मिर्ची, कद्दू आदि सब्जियों के दाम पचास रुपए प्रति किलो तक पहुंच गया है।
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