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इजरायल-ईरान में सीजफायर के बाद आगे क्या होगा? ट्रंप की मिडिल-ईस्ट नीति पर सस्पेंस बरकरार

युद्धविराम ने ईरान के साथ परमाणु वार्ता को फिर से शुरू करने की संभावनाएं खोल दी हैं। विटकॉफ ने कहा कि अमेरिका और ईरान के बीच प्रत्यक्ष और मध्यस्थों के माध्यम से प्रारंभिक बातचीत शुरू हो चुकी है।

Amit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, वाशिंगटनWed, 25 June 2025 08:10 AM
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इजरायल-ईरान में सीजफायर के बाद आगे क्या होगा? ट्रंप की मिडिल-ईस्ट नीति पर सस्पेंस बरकरार

ईरान, इजरायल और अमेरिका के बीच हाल के घटनाक्रमों ने मध्य पूर्व में तनाव को एक नए मोड़ पर ला खड़ा किया है। डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के नेतृत्व में अचानक युद्धविराम की घोषणा ने वैश्विक समुदाय में कई सवाल खड़े किए हैं, विशेष रूप से यह कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अब आगे मध्य-पूर्व को लेकर कैसी नीति अपनाएंगे? क्या यह युद्धविराम टिकेगा और ट्रंप प्रशासन की मध्य पूर्व नीति को किस दिशा में ले जाएगा, यह अभी अनिश्चित है।

युद्धविराम की घोषणा और अनिश्चितता

ट्रंप ने 24 जून को अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'ट्रुथ सोशल' पर घोषणा की कि इजरायल और ईरान के बीच 12 घंटे के भीतर एक पूर्ण युद्धविराम लागू होगा। हालांकि, इस घोषणा के कुछ ही घंटों बाद इजरायल ने दावा किया कि ईरान ने मिसाइल हमले किए, जिससे युद्धविराम की स्थिरता पर सवाल उठने लगे। इजरायली सेना ने जनता को चेतावनी दी कि ईरान से मिसाइलें दागी गई हैं, जबकि ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अरागची ने कहा कि यदि इजरायल सुबह 4 बजे तक हमले रोक देता है, तो ईरान जवाबी कार्रवाई नहीं करेगा। कतर की मध्यस्थता ने इस युद्धविराम को संभव बनाया। कतर के प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद बिन अब्दुल रहमान अल थानी ने ईरान को युद्धविराम के लिए मनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ट्रंप ने कतर के प्रयासों की सराहना की, लेकिन युद्धविराम के उल्लंघन की खबरों ने स्थिति को जटिल बना दिया है।

ट्रंप की नीति में बदलाव

ट्रंप प्रशासन की मध्य पूर्व नीति में हाल के महीनों में कई अप्रत्याशित बदलाव देखने को मिले हैं। अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप ने 2018 में ईरान परमाणु समझौते (जेसीपीओए) से अमेरिका को बाहर निकाला था और ईरान पर "अधिकतम दबाव" की नीति अपनाई थी। लेकिन हाल की घटनाओं ने इस नीति में बदलाव के संकेत दिए हैं।

परंपरागत सलाह तंत्र को किनारे कर ट्रंप ले रहे हैं व्यक्तिगत निर्णय

विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप प्रशासन में विदेश नीति से जुड़े निर्णय अब पारंपरिक राष्ट्रीय सुरक्षा ढांचे के बजाय व्हाइट हाउस में ट्रंप के नजदीकी सलाहकारों के छोटे समूह तक सीमित हो गए हैं। यही कारण है कि कई फैसले- जैसे ईरान और इजरायल के बीच युद्धविराम या चीन को ईरानी तेल खरीदने की मिली छूट अचानक ट्रंप के सोशल मीडिया पोस्ट्स के जरिए सामने आए।

संसद तक को ट्रंप के आदेशों की जानकारी केवल सतही रूप में दी गई। रक्षा और विदेश मंत्रालयों में बैठकों की योजनाएं अचानक रद्द हो गईं। स्टेट डिपार्टमेंट की प्रवक्ता टैमी ब्रूस तक सवालों के जवाब देने से कतराती रहीं और अधिकांश मामलों में उन्हें ट्रंप की पोस्ट्स का हवाला देना पड़ा।

ईरानी परमाणु ठिकानों पर हमले, कितना हुआ नुकसान?

पिछले सप्ताह अमेरिका और इजरायल ने ईरान के फोर्दो, नतांज और इस्फहान स्थित परमाणु ठिकानों पर हवाई हमले किए। हालांकि ट्रंप ने दावा किया कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम "पूरी तरह तबाह" कर दिया गया है, लेकिन रक्षा खुफिया एजेंसी (DIA) की प्रारंभिक रिपोर्ट बताती है कि कार्यक्रम कुछ महीनों के लिए ही रुका है- स्थायी रूप से नहीं।

विशेष दूत स्टीव विटकॉफ का दावा है कि ईरान की यूरेनियम संवर्धन क्षमता पर वर्षों का असर पड़ा है, लेकिन अन्य सैन्य अधिकारियों ने ईरान की जवाबी क्षमताओं को अब भी "काफी मजबूत" बताया। खाड़ी में अमेरिकी ठिकानों पर मिसाइल हमलों ने यह संकेत दिया कि ईरान अब भी खतरा बना हुआ है।

क्या परमाणु वार्ता फिर शुरू हो सकती है?

इस युद्धविराम के बाद अब नई उम्मीद जगी है कि अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु कार्यक्रम पर बातचीत फिर शुरू हो सकती है। विटकॉफ ने कहा कि प्रारंभिक वार्ताएं- प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से शुरू हो चुकी हैं और "संवाद उम्मीद भरा" है। हालांकि कई विशेषज्ञ अभी भी संदेह में हैं। काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस के रे टाकेह का मानना है कि ईरान की राजनीतिक व्यवस्था अभी काफी बिखरी हुई है और किसी भी ठोस वार्ता के लिए वह तैयार नहीं दिखती। वहीं कार्नेगी एंडोमेंट के करीम सादजादपूर ने सवाल उठाया कि तेहरान में आखिर निर्णय लेने की ताकत किसके पास है?

संयुक्त राष्ट्र में ईरान के राजदूत अमीर सईद इरावानी ने कहा, “ईरान के शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम को लेकर बने इस अनावश्यक संकट का समाधान केवल कूटनीति और संवाद से ही हो सकता है।”

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ट्रंप प्रशासन का अगला कदम क्या हो सकता है?

अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस और विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने संकेत दिया कि ट्रंप अभी भी कूटनीति के पक्षधर हैं और संघर्ष को स्थायी रूप से खत्म करने का यही रास्ता है। यदि ईरान-इजरायल युद्धविराम कायम रहता है, तो इससे मध्य-पूर्व के अन्य संघर्षों में भी अमेरिका को हस्तक्षेप और समाधान के अवसर मिल सकते हैं- जैसे कि इजरायल और हमास के बीच चल रहा युद्ध, जिसमें मिस्र और कतर मध्यस्थ की भूमिका निभा सकते हैं।

सीरिया में भी ईरान के प्रभाव के कमजोर होने से अमेरिका को नए सिरे से साझेदारी की संभावना दिख रही है। ट्रंप पहले ही नए सीरियाई नेतृत्व से मिल चुके हैं और वहां कुछ प्रतिबंधों में ढील दी जा चुकी है।

रूस-यूक्रेन युद्ध पर भी असर?

ईरान-इजरायल संघर्ष की समाप्ति से ट्रंप प्रशासन को रूस और यूक्रेन के बीच भी शांति प्रयासों की दिशा में ध्यान केंद्रित करने का समय और स्थान मिल सकता है। रूस और ईरान के बीच बढ़ती सैन्य साझेदारी- जैसे ईरानी ड्रोन की आपूर्ति इस क्षेत्रीय समीकरण में अहम भूमिका निभा रही है। जैसे-जैसे विश्व की नजरें तेहरान और तेल अवीव पर केंद्रित हुईं, रूस ने यूक्रेन पर अपने हमले तेज कर दिए, शायद यह सोचकर कि वैश्विक ध्यान फिलहाल कहीं और है।

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