ईरान में बसे हैं कितने सिख और कहां-कहां गुरुद्वारे, PM मोदी ने भी टेका था मत्था
ईरान में दो प्रसिद्ध गुरुद्वारे हैं। तेहरान में दो और एक गुरुद्वारा जाहेदान में है। भारत-पाक बंटवारे के बाद बड़ी संख्या में सिख ईरान में भी बस गए थे। हालांकि इस्लामिक क्रांति के बाद इनकी संख्या लगातार घटने लगी।

इजरायल और ईरान के बीच इन दिनों तनाव चरम पर है। युद्ध के बीच भारत सरकार ऑपरेशन सिंधु के तहत भारतीय नागरिकों को वापस ला रही है। वहीं नॉर्थ अमेरिका पंजाबी असोसिएशन ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी से निवेदन किया है तेहरान के गुरुद्वारे में रखी गुरु ग्रंथ साहिब को भी सुरक्षित भारत मंगवा लिया जाए। बता दें कि ईरान की राजधानी तेहरान में दो गुरुद्वारे हैं और यहां करीब 60 से 100 सिख परिवार रहते हैं। ईरान के बाकी हिस्सों में सिखों की संख्या ना के बराबर है। हालांकि जाहेदान शहर में भी एक गुरुद्वारा है।
ईरान में कितने गुरुद्वारे
ईरान में सिखों की कुल संख्या दो हजार के ही आसपास है। ईरान में भाई गंगा सिंह सभा गुरुद्वारा है। इसका पुनः निर्माण 1966 में हुआ था। कहा जाता है कि कभी गुरु नानक देव जी भी इस स्थान तक आए थे। इसके अलावा ईरान में ही मस्जिद-ए-हिंदां नाम से एक गुरुद्वारा है। इसका नाम भले ही इस्लाम से मेल खाता है लेकिन यह सिखों का ही गुरुद्वारा है। जाहेदान में यहां का सबसे पुराना गुरुद्वारा है जिसकी स्थापना 1921 में की गई थी। कहा जाता है कि पश्चिमी एशिया का यह पहला गुरुद्वारा है।
यहां पीएम मोदी ने टेका था मत्था
प्रधानमंत्री बनने के दो साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ईरान के दौरे पर गए थे। इस दौरान वह तेहरान के भाई गंगा सिंह सभा गुरुद्वारे गए थे और उन्होंने मत्था टेका था। इस गुरुद्वारे की स्थापना भाई गंगा सिंह सभा के द्वारा 1941 में किया गया था। उस दौरान तेहरान में करीब 800 सिख रहते थे। 2012 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी तेहरान गए थे और उन्होंने सिख प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की थी।
रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद ब्रिटिश शासित पंजाब में रहने वाले बहुत सारे सिख ईरान की तरफ चले गए थे। वे जाहेदान के आसपास बस गए। वहीं कुछ लोग तेहरान चले गए। हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इससे पहले भी ईरान में सिख परिवार रहते थे। हालांकि भारत की आजादी के बाद ईरान में सिखों की संख्या 5 हजार के आसपास पहुंच गई। वहीं जब 1979 में इस्लामिक क्रांति हुई और बाद ईरान को इस्लामिक रिपब्लिक घोषित कर दिया गया तो सिखों की संख्या कम होने लगी। ईरान-इराक युद्ध के समय भी सिख परिवारों के कारोबार तबाह हो गए। ऐसे में ईरान में सिख परिवारों की संख्या दिनों-दिन कम होती गई। बहुत सारे सिख यूके में शिफ्ट हो गए।
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