थप्पड़ मारो, माफी मांगो और भूल जाओ, यह नहीं चलेगा; दो वकीलों पर क्यों फूटा हाई कोर्ट का गुस्सा
अदालत ने कहा, 'यदि प्रतिवादी ईमानदार और सच्चे होते, तो वे मौका मिलने पर तुरंत माफी मांगने की कोशिश करते। जबकि हम तो इस बात पर आश्वस्त हैं कि इस वक्त माफी मांगना, प्रतिवादियों द्वारा कानून की कठोरता से बचने के लिए अपनाया गया एक तरीका मात्र है।'

हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने न्यायपालिका के खिलाफ गंभीर आरोपों से जुड़े एक आपराधिक अवमानना के मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए दो वकीलों द्वारा पेश की गई बिना शर्त माफी को शुक्रवार को खारिज कर दिया। जिन लोगों पर अवमानना का आरोप लगा है, उनके द्वारा न्याय व्यवस्था पर अनियमितता और ड्रग कार्टेल के साथ सांठगांठ करने के दावे किए गए थे।
जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस सुशील कुकरेजा की खंडपीठ ने माफी को अस्वीकार करते हुए कहा, 'हमें यह कहते हुए खेद है कि अवमानना के इस मामले में हम 'थप्पड़ मारो, माफी मांगो और भूल जाओ' विचारधारा का समर्थन नहीं कर सकते। 'माफी' कहने से थप्पड़ खाने वाले गाल का दुख कम नहीं हो जाता।'
कोर्ट की कार्यवाही स्वतः संज्ञान के बाद तब शुरू हुई जब पहले प्रतिवादी धैर्य सुशांत ने न्यायपालिका के खिलाफ गंभीर आरोप लगाते हुए और उच्च न्यायालय के एक मौजूदा न्यायाधीश का नाम लेते हुए सोशल मीडिया पर एक वीडियो अपलोड किया। इस वीडियो में जजों, वकीलों और ड्रग डीलरों के बीच मिलीभगत का दावा किया गया था, साथ ही एक न्यायाधीश पर चोरी और नशीले पदार्थों के मामले में आरोपियों का पक्ष लेने का आरोप लगाया गया था।
वहीं इस वीडियो में दूसरे प्रतिवादी ने इन आरोपों को दोहराया और कहा कि न्याय की आत्मा मर चुकी है। साथ ही उसने भी न्यायाधीशों पर मिलीभगत का आरोप लगाया।
कोर्ट द्वारा अवमाननापूर्ण बताए गए इस वीडियो में न्यायपालिका पर आरोप लगाते हुए कहा गया कि 'न्याय को केवल दिखावे और पक्षपात के आधार पर दिया जा रहा है' और गंभीर अपराधों में शामिल आरोपियों को जमानत देने में न्यायिक पक्षपात करने का दावा किया गया।
जिसके बाद 22 पेज के अपने विस्तृत आदेश में पीठ ने एलडी जयकवाल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और टीएन गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम अशोक खोट सहित सुप्रीम कोर्ट के कई उदाहरणों का हवाला देते हुए कहा कि अवमानना मामले में माफी मांगने में वास्तविक पश्चाताप झलकना चाहिए और यह महज एक रणनीति नहीं हो सकती।
इसके साथ ही अदालत ने कहा, 'यदि प्रतिवादी ईमानदार और सच्चे होते, तो वे मौका मिलने पर जल्द से जल्द माफी मांगने की कोशिश करते। वहीं हम तो इस बात पर आश्वस्त हैं कि इस वक्त माफी मांगना, प्रतिवादियों द्वारा कानून की कठोरता से बचने के लिए अपनाया गया एक तरीका मात्र है।'
पीठ ने 25 जून को प्रस्तुत माफ़ीनामे को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया, यह देखते हुए कि प्रतिवादी लगातार इस बात से इनकार करते रहे कि उनके शब्द अपमानजनक थे, और इसके बजाय अदालत पर यह तय करने के लिए छोड़ दिया कि क्या कुछ आपत्तिजनक था। न्यायाधीशों ने कहा, 'इस तरह की माफी को केवल कागजी माफी कहा जा सकता है।'
अदालत ने अब दोनों प्रतिवादियों के खिलाफ आरोप तय करने के लिए 16 जुलाई, 2025 की तारीख तय की है, इस दौरान उन्हें अदालत में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहने का निर्देश दिया गया है। पीठ ने कहा, 'जहां कोई वास्तविक खेद या पश्चाताप नहीं है, उस माफी को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।'
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