हम ही क्यों? अहमदाबाद विमान हादसे में टूटे दिलों की कहानी, दर्द से उबर नहीं पा रहा शहर
अहमदाबाद में 12 जून को एयर इंडिया AI-171 हादसे ने 270 जिंदगियां छीनीं। मनोचिकित्सक परिवारों को दुख, इनकार और तनाव से उबार रहे हैं।

अहमदाबाद में हुए एयर इंडिया प्लेन क्रैश ने पूरे शहर को हिलाकर रख दिया। बीते 12 जून को लंदन जा रहा यह विमान टेकऑफ के कुछ ही सेकंड बाद बी जे मेडिकल कॉलेज परिसर में दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें 241 यात्रियों और 29 लोगों की जान चली गई। सिर्फ एक यात्री बच पाया। इस त्रासदी ने न केवल जिंदगियां छीनीं, बल्कि बचे हुए लोगों के दिलों में गहरे जख्म छोड़ दिए। आज भी शहरवासी उस दर्द से बाहर नहीं निकल पाए हैं।
हादसे के बाद का वो मंजर
हादसे की खबर फैलते ही लोग बी जे मेडिकल कॉलेज के कसौटी भवन और पोस्टमॉर्टम बिल्डिंग की ओर दौड़ पड़े थे। हर कोई अपने प्रियजनों की तलाश में था, उम्मीद की एक पतली सी डोर थामे। अकेले जीवित बचे यात्री की खबर ने कईयों के दिलों में आशा की किरण जगाई, लेकिन ज्यादातर के लिए यह उम्मीद जल्द ही मायूसी में बदल गई। बी जे मेडिकल कॉलेज की डीन डॉ. मीनाक्षी पारिख ने कहा, 'यह हादसा इतना भयावह था कि सुनने वालों का भी दिल दहल गया, जिन्होंने अपनों को खोया, उनकी मनोदशा का अंदाजा लगाना भी मुश्किल है।'
दर्द और इनकार का आलम
हादसे के बाद बी जे मेडिकल कॉलेज के मनोचिकित्सा विभाग ने तुरंत कार्रवाई की। पांच सीनियर रेजिडेंट्स और पांच कंसल्टेंट्स की टीम दिन-रात परिवारों की मदद में जुट गई। डॉ. उर्विका पारेख, जो इस टीम का हिस्सा थीं, बताती हैं, 'लोग सदमे में थे। वे बार-बार अपडेट मांग रहे थे, यह मानने को तैयार ही नहीं थे कि उनके अपने अब नहीं रहे।' कई परिवार उस एकमात्र जीवित यात्री को अपना मान बैठे। डॉ. पारेख ने बताया, 'हमने उन्हें धीरे-धीरे समझाया कि इस भयानक हादसे में कोई और नहीं बच सका। यह बताना आसान नहीं था। हमें पहले मनोवैज्ञानिक रूप से मदद करनी पड़ी।'
डीएनए मैच का इंतजार और टूटता धैर्य
सबसे मुश्किल था इंतजार। डीएनए की पुष्टि में 72 घंटे या उससे ज्यादा समय लग सकता था। इस अनिश्चितता ने दुख को और गहरा कर दिया। कुछ लोग अपने प्रियजनों की पहचान खुद करने की जिद पर अड़े थे। डॉ. पारेख ने एक पिता की कहानी बताते हुए कहा वो कह रहे थे मुझे डीएनए टेस्ट की जरूरत नहीं, मैं अपने बेटे को उसकी आंखों से पहचान लूंगा। टीम ने उन्हें समझाया कि यह देखना उनके लिए और दर्दनाक हो सकता है। हमने कहा, अपने प्रियजनों को उनकी मुस्कान के साथ याद रखें, न कि जली हुई अवस्था में। इससे डिप्रेशन का खतरा और बढ़ जाता है।
खामोशी में छिपा दर्द
एक शख्स, जिसकी पत्नी हादसे में चली गई थी, चुपचाप बैठा रहा। न रोया, न बोला। डॉ. पारेख ने बताया, ‘उसमें गहरा अपराधबोध था कि वह जिंदा है और उसकी पत्नी नहीं। हमने उसे तुरंत तनाव कम करने की दवा दी। धीरे-धीरे वह खुला, अपनी पत्नी के साथ बिताए पलों को याद करने लगा। हमने उसे सुना, उसकी खामोशी को सहारा दिया।’
सात दिन का इंतजार और टूटती हिम्मत
एक एयर इंडिया क्रू मेंबर के परिवार को डीएनए पुष्टि के लिए सात दिन इंतजार करना पड़ा। उनकी रिश्तेदार ने बताया, 'यह थकान और लाचारी हमें मानसिक रूप से तोड़ रही थी। लेकिन काउंसलिंग ने हमें सहारा दिया। वह शांत आवाज, सही जानकारी और साथ होना यही हमें टूटने से बचा रहा था।'
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