पंचायत सीजन 4 रिव्यू: चुनावी रंग में डूबा फुलेरा, क्या दर्शकों की उम्मीदों पर खरा उतर पाया?
ओटीटी प्लेटफॉर्म अमेजन प्राइम वीडियो पर ‘पंचायत’ का चौथा सीजन रिलीज हो गया है। इस सीजन में दो नए किरदारों की एंट्री होगी। उन किरदारों के जरिए नया तड़का लगाने की कोशिश की गई है।

साल 2020 में जब पहली बार फुलेरा गांव से हमारा परिचय हुआ था, तब किसी ने नहीं सोचा था कि यह छोटा-सा गांव हमारे दिलों में इतनी गहरी जगह बना लेगा। ‘पंचायत’ का चौथा सीजन 24 जून को अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज हो गया है और एक बार फिर हमें सचिव जी, प्रधान जी और मंजू देवी की दुनिया में वापस ले गया। लेकिन क्या यह सीजन उन उम्मीदों पर खरा उतरा जो पिछले तीन सीजन ने जगाई थीं?
कहानी: चुनावी बवंडर में फंसा फुलेरा
सीजन 4 की शुरुआत वहीं से होती है जहां सीजन 3 का अंत हुआ था। प्रधान जी पर हुए हमले के बाद अब फुलेरा में चुनावी माहौल गरमा गया है। मंजू देवी (नीना गुप्ता) और क्रांति देवी (सुनीता राजवार) के बीच प्रधानी की कुर्सी के लिए कड़ी टक्कर है। एक तरफ लौकी का चुनाव चिह्न लेकर मंजू देवी मैदान में हैं, तो दूसरी तरफ प्रेशर कुकर के निशान पर क्रांति देवी। सचिव जी (जितेंद्र कुमार) इस बार भी अपने CAT एग्जाम के रिजल्ट का इंतजार कर रहे हैं, साथ ही बनराकस पर हाथ उठाने के केस की चिंता भी सता रही है। रिंकी (सांविका) के साथ उनकी लव स्टोरी भी इस सीजन में नई मंजिल की तरफ बढ़ती दिखाई देती है।
एक्टिंग: पुरानी टीम, वही जादू
जितेंद्र कुमार (सचिव जी)
जितेंद्र कुमार एक बार फिर अपने किरदार में पूरी तरह रम गए हैं। सचिव जी का किरदार अब उनकी दूसरी प्रकृति बन चुका है। इस सीजन में उन्हें थोड़ा एक्शन मोड में भी देखा गया है।
नीना गुप्ता (मंजू देवी)
नीना गुप्ता का अभिनय इस सीजन में भी शानदार है। चुनावी माहौल में उनका किरदार नई ऊंचाइयों को छूता है।
रघुबीर यादव (प्रधान जी)
रघुबीर यादव का प्रदर्शन हमेशा की तरह दमदार है। गोली लगने के बाद के दर्द और चुनावी दबाव को वह बेहद प्रभावी तरीके से पेश करते हैं।
सपोर्टिंग कास्ट
दुर्गेश कुमार (बनराकस), फैजल मलिक (प्रहलाद चा) और सुनीता राजवार (क्रांति देवी) ने अपने किरदारों को पूरी शिद्दत से निभाया है। विशेष रूप से दुर्गेश कुमार का अभिनय इस सीजन में काफी प्रभावशाली रहा है।
राइटिंग और डायरेक्शन: कुछ कमी खली
चंदन कुमार की लेखनी इस बार उतनी धारदार नहीं लगी जितनी पहले के सीजन में थी। पहले के सीजन में छोटे-छोटे संवाद भी गहरी बात कह जाते थे, लेकिन इस बार वैसी बात नहीं बन पाई। दीपक कुमार मिश्रा और अक्षत विजयवर्गीय के निर्देशन में माहौल तो बना है, लेकिन कहानी में वह कसावट नहीं दिखी जो इस शो की खासियत रही है।
क्या अच्छा लगा?
- ग्रामीण राजनीति की बारीकियों को बखूबी दिखाया गया है।
- सभी कलाकार अपने किरदार में पूरी तरह रमे हुए नजर आते हैं।
- चुनावी भ्रष्टाचार और सत्ता के खेल को सही तरीके से दिखाया गया है।
- इस बार रिंकी और सचिव जी के रिश्ते को आगे बढ़ाया गया है।
क्या कमी खली?
- कुछ एपिसोड में पेसिंग स्लो लगी और फिलर कंटेंट ज्यादा दिखा।
- पुराने सीजन की तुलना में कॉमेडी कम लगी।
- 8 एपिसोड बनाने के लिए कहीं-न-कहीं कहानी को जबरदस्ती लंगा किया गया।
- रिंकी जैसे किरदारों को पर्याप्त स्क्रीन टाइम नहीं मिला।
देखें या नहीं?
‘पंचायत सीजन 4’ एक औसत दर्जे का सीजन है जो उम्मीदों पर पूरी तरह खरा नहीं उतरा। कहानी में वह दम नहीं दिखा जो पहले के सीजन में था। फुलेरा का वह पुराना जादू कहीं खो गया लगता है। अगर आप पंचायत के पुराने फैन हैं तो यह सीजन देख सकते हैं, लेकिन उम्मीदें ज्यादा न रखें।
रेटिंग: 3/5 स्टार
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