कन्नप्पा: आपको पता है, शिव को अपनी आंख देने वाले भक्त की कहानी? जानें शिवलिंग पर क्यों रखा था पैर?
विष्णु मांचू की फिल्म कन्नप्पा का ट्रेलर बीते दिनों रिलीज हुआ जिसे काफी लोग पसंद कर रहे हैं। हिंदी दर्शकों का ध्यान इसकी स्टारकास्ट ने खींचा है। फिल्म शिवभक्ति पर है। क्या आपको पता है कन्नप्पा की कहानी?

विष्णु मांचू की तेलुगु फिल्म कन्नप्पा नॉर्थ में भी सुर्खियां बटोर रही है। वजह हैं अक्षय कुमार। उन्होंने फिल्म में शिवजी का रोल निभाया है। कन्नप्पा मायथोलॉजी ड्रामा है और 27 जून इसकी रिलीज डेट है। साउथ के लोग कन्नप्पा की भक्ति से परिचित हैं वहीं हिंदी भाषी और नॉर्थ के कई लोग कन्नप्पा के बारे में नहीं जानते। वह शिवजी अनन्य भक्त थे। उन्हें भोलेबाबा से इतना प्यार था कि उनके लिए चाकू से अपनी आंखें निकाल दी थी। अगर आप भी उनमें से हैं जो कन्नप्पा को नहीं जानते तो यहां पढ़ें उनकी कहानी।
दिल छूने वाली कहानी
कन्नप्पा के प्रोड्यूसर मोहन बाबू हैं और मुकेश कुमार सिंह डायरेक्टर हैं। फिल्म में कन्नप्पा का लीड रोल विष्णु मांचू कर रहे हैं। इस फिल्म में शिवजी के भक्त की कहानी दिखाई गई है। रुद्र के रोल में प्रभास हैं लेकिन यह शिव का अवतार नहीं बल्कि उनके एक भक्त हैं। रुद्र 63 नयनार संतों में से एक थे जो कि शिवजी की अटूट भक्ति के लिए जाने जाते थे। प्रभास का कन्नप्पा फिल्म में कैमियो है। अक्षय कुमार मूवी में शिव बने हैं और काजल अग्रवाल उनकी पत्नी पार्वती के रोल में हैं।
कन्नप्पा की कहानी
एक कथा के मुताबिक कन्नप्पा जिनका असली नाम थिन्नन था, वह एक शिकारी थे। एक बार जंगली सुअर का शिकार करते हुए वह अपने साथियों से बिछड़ गए। भटककर वह जंगल में ऐसी जगह पहुंचे जहां शिवजी का मंदिर था। छोटे से मंदिर में सिर्फ एक शिवलिंग था। शिव लिंग देखकर थिन्नन को उनके प्रति आकर्षण महसूस हुआ। वह वहां उनके साथ रहने लगे और किसी न किसी तरह सेवा करके सुकून मिलता। उन्हें पूजा-पाठ का तरीका नहीं पता था बस मन में भक्ति थी।
जब पुजारी को दिखा मांस
थिन्नन शिवभक्ति में शिवलिंग पर मांस भी चढ़ाते और साथ में खाते भी। पास के गांव के एक पंडित उस मंदिर की देखरेख करते थे। हालांकि मंदिर की दूरी उनके घर से काफी ज्यादा थी तो वह वहां 15 दिन में आते-जाते रहते थे। वह ब्राह्मण भी शिवजी के भक्त थे। वह हर रोज सेवा करने आते तो कुछ अजीब दिखता। पहले दिन मांस देखकर उन्हें लगा कि किसी जानवर का काम होगा। वह मंदिर साफ करके चले गए।
मुंह में पानी भरकर शिवलिंग को नहलाया
अगले दिन थिन्नन और मीट लाए। वह वहां अकेले थे तो शिवजी से ही बातें करते इसमें उन्हें सुकून मिलता था। वह वहां रोज आने लगे और कभी फूल तो कभी कुछ और चढ़ाते। एक दिन थिन्नन को पानी की धारा दिखी तो शिवजी पर जल चढ़ाने का विचार आया। उनके पास बर्तन नहीं था तो पानी मुंह में भरकर लाए और शिवजी पर चढ़ा दिया। पंडित जब वहां आए तो मंदिर में ये सब देखकर उन्हें लगा कि किसी जानवर नहीं बल्कि इंसान का काम है।
शिवलिंग के सामने रोए ब्राह्मण
ब्राह्मण दुखी होकर शिवजी के सामने रोने लगे। उन्होंने शिवलिंग से कहा, 'हे ईश्वर आप इतने पवित्र हैं और अपने साथ ये सब क्यों होने दे रहे हैं। आप ब्रह्मांड को बचाने वाले हैं और खुद को ही नहीं बचा पा रहे।'
शिवजी ने दिया जवाब
शिवजी अपने भक्त के दुख से प्रभावित हो गए और उनके मन में संदेश भेजा, 'हे भक्त तुम जिसे अपवित्र समझ रहे हो वो मेरे दूसरे भक्त का मेरे लिए प्यार है। उसे पूजा करने की विधि नहीं पता लेकिन मन प्यार से भरा है। मैं उसकी भक्ति से अभिभूत हूं और वो जो भी चढ़ाता है सब स्वीकार कर लेता हूं। अगर तुम देखना चाहते हो कि वह मुझे कितना प्यार करता है तो कहीं छिप जाओ फिर देखना। उसके आने का समय हो गया है।'
जब शिवजी की आंख से निकला खून
ब्राह्मण छिप जाते हैं। शिवजी थिन्नन की परीक्षा लेने का फैसला लेते हैं। थिन्नन शिवजी को मुंह के पानी से नहलाकर अपनी तरह से पूजा करते हैं तभी उन्हें लगता है कि शिवजी की बाईं आंख से कुछ निकल रहा है। वह आसपास से जड़ी-बूटी लगाते हैं। कुछ ठीक नहीं होता बल्कि खून के जैसा कुछ निकलने लगता है। थिन्नन डर जाते हैं और जब कोई उपाय नहीं कर पाते तो वह अपनी आंख चाकू से निकालकर शिवजी की आंख की जगह लगा देते हैं। खून बंद हो जाता है तो थिन्नन बहुत खुश होते हैं।

क्यों रखा शिवलिंग पर पैर
तभी वह देखते हैं कि शिवजी की दूसरी आंख से खून निकल रहा है। थिन्नन परेशान होकर अपनी दूसरी आंख भी निकाल देते हैं। अब उन्हें दिखाई देना बंद हो चुका था तो समझ नहीं आता कि शिवजी को कहां आंख लगाएं। वह अपने पैर से शिवजी की आंख की जगह टटोलते हैं और दूसरी आंख लगाने चलते हैं। शिवजी से ये नहीं देखा जाता और वह थिन्नन की दोनों आंखें वापस कर देते हैं। यह देखकर दूर छिपे ब्राह्मण भी आ जाते हैं और दोनों शिवजी से आशीर्वाद लेते हैं। थिन्नन के शिवजी को आंख देने के बाद उनका नाम कन्नप्पा पड़ा। तमिल में कन्न का मतलब आंख होता है। (सोर्स: YogaMysticism.Today)
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