नौकरी के साथ तैयारी को दिया जी-जान, UPSC में लाईं 11वीं रैंक; बन गईं देश की डिप्लोमैट
इंटरव्यू राउंड तक पहुंचकर भी फेल होना आसान नहीं होता, पर पूज्य प्रियदर्शनी ने इस कड़वे अनुभव को अपनी ताकत बना लिया। जॉब के साथ तैयारी जारी रखी और UPSC CSE 2018 में 11वीं रैंक हासिल की।

UPSC Success Story: सिविल सर्विसेज की राह जितनी आकर्षक दिखती है, उतनी ही कठिन भी होती है। इस परीक्षा में कामयाबी का रास्ता केवल किताबों से नहीं, बल्कि धैर्य, आत्मविश्वास और बार-बार गिरकर फिर उठने की हिम्मत से बनता है। आईएफएस पूज्य प्रियदर्शनी की कहानी इस बात का सबसे शानदार उदाहरण है। पूज्य की शुरुआती पढ़ाई दिल्ली के प्रतिष्ठित श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से हुई जहां से उन्होंने बी.कॉम किया। इसके बाद उन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी, न्यूयॉर्क से पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर्स किया। साल 2013 में ग्रेजुएशन के आखिरी साल में ही उन्होंने UPSC देने का मन बना लिया और पहला अटेम्प्ट दिया, लेकिन तैयारी अधूरी थी और नतीजतन चयन नहीं हो सका।
काम के साथ चलती रही तैयारी
पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद पूज्य ने एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी शुरू कर दी। करीब ढाई साल तक नौकरी के साथ-साथ वे परीक्षा की तैयारी भी करती रहीं। 2016 में उन्होंने दोबारा परीक्षा दी और इस बार इंटरव्यू राउंड तक पहुंचीं। लेकिन अफसोस, फाइनल लिस्ट से बाहर रह गईं और सिर्फ रिजर्व लिस्ट में नाम आया।
सबसे कठिन साल रहा 2017
2016 में इतनी नजदीक जाकर चूकने का असर इतना गहरा था कि अगले साल यानी 2017 में पूज्य प्रीलिम्स भी पास नहीं कर सकीं। उनका आत्मविश्वास पूरी तरह से टूट चुका था। उन्हें लगने लगा कि यूपीएससी की परीक्षा शायद उनके बस की बात नहीं है। इसी दौर में उन्होंने सिविल सेवा का सपना छोड़ने तक का विचार बना लिया। मगर पूज्य के माता-पिता दोनों ही सिविल सर्वेंट रहे हैं। उन्होंने बचपन से इस सेवा की गरिमा और जिम्मेदारी को देखा था, इसलिए ये सपना इतनी आसानी से टूटने वाला नहीं था। माता-पिता ने न सिर्फ हौसला दिया बल्कि दुबारा उठने की ताकत भी दी। उन्होंने खुद से सवाल पूछा, गलती कहां हुई? और उसी के जवाब ढूंढकर तैयारी में जुट गईं।
11वीं रैंक लाकर बनीं डिप्लोमैट
और फिर आया साल 2018, जब पूज्य ने न केवल UPSC परीक्षा पास की, बल्कि ऑल इंडिया रैंक 11 लाकर टॉपर्स की लिस्ट में शामिल हो गईं। उन्होंने सबसे प्रतिष्ठित पद आईएएस को ठुकराते हुए आईएफएस यानी भारतीय विदेश सेवा को चुना और आज भारत की डिप्लोमैट के तौर पर तैनात हैं। सबसे खास बात ये थी कि उन्होंने अपनी नौकरी कभी नहीं छोड़ी, बल्कि जॉब और पढ़ाई के बीच संतुलन बनाकर आगे बढ़ती रहीं।