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अमेरिका से व्यापार वार्ता में कहां फंसा पेच, भारत बरत रहा सावधानी

भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ता अपने अंतिम चरण में है लेकिन कृषि, डेयरी, डिजिटल और चिकित्सा सेवाओं जैसे संवेदनशील क्षेत्रों को लेकर दोनों देशों के बीच पेच फंसा हुआ है।

Drigraj Madheshia हिन्दुस्तान टीमThu, 12 June 2025 07:05 AM
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अमेरिका से व्यापार वार्ता में कहां फंसा पेच, भारत बरत रहा सावधानी

भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ता अपने अंतिम चरण में है लेकिन कृषि, डेयरी, डिजिटल और चिकित्सा सेवाओं जैसे संवेदनशील क्षेत्रों को लेकर दोनों देशों के बीच पेच फंसा हुआ है। अमेरिका भारतीय बाजार में इन क्षेत्रों तक पहुंच चाहता है, जबकि भारत संतुलित समझौते की मांग कर रहा है ताकि ग्रामीण रोजगार और खाद्य सुरक्षा जैसे अहम मुद्दे सुरक्षित रह सकें। मामले से जुड़े तीन आधिकारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी।

भारत बरत रहा सावधानी

भारत ने अब तक डेयरी और कृषि जैसे क्षेत्रों को खोलने में सावधानी बरती है, क्योंकि इनका सीधा असर ग्रामीण जीवन और सामाजिक संरचना पर पड़ सकता है। वहीं, अमेरिकी पक्ष कुछ मामलों में ज्यादा ही दबाव बना रहा है। एक अधिकारी ने बताया कि बातचीत वैसी नहीं चल रही, जैसी उम्मीद थी। ये बातचीत दो-तरफा होनी थी, लेकिन अमेरिका का रुख ऐसा है जैसे वो कह रहा हो कि या तो हमारी बात मानो या छोड़ दो। भारत ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि व्यापार वार्ता में यदि संतुलन नहीं होगा, तो यह 13 फरवरी को दोनों देशों के बीच हुए संयुक्त बयान का उल्लंघन माना जाएगा, जिसमें सितंबर 2025 तक लाभकारी समझौते को अंतिम रूप देने पर सहमति बनी थी।

क्या है भारत की आपत्तियां

भारत का कहना है कि डेयरी और कृषि जैसे क्षेत्रों को बिना ठोस नियंत्रण के विदेशी प्रतिस्पर्धा के लिए खोलना जनहित में नहीं है। खासतौर पर अमेरिकी डेयरी उत्पादों में मांस आधारित पशु आहार का उपयोग भारत के लिए बड़ा मुद्दा है। भारत ने साफ कर दिया है कि जब तक अमेरिका अपने जानवरों को मांसाहारी चारा देना बंद नहीं करता, या फिर भारत की शाकाहारी प्रमाणन प्रक्रिया नहीं अपनाता, तब तक अमेरिकी दूध, चीज और बटर जैसे उत्पाद भारत में इजाजत नहीं पाएंगे। हालांकि, भारत ने संकेत दिए हैं कि वह कुछ नट्स और फलों पर टैरिफ छूट देने पर विचार कर सकता है।

अमेरिका का अडंगा

वहीं, अमेरिका चाहता है कि भारत अमेरिकी कृषि उत्पादों, डेयरी उत्पादों और झींगा पर शुल्क में भारी कमी करे और गैर-शुल्क बाधाओं को हटाए, जो वर्तमान में अमेरिकी डेयरी निर्यात को रोकती हैं। लेकिन इसके बदले में अमेरिका भारतीय सामान के लिए कोई खास रियायत नहीं दे रहा। वहीं, भारतीय वार्ताकारों ने अमेरिका की सख्त स्वास्थ्य, दवा और फाइटोसैनिटरी नीतियों को लेकर भी चिंता जताई है। इसमें कुछ फलों के खराब होने पर पूरी खेप नष्ट करने जैसे नियम शामिल हैं।

अब वर्चुअल तरीके से बातचीत होगी

4 से 10 जून तक अमेरिकी दल दिल्ली में बातचीत के लिए मौजूद था। इस दल का नेतृत्व ब्रेंडन लिंच ने किया। अब टीम का एक हिस्सा वापस लौट चुका है। बाकी सदस्य दिल्ली में ठोस वादे मांग रहे हैं कि भारत इन संवेदनशील सेक्टरों को अमेरिकी बाजार के लिए कितना खोलने को तैयार है। वहीं, बातचीत अब वर्चुअल मोड में जारी रहेगी। भारत के पास अब भी लगभग एक महीना है ताकि आठ जुलाई से पहले व्यापार समझौते का पहला चरण पूरा किया जा सके। एक अधिकारी ने कहा, सौदा हो सकता है, क्योंकि दोनों देशों की मंशा है। हम कोशिश कर रहे हैं कि बातचीत जारी रहे।'

भारत का निर्यात 825 अरब डॉलर के पार होगा

बर्न (स्विट्जरलैंड)। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि विश्व व्यापार गंभीर भू-राजनीतिक चुनौतियों का सामना कर रहा है, लेकिन भारत ऐसे समय में लगातार विजेता के रूप में उभरा है और देश का वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात निश्चित रूप से 2025-26 में 825 अरब डॉलर को पार कर जाएगा।

देश का समग्र निर्यात 2023-24 में 778 अरब अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 2024-25 में 825 अरब अमेरिकी डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया। गोयल ने कहा कि दुनिया गंभीर भू-राजनीतिक चुनौतियों से गुजर रही है लेकिन भारत हमेशा चुनौतीपूर्ण समय में विजेता के रूप में उभरा है। गत वित्त वर्ष के आंकड़े पार करने की संभावना संबंधी सवाल पर उन्होंने कहा, '' हम निश्चित रूप से इसे पार करने में सक्षम होंगे।''

अमेरिका-चीन में विवाद सुलझाने पर सहमति बनी

लंदन। अमेरिका और चीन के वरिष्ठ वार्ताकारों ने अपनी व्यापार वार्ता को पटरी पर लाने के लिए एक रूपरेखा पर सैद्धांतिक रूप से सहमति बनने की घोषणा की है। यह घोषणा ब्रिटेन की राजधानी लंदन में दो दिन की वार्ता के अंत में की गई। यह वार्ता मंगलवार देर रात समाप्त हुई। दो दिन चलीं बैठकें खनिज एवं प्रौद्योगिकी निर्यात पर विवादों को हल करने का तरीका खोजने पर केंद्रित थीं, जिससे पिछले महीने जिनेवा में व्यापार पर हुए नाजुक समझौते को हिला दिया था। यह स्पष्ट नहीं है कि अमेरिका के साथ चीन के बड़े व्यापार अधिशेष पर अधिक बुनियादी मतभेदों पर कोई प्रगति हुई या नहीं।

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