ऐतिहासिक घोटाले में ₹1,388 की भारी रकम चुकाकर शांति चाहता है एनएसई
यह भारतीय पूंजी बाजार का ऐतिहासिक घोटाला माना जाता है। अप्रैल 2019 में सेबी ने एनएसई, उसके तत्कालीन अधिकारियों और ब्रोकर ओपीजी सिक्योरिटीज के खिलाफ कार्रवाई की। को-लोकेशन केस के लिए ₹1,165 करोड़ और डार्क फाइबर केस के लिए ₹223 करोड़ चुकाकर एनएसई मामले को शांत करना चाहता है।

नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) ने सेबी के सामने दो बड़े मामलों (को-लोकेशन और डार्क फाइबर) को शांत करने के लिए ₹1,388 करोड़चुकाने का प्रस्ताव रखा है। यह अब तक किसी कंपनी द्वारा दी गई सबसे बड़ी सेटलमेंट राशिहै। अगर सेबी मान जाती है, तो एनएसई का लंबित आईपीओ का रास्ता साफ हो सकता है।
कितना पैसा किस मामले के लिए?
इकनॉमिक टाइम्स के मुताबिक एनएसई ने फरवरी में नए सेबी चेयरमैन तुहिन कांत पांडे के आने के बाद अपना आईपीओ प्लान फिर से जिंदा किया है। को-लोकेशन केस के लिए ₹1,165 करोड़ और डार्क फाइबर केस के लिए ₹223 करोड़ चुकाकर एनएसई मामले को शांत करना चाहता है।
को-लोकेशन मामला क्या था?
2015 में एक व्हिसलब्लोअर ने सेबी को बताया कि एनएसई के ट्रेडिंग सिस्टम में गड़बड़ी हो सकती है। सेबी की जांच में पता चला कि कुछ ब्रोकर्स को एनएसई के दूसरे सर्वर तक विशेष पहुंच मिली हुई थी। इससे वे दूसरे ट्रेडर्स से तेजी से ट्रेड्स कर पा रहे थे, जो निष्पक्ष नहीं था। यह भारतीय पूंजी बाजार का ऐतिहासिक घोटाला माना जाता है। अप्रैल 2019 में सेबी ने एनएसई, उसके तत्कालीन अधिकारियों और ब्रोकर ओपीजी सिक्योरिटीज के खिलाफ कार्रवाई की।
डार्क फाइबर मामला क्या था?
डार्क फाइबर अनयूज्ड ऑप्टिकल फाइबर केबल्स होती हैं, जिन्हें किराए पर दिया जा सकता है। 2015 में एनएसई ने एक कंपनी संपर्क इंफोटेनमेंटको ब्रोकर्स (वे2वेल्थ और जीकेएन सिक्योरिटीज) के लिए डार्क फाइबर बिछाने की अनुमति दी। मगर संपर्क कंपनी दूरसंचार विभाग से मान्यता प्राप्त नहीं थी। सेबी ने पाया कि एनएसई अधिकारियों ने बिना जांच किए ही अनुमति दे दी। 2019 में सेबी ने एनएसई और उसके पूर्व प्रमुखों सहित 16 लोगों पर जुर्माना लगाया।
अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा मामला
एनएसई और अन्य ने सेबी के फैसलों के खिलाफ सिक्योरिटीज अपीलेट ट्रिब्यूनल (SAT)में अपील की। SAT ने कुछ राहत दी, तो सेबी सुप्रीम कोर्ट चली गई। अगर सेटलमेंट होता है, तो सुप्रीम कोर्ट में लंबित ये मामले वापस ले लिए जाएंगे।
सेटलमेंट क्या है मतलब ?
यह एक कोर्ट-बाहर समझौता है। इसमें आरोपी बिना अपना दोष स्वीकारे या माने, सिर्फ एक फीस चुकाकर मामला खत्म कर सकता है। पिछले साल भी एनएसई ने एक और मामले में ₹643 करोड़ सेबी को दिए थे।
आईपीओ के लिए अभी और रास्ते साफ करने होंगे
सेबी को-लोकेशन और डार्क फाइबर के अलावा एनएसई की तकनीकी खामियों(ग्लिचेज) और प्रबंधन पर भी चिंताज ताती रही है। एक्सचेंज को आईपीओ की अंतिम हरी झंडी पाने से पहले इन मुद्दों का भी हल सेबी के साथ निकालना होगा।