मिलकर शक्ति बढ़ाएं
गुरु वशिष्ठ जी के आशीर्वाद से राम जी पहली बार घर से निकले थे ऋषि विश्वामित्र जी के साथ, ऋषि व मानवता की सेवा के लिए। राम जी के मुख से बोल भी तभी पहली बार निकले थे…

गुरु वशिष्ठ जी के आशीर्वाद से राम जी पहली बार घर से निकले थे ऋषि विश्वामित्र जी के साथ, ऋषि व मानवता की सेवा के लिए। राम जी के मुख से बोल भी तभी पहली बार निकले थे। तुलसीदास जी ने पहली बार राम जी को बोलते हुए विश्वामित्र जी के साथ ही दिखाया है।
वन-आश्रम में जब यज्ञ प्रारंभ होने वाला था, तब सबसे पहले राम जी ने जो कहा, उसे तुलसीदास जी ने लिखा। वह सावधान थे कि जब राम-वचन की शुरुआत करूंगा, तो जिसके लिए ईश्वर ने अवतार लिया है, उसके लिए करूंगा। सबसे पहले राम जी ने कहा – निर्भय जग्य करहु तुम्ह जाई। अर्थात, आप निर्भय होकर यज्ञ कीजिए। रामजी ने विश्वामित्र जी से कहा, जो राक्षस आएंगे, उन्हें मैं कालकलवित कर दूंगा।
यज्ञ धर्म का सबसे बड़ा कृत्य है। देवता जितना देते हैं, उसके बदले में हम भी उन्हें दें। उनका अभिनंदन करें, तब हमारी मानवता, हमारा व्यक्तित्व देवत्व को प्राप्त करेगा। जीवन की सबसे बड़ी ऊंचाई यही होती है कि हम अपने बच्चे को कैसे ऊंचाई तक ले जाएं, तो विश्वामित्र जी का और वशिष्ठ जी, दोनों का ऋषित्व मिलकर संसार के उपकार का मार्ग प्रशस्त करता है। लोग कहा करते हैं कि राम जी अद्भुत हैं, ऋषि के समान हैं। उन्होंने विश्वामित्र जी और वशिष्ठ जी को मिला दिया। कौशल्या और कैकयी की दूरी को कम कर दिया। उत्तर और दक्षिण को जोड़ दिया। वन, ग्राम और नगर को मिला दिया।
आज राम जी जैसा सोचने की जरूरत है। विश्वामित्र और वशिष्ठ जी की तरह सोचने की जरूरत है। संतों और आचार्यों के जीवन का मुख्य उद्देश्य धर्म की स्थापना है, लेकिन अब तो सभी लोग धन एकत्र करने लगे हैं कि कैसे मठ बड़ा हो जाए, कैसे गाड़ियां बड़ी हो जाएं।
राम जी ने सबको जोड़ा और संपूर्ण मानवता के लिए अर्पित किया। असंख्य जीवों का उद्धार किया। कैसी अनुपमता जीवन में प्रकट हुई! इसी तरह के परिवर्तन आज के संत समाज में होने चाहिए। ऐसा हुआ, तो पूरे विश्व को लाभ होगा। धन, विद्या, शक्ति इत्यादि सबमें वृद्धि होगी। आज जो अभाव है, एक दूसरे को सहन नहीं करने से उपजा अभाव है। कहीं-कहीं लगता है कि केवल हम हम ही हों, दूसरा कोई न हो, यह गलत प्रवृत्ति है।
विश्वामित्र जी कहते थे कि हमारे एक हाथ में वेद है और दूसरे में धनुष। शास्त्र भी है और शक्ति भी है। जिसके जीवन में केवल शास्त्र ही हो, उसका जीवन अधूरा है और जिसके जीवन में केवल शक्ति हो, उसका जीवन अधूरा है। ध्यान देने की बात है कि हमने धन बल को बढ़ाया, तप बल को नहीं बढ़ाया, इसलिए देश लंबे समय के लिए गुलाम हो गया। भारतीय संस्कृति में केवल पढ़ना या शास्त्र तैयार करना ही पर्याप्त नहीं है। हम केवल ज्ञानवान ही नहीं बनें, हमारे पास धन भी रहना चाहिए।
रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।