Hindi Newsओपिनियन hindustan meri kahani column 22 June 2025

एक पुस्तक पढ़कर पा लिया सब कुछ

असंख्य लोगों को पुस्तकों से कोई प्रेम नहीं होता, क्योंकि उन्हें पता नहीं कि पुस्तकें किसी को गांव के चबूतरे से उठाकर चांद पर पहुंचा सकती हैं। उन 22 वर्षीय युवा को भी यह मालूम नहीं था…

Hindustan लाइव हिन्दुस्तानSat, 21 June 2025 11:12 PM
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एक पुस्तक पढ़कर पा लिया सब कुछ

असंख्य लोगों को पुस्तकों से कोई प्रेम नहीं होता, क्योंकि उन्हें पता नहीं कि पुस्तकें किसी को गांव के चबूतरे से उठाकर चांद पर पहुंचा सकती हैं। उन 22 वर्षीय युवा को भी यह मालूम नहीं था। वह ऐसी पश्चिमी संस्कृति में पले-बढ़े थे, जिसमें भौतिकता पुरजोर हावी थी। तमाम लोग धन के पीछे दौड़े चले जा रहे थे। अमेरिका दुनिया में सबसे धनी देश होने की ओर अग्रसर था। तमाम रिश्ते दौलत की बुनियाद पर ही सांस लेने लगे थे। ऐसा दुखद माहौल अपने चारों ओर देख वह सुदर्शन अमेरिकी युवा बेचैन हो जाता था कि जीवन में मानवता का ही रस नहीं है। भीड़ जितनी गति से बढ़ रही है, उससे कई गुना ज्यादा रफ्तार से भाव-स्वभाव का क्षरण हो रहा है। क्या यह दुनिया ऐसी ही है?

ऐसे प्रश्नों से परेशान युवा के हाथ संयोग से एक पुस्तक आई, जिसका नाम था, एक योगी की आत्मकथा। उस पुस्तक को वह पढ़ते चले गए। मानवीयता का अध्यात्म से कैसा चमत्कारिक संबंध है! पहली बार उन्हें अध्यात्म की शक्ति का आभास हुआ। वह चकित थे कि पश्चिमी संस्कृति में अध्यात्म को कोई शक्ति ही नहीं मानता है। भौतिकता से कभी संतोष नहीं होता, पर अध्यात्म की शक्ति जिस क्षण हृदय का सहज स्पर्श करती है, तन-मन अनायास खिलने लगता है। एक योगी की आत्मकथा में अनेक योगियों की आत्मकथा समाहित थी। गागर में सागर समान उस पुस्तक में रोम-रोम स्नान कर रहा था।

इस युवा जेम्स डोनाल्ड वाल्टर्स की आत्मा में वह पुस्तक गूंजने लगी। कभी उनकी आंखों में खुशी से आंसू उमड़ते थे, तो कभी वह ज्ञान के आनंद से हंसने लगते थे। आनंद की हंसी हंसते हुए रोने लगते थे। एक-एक कर तीन दिन बीत गए, न कुछ खाने का मन होता था और न नींद आती थी। जब वह पैदल चलते थे, तो पांव जमीन पर पूरे नहीं पड़ते थे। ऐसा लगता था, मानो पैरों की उंगलियों के सहारे उड़ने लगे। उस पुस्तक में उड़ने वाले योगी भी थे। ऐसे योगी भी थे, जिन्होंने भोजन का त्याग कर दिया था। ऐसे योगी भी थे, जिन्हें सब कुछ दिखता था, तो ऐसे भी थे, जो अमर मालूम पड़ते थे। क्या योग मनुष्य को इतना बलशाली और सुखमय बना देता है? वह सोच में पड़ गए कि क्या वाकई ऐसा होता है? अगर ऐसा थोड़ा भी होता है, तो बहुत अच्छा होता है। मनुष्यता का सर्वोच्च आनंद अध्यात्म में ही है।

उस पुस्तक ने वाल्टर्स को नए संसार में ला खड़ा किया। भौतिक संसार हाथ से फिसलने लगा। अतीत से नाता टूटने लगा। वाल्टर्स ने निर्णय कर लिया कि मुझे योग करना है। पता नहीं, योगी बन पाऊं या नहीं, पर मुझे हर हाल में योग करना है।

यह संयोग की बात थी कि उस पुस्तक के लेखक महान योगी परमहंस योगानंद उन दिनों लॉस एंजिल्स में ही विराजमान थे। पुस्तक के एक-एक अक्षर को मन-मस्तिष्क में उतारने के अगले ही दिन वाल्टर्स ने न्यूयॉर्क से लॉस एंजिल्स के लिए बस पकड़ ली। सब कुछ पीछे छोड़ चले, इस विश्वास के साथ कि परमहंस योगानंद उन्हें वह सब देंगे, जो उन्हें चाहिए।

लॉस एंजिल्स में योगानंद बहुत व्यस्त थे। तीन महीने तक किसी नए व्यक्ति से मिलने का उनके पास समय न था। वाल्टर्स से कह दिया गया कि अभी आपकी भेंट नहीं हो सकती, पर यह संयोग की बात है कि स्वयं योगानंद ने अपने युवा अमेरिकी आगंतुक को मिलने के लिए बुला लिया। खूबसूरत हॉलीवुड चर्च में मधुर मुलाकात हुई। गुरु मानो नए शिष्य की प्रतीक्षा में थे। पहली भेंट में ही गुरु ने कह दिया कि तुम निर्मल हृदय हो, तुम्हें अहंकार छू नहीं सकता और लगता है, तुम पहले से ही मेरे शिष्य हो।

अगले ही दिन वाल्टर्स को दीक्षा प्राप्त हुई और नाम मिला क्रियानंद। कुछ ही दिनों में साधु वेषधारी स्वामी क्रियानंद योग क्रियाओं में ढल गए। गुरु के सान्निध्य में तेजी से ज्ञान अर्जित किया और गुरु के आदेश से योग कक्षाएं लेने लगे। गुरु को प्राप्त होने वाले पत्रों के उत्तर भी वह लिखने लगे। एक पुस्तक के प्रेम में पूरा जीवन ही बदल गया। योगानंद के अध्यात्म संगठन में क्रियानंद को बड़ी भूमिका प्राप्त हुई।

योगानंद जब संसार से गए, तब क्रियानंद उनके निकट ही थे। वह भारत में भी रहे और लौटकर नेवादा सिटी, कैलिफोर्निया के पास 40 एकड़ में अपना आनंद विलेज बसाया। योग-अध्यात्म के लिए जीवन अर्पित कर दिया। करुणा और विनम्रता जैसे विषयों पर कई गीत व दर्जनों पुस्तकें लिखीं। बुद्धि से प्रखर स्वामी क्रियानंद (1926-2013) अंग्रेजी, इतालवी, रोमानियाई, ग्रीक, फ्रेंच, स्पेनिश, जर्मन, हिंदी, बांग्ला और इंडोनेशियाई भाषा बोलते थे। वह संगति सुधारने पर सबसे ज्यादा जोर देते थे और बार-बार यह कहते थे कि आध्यात्मिक अज्ञानता सबसे बड़ा पाप है। यह वही पाप है, जो अन्य सभी पापों को संभव बनाता है।

प्रस्तुति : ज्ञानेश उपाध्याय

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