Hindi Newsओपिनियन ब्लॉगHindustan meri kahani column Story 08 June 2025

जब साफ और सुंदर बोलने लगा रेडियो

माहौल से मन बनता है। जो लोग अपने मनमाफिक कामयाब नहीं हो पाते हैं, वे अक्सर कहते हैं कि मुझे सही माहौल नहीं मिला। वाकई, प्यार-स्नेह का परिवेश मिले, तो बच्चे एक-दूजे के प्रति संवेदना के साथ बड़े होते हैं…

Hindustan लाइव हिन्दुस्तानSat, 7 June 2025 11:24 PM
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जब साफ और सुंदर बोलने लगा रेडियो

माहौल से मन बनता है। जो लोग अपने मनमाफिक कामयाब नहीं हो पाते हैं, वे अक्सर कहते हैं कि मुझे सही माहौल नहीं मिला। वाकई, प्यार-स्नेह का परिवेश मिले, तो बच्चे एक-दूजे के प्रति संवेदना के साथ बड़े होते हैं और अगर कहीं दिन-रात कट्टरता की कांव-कांव ही हासिल हो, तो फिर समाज में मार-काट मचाने को तैयार पीढ़ियों का बोलबाला हो जाता है।

सौभाग्य की बात है कि उस अमेरिकी बालक को घर में पढ़ने-लिखने का अच्छा माहौल मिला था। एक दिन ग्यारह साल के उस बालक ने गौर किया कि सारे लोग एक अखबार में छपी खबर को बार-बार पढ़कर चर्चा कर रहे हैं। खुशी मना रहे हैं, कह रहे हैं कि क्रांति हो गई। बगैर किसी तार के एक आवाज दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुंच गई। कोई मारकोनी नाम के वैज्ञानिक हैं, जिन्होंने अपनी प्रयोगशाला से एक संदेश भेजा और उसे 3,500 किलोमीटर दूर सुना गया। इतालवी भौतिकशास्त्री मारकोनी के सारे आलोचक एक स्वर में बोल रहे थे कि पृथ्वी की गोलाई की वजह से कोई भी प्रसारण 320 किलोमीटर से ज्यादा दूरी तक नहीं पहुंचेगा, पर मारकोनी ने साबित कर दिया कि गोलाई या पृथ्वी की वक्रता से कोई फर्क नहीं पड़ता है। रेडियो तरंगों को रोका नहीं जा सकता। तरंगे ऐसी हैं कि जहां-जहां तक वायुमंडल है, वहां-वहां तक पलक झपकते सफर कर सकती हैं। वह बालक यह सोच-सोचकर दंग था कि किसी संकेत को बगैर तार के तत्काल एक जगह से दूसरी जगह कैसे पहुंचाया जा सकता है? मारकोनी ने एक संकेत को इंग्लैंड के कॉर्नवाल से कनाडा के न्यूफाउंडलैंड तक पहुंचाया था। समाचारपत्र में वैसे तो विस्तार से समाचार था कि क्या, कब, कहां, कैसे हुआ, पर मन को प्राप्त सूचनाओं से संतोष नहीं था। वह जितना ज्यादा सोचता, उसके दिमाग में उतने ही ज्यादा मौलिक वैज्ञानिक सवाल उमड़ आते थे और जवाब पाने की बेचैनी हर तरफ से घेरने लगती थी।

कुछ देर चर्चा के बाद बाकी लोग अपने-अपने काम में लग गए, पर वह बालक रेडियो तरंगों में ही मानो हमेशा के लिए उलझ गया। उसने गौर किया कि केवल संकेत को यहां से वहां पहुंचा देने से बात नहीं बनेगी। बात तब बनेगी, जब संकेतों और आवाजों को एक से दूसरी जगह बहुत साफ-सुंदर ढंग से पहुंचाया जा सकेगा। उसने मन ही मन ठान लिया कि वह रेडियो तकनीक के और विकास के लिए काम करेगा। दूसरे ही दिन वह अपना अलग रेडियो स्टेशन बनाने की योजना के साथ आगे बढ़ चला।

कुछ ही महीनों में उसने रेडियो संचार के लिए घर के पिछवाड़े एक बहुत ऊंचा मजबूत एंटीना खड़ा कर लिया। वह अक्सर एंटीना के खंभे पर चढ़ जाता था। कभी किसी काम से चढ़ता था, तो कभी केवल सोचने के लिए ही चढ़ा रहता था। वह दूर-दूर तक देखता था और दूर-दूर से लोग भी उस खंभे को देखते थे। पड़ोसी भी परेशान हो जाते थे कि यह बालक खंभे पर चढ़कर जोखिम क्यों मोल ले रहा है? पड़ोसी बालक की मां को उलाहना देने या सावधान करने पहुंच जाते थे, पर मां को पता था कि उनका बेटा गलत नहीं है, विज्ञान की सही राह पर बढ़ रहा है। आज लोग भले उनके बेटे को सनकी समझ रहे हों, पर एक दिन आएगा, जब इसी बेटे को सभी सम्मान-स्नेह से देखेंगे।

और यही हुआ, एक दिन आया, जब उस बेटे एडविन होवार्ड आर्मस्ट्रांग ने 17 की उम्र में ही अपना अलग रेडियो स्टेशन विकसित कर लिया। निरंतर प्रयास से एडविन ने तीन बुनियादी इलेक्ट्रॉनिक सर्किट का आविष्कार किया, जो आज भी सभी आधुनिक रेडियो, रडार और टेलीविजन उपकरणों में इस्तेमाल किए जाते हैं। उन दिनों सबसे बड़ी समस्याओं में से एक यह थी कि कमजोर रेडियो संकेतों को कैसे बढ़ाया जाए और एडविन इसी दिशा में शोध में लगातार जुटे रहे। रेडियो संचार में स्वर धीरे-धीरे साफ होता चला गया और 11 जून, 1935 को वह दिन भी आया, जब एडविन ने एफएम रेडियो प्रसारण को सबके सामने साकार कर दिखाया। लोग रेडियो से साफ आवाज सुनकर स्तब्ध रह गए। एफएम रेडियो की आवाज को कम से कम डेढ़ सौ किलोमीटर की दूरी तक एकदम साफ सुना जा सकता था।

मारकोनी ने केवल संकेतों का प्रसार किया था, पर एडविन आर्मस्ट्रांग (1890-1954) ने आवाजों को उनके मूल आकार-प्रकार के साथ प्रसारित कर दिखाया। लोग दीवाने हो गए कि अब रेडियो पर साफ समाचारों के साथ संगीत का भी आनंद लिया जा सकता है। बोलने वाले की आह भी रेडियाे पर गूंज सकती है। एडविन बीस से ज्यादा वैज्ञानिक पेटेंट के मालिक थे और अपने आविष्कारों की वजह से ही देश के संपन्न लोगों में शुमार किए गए। हम आज जब रेडियो पर बेहतरीन प्रसारण सुनते हैं, तब एडविन आर्मस्ट्रांग की याद अनायास आती है।

प्रस्तुति : ज्ञानेश उपाध्याय

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