आतंकवाद पर दृढ़ता
चीन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक से निकले आखिरी संदेश में पहलगाम हमले का जिक्र न होना बहुत विचारणीय है। यही वजह है कि भारतीय रक्षा मंत्री ने इस दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया…

चीन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक से निकले आखिरी संदेश में पहलगाम हमले का जिक्र न होना बहुत विचारणीय है। यही वजह है कि भारतीय रक्षा मंत्री ने इस दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया। वास्तव में, यह एक और प्रमाण है कि आतंकवाद संबंधी भारतीय शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। इस बीच, अमरनाथ यात्रा से ठीक एक सप्ताह पहले गुरुवार को उधमपुर जिले में सुरक्षा बलों और आतंकियों के बीच मुठभेड़ सोचने पर मजबूर करती है। अमरनाथ यात्रा पहले ही आतंकियों के निशाने पर रही है और इस बार भी आतंकियों की गिद्ध-दृष्टि यात्रा पर हो, तो आश्चर्य की बात नहीं। विगत तीन दशक से तनाव की स्थिति में ही अमरनाथ यात्रा हो रही है। सुरक्षा बल शांतिपूर्ण यात्रा के लिए प्रयासरत हैं और उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यात्रा सफलतापूर्वक संपन हो।
भारत विश्व स्तर पर इस कोशिश में लगा रहता है कि आतंकवाद का दबाव कम हो, पर दुर्भाग्य से दुनिया में अनेक देश नफा-नुकसान देखकर ही इस पर अपना रुख तय करते हैं। वास्तव में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में भी यही हुआ है। त्रासद विडंबना है कि एससीओ में शामिल देशों ने पहलगाम हमले को तो छोड़ दिया, पर बलूचिस्तान को अपनी घोषणा में शामिल कर लिया। जाहिर है, संयुक्त घोषणा पर हस्ताक्षर न करना ही देशहित में है। ऐसे किसी भी प्रस्ताव या घोषणा को पूरी तरह से नजरंदाज कर देने में ही भलाई है। शंघाई सहयोग संगठन की घोषणा में अगर यह आरोप लगाया गया है कि बलूचिस्तान की गड़बड़ी में भारत शामिल है, तो फिर भारत को ज्यादा कड़ा रुख अख्तियार करने की जरूरत है। किसी भी विश्व स्तरीय सम्मेलन में जाने में कोई हर्ज नहीं है, वहां अपनी बात भी पुरजोर ढंग से रखनी चाहिए, पर वहां पारित होने वाले प्रस्तावों के प्रति ज्यादा संवेदनशील होने की जरूरत है। भारत जब अपनी इस नीति को कुछ दिनों तक दोहराएगा, तो इससे शत्रु मानसिकता वाले देशों को साफ संदेश जाएगा। जिस आतंकी हमले में 26 निर्दोष लोगों की जान चली गई, दो देशों के बीच युद्ध की नौबत आ गई, उस हमले को तवज्जो न देने की रणनीति दरअसल हकीकत के साथ मखौल है। आतंकियों का पोषण करने वाले देश का कथित सदाबहार मित्र चीन हकीकत नहीं देखना चाहता है। हकीकत न देखने की गलती पाकिस्तान ने भी की थी और हम देख रहे हैं कि अब वह गरीबी और कमजोरी का किस तरह शिकार हो रहा है। आतंकवाद का समर्थन करते हुए यह देश अन्य देशों की दया पर आश्रित होता जा रहा है। हमारे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चीन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में जवाब देते हुए उचित ही दोहराया है कि इस्लामाबाद को अपने भीतर झांकना चाहिए और भारत पर बेबुनियाद आरोप लगाने के बजाय आतंकवाद को समर्थन देना बंद कर देना चाहिए।
भारतीय नजरिये से देखें, तो अमेरिका और चीन, दोनों ही भारत में आतंकवाद के प्रति संवेदनशील नहीं हैं। भूलना नहीं चाहिए, पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति ने पाकिस्तानी सैन्य जनरल का अपने भवन में भोज केे साथ स्वागत किया है। ऐसे घटनाक्रमों से भारत के लिए संदेश साफ है कि वह आंतरिक स्तर पर आतंकियों को जरा भी फन फैलाने का मौका न दे। इसके साथ ही, राजनीतिक स्तर पर भी भारतीय नेताओं को देशहित में ज्यादा एकजुटता का परिचय देना होगा। विश्व में भारत हित की बात करने वालों को बल प्रदान करना होगा।
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।