बड़े कारगर साबित हो रहे छोटे-छोटे उद्योग
आज, यानी 27 जून को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग (एमएसएमई) दिवस है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित इस दिवस का मकसद है, दुनिया भर के देशों द्वारा अपने-अपने यहां एमएसएमई की बेहतरी पर ध्यान देना। ऐसा करना जरूरी है…

आज, यानी 27 जून को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग (एमएसएमई) दिवस है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित इस दिवस का मकसद है, दुनिया भर के देशों द्वारा अपने-अपने यहां एमएसएमई की बेहतरी पर ध्यान देना। ऐसा करना जरूरी है, क्योंकि आकलन है कि बढ़ते वैश्विक कार्यबल को संभालने के लिए साल 2030 तक 60 करोड़ नौकरियों की जरूरत होगी, जिनकी पूर्ति में एमएसएमई काफी कारगर साबित हो सकते हैं। यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र तमाम सरकारों से अपेक्षा करता है कि वे अपने यहां इन उद्यमों के विकास को पर्याप्त तवज्जो दें।
भारत में भी सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग आर्थिक वृद्धि और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। यह क्षेत्र न सिर्फ देश की जीडीपी में करीब 30 फीसदी का योगदान देता है, बल्कि कुल निर्यात में भी 45 फीसदी की अहम भागीदारी निभाता है। यह देश में लाखों लोगों के रोजगार का जरिया है, खासकर ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में तो ऐसे उद्योग कई घरों की आजीविका का एकमात्र साधन हैं। यही कारण है कि सरकारेें भी एमएसएमई उद्यमियों को अपना कारोबार शुरू करने और उनका विस्तार करने के लिए पर्याप्त सुविधाएं देती हैं। कहा भी जाता है कि ऐसे उद्योग ही देश के ग्रामीण व पिछड़े क्षेत्रों में औद्योगिकीकरण की नई राह तैयार करेंगे, जिससे क्षेत्रीय असंतुलन में कमी आएगी। इतना ही नहीं, नवाचार को बढ़ाने में भी ऐसे उद्योग काफी काम आते हैं। कौशल विकास को बढ़ावा देकर और नियमन-प्रक्रिया को सरल व लचीला बनाकर भी सरकारें ऐसे उद्योगों को राहत प्रदान करने का काम करती हैं।
हालांकि, यह भी सच है कि अपने यहां एमएसएमई क्षेत्र को कई चुनौतियों से जूझना पड़ता है। खासतौर से वित्त-पोषण एक बड़ी समस्या है। मगर इस समस्या का भी समाधान निकाला जा रहा है। इसी वर्ष फरवरी में जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण केंद्रीय बजट पेश कर रही थीं, तब उन्होंने एमएसएमई को देश के विकास का महत्वपूर्ण इंजन माना था और ऐसे कई प्रस्तावों का एलान किया, जिनसे इस क्षेत्र को अपने विस्तार का मौका मिलेगा। यहां तक कि उन्होंने इस क्षेत्र के लिए कर्ज की सीमा भी पांच करोड़ रुपये से बढ़ाकर 10 करोड़ कर दी और सूक्ष्म उद्योगों के लिए विशेष क्रेडिट कार्ड जारी करने की घोषणा की।
जाहिर है, भारत एमएसएमई क्षेत्र पर खासा ध्यान दे रहा है। संभवत: यह भी कारण है कि अपने देश में अब इन उद्यमों की संख्या बढ़कर 5.7 करोड़ हो गई है। कहने का मतलब यही है कि ये छोटे-छोटे उद्योग बड़े काम के साबित हो रहे हैं।
दीप्तांशु, टिप्पणीकार
सिर्फ बड़ी कंपनियों का ख्याल रखा जा रहा
इससे इनकार नहीं है कि केंद्र व राज्य सरकारें सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों के हित में कदम उठा रही हैं, लेकिन दिक्कत यह है कि जितना ख्याल बड़ी कंपनियों का रखा जाता है, उतना छोटे उद्योगों का नहीं रखा जाता। यकीन न हो, तो बीते कुछ वर्षों पर गहराई से नजर डाल देखिए। आपको कई सच्चाइयों का खुद-ब-खुद एहसास हो जाएगा।
दरअसल, भारत के साथ समस्या यह रही कि यहां ‘मेक इन इंडिया’ अभियान बहुत ज्यादा सफल नहीं हो सका। ‘आत्मनिर्भर भारत’ की भी कमोबेश यही गति रही। ऊपर से नोटबंदी जैसी नीतियां अपनाई गईं, जिन्होंने छोटे उद्यमियों की कमर तोड़ दी, क्योंकि ये छोटे-छोटे उद्योग आमतौर पर नकदी लेन-देन में ही अपना कारोबार करते हैं। स्थिति यह रही कि नोटबंदी के दौरान एमएसएमई क्षेत्र की हजारों कंपनियों को अपना कारोबार समेटना पड़ा। इसके बाद जो थोड़ी-बहुत सांस बची थी, उसे जीएसटी द्वारा खत्म करने का प्रयास किया गया। ऐसे-ऐसे कानून बना दिए गए हैं, जिनके पालन में इन उद्योगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। उद्यमी इन कानूनों में ही उलझकर रह जाते हैं। उनके लिए जीएसटी रिटर्न भरना किसी चुनौती से कम नहीं है। निस्संदेह, इस दावे में सच्चाई हो सकती है कि इन कदमों से भारत में दो लाख फर्जी कंपनियों को बंद किया गया है। मगर सच यह भी है कि इन कंपनियों में वे छोटे-छोटे उद्योग भी शामिल हैं, जिनमें दो-चार या पांच लोग काम करते थे और जैसे-तैसे गुजारा करते थे। इन कंपनियों के बंद होने का एक नुकसान यह भी हुआ कि अब छोटी-छोटी चीजें अपने देश में कम बनने लगी हैं, ज्यादातार चीन से आयात की जाती हैं।
आज देश के एमएसएमई के सामने कई तरह की परेशानियां हैं। सबसे बड़ी समस्या वित्त से जुड़ी है। उनको बैंकों और सरकारी वित्तीय संस्थानों से पर्याप्त मदद नहीं मिल पाती। कर्ज की व्यवस्था जरूर की गई है, लेकिन इसकी प्रक्रिया में उद्यमियों को उलझाने की मानसिकता खत्म नहीं हुई। इसी तरह, बुनियादी ढांचे पर भी काफी काम किए जाने की जरूरत है। आज भी ये उद्यम बिजली, परिवहन, संचार जैसी बुनियादी जरूरतों से जूझते देखे जा सकते हैं। फिर, बाजार तक भी इनकी पहुंच उस तरह नहीं है, जैसी होनी चाहिए। सरकारें प्रयास जरूर करती हैं, लेकिन प्रोत्साहन के बजाय प्रतिस्पर्द्धा पर ज्यादा जोर दिया जाता है। कुल मिलाकर, अभी इन उद्योंगों की बेहतरी के लिए काफी काम किए जाने की जरूरत है। इन पर हमें ध्यान देना ही होगा, अन्यथा देश का समग्र विकास प्रभावित हो सकता है।
हृतेश मिश्र, टिप्पणीकार
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।