Hindi Newsबिहार न्यूज़This message should go to the public that Upendra Kushwaha advice on seat sharing in NDA

जनता के बीच यह मैसेज जाना चाहिए कि... एनडीए में सीट बंटवारे पर उपेंद्र कुशवाहा की दो टूक

एनडीए में सीट बंटवारे को लेकर रालोमो चीफ उपेंद्र कुशवाहा ने कहा सीट शेयरिंग समय पर हो जानी चाहिए। और जनता के बीच यह मैसेज जाना चाहिए कि एनडीए में शामिल दल और उनके नेता को सम्मान मिला है। सभी दल एकजुट हैं, तभी शाहबाद और मगध की सीटें जीत सकते हैं।

sandeep लाइव हिन्दुस्तान, पटनाMon, 9 June 2025 03:56 PM
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जनता के बीच यह मैसेज जाना चाहिए कि... एनडीए में सीट बंटवारे पर उपेंद्र कुशवाहा की दो टूक

बिहार एनडीए के सहयोगी और राष्ट्रीय लोक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि एनडीए के घटक दलों के बीच सीटों का बंटवारा समय से हो जाना चाहिए। साथ ही जनता के बीच यह मैसेज जाना चाहिए कि एनडीए में शामिल दल और उनके नेता को सम्मान मिला है। कुशवाहा ने कहा कि सीट आगे-पीछे हो सकती है, लेकिन एनडीए के सभी घटक दलों का एक स्वर होना चाहिए।

सोमवार को मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि शाहाबाद और मगध क्षेत्र में एनडीए के सभी दल एकजुट रहेंगे, तो सभी सीटों पर जीत होगी। एकजुटता का मैसेज नहीं जाने की स्थिति में ही एनडीए को नुकसान होगा। दरअसल लोकसभा चुनाव 2024 में शाहबाद और मगद क्षेत्र की सभी सीटों पर एनडीए को हार का सामना करना पड़ा था। चारों सीटों महागठबंधन के खाते में गई थी। जिसके लिए उपेंद्र कुशवाहा एनडीए में भीतरघात की बात कह चुके हैं। ऐसे में एक बार फिर से उन्होने एनडीए को आगाह किया है, कि जब गठबंधन के सभी दल एकजुट रहेंगे। तभी सभी सीटें जीत सकेंगे।

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इससे पहले शनिवार को उपेंद्र कुशवाहा ने मुजफ्फरपुर में विशाल रैली की थी। उन्होने कहा था कि अगले साल होने वाले संसदीय और विधानसभा क्षेत्र का परिसीमन को रोकने की साजिश रची जा रही है। इसके लिए दक्षिण भारत के राज्य बड़े पैमाने पर अभियान चला रहे हैं। परिसीमन नहीं होने का नुकसान सबसे अधिक उत्तर भारत के राज्यों को उठाना पड़ रहा है।

कुशवाहा ने कहा कि परिसीमन का आधार जनसंख्या होता है। लेकिन पिछले 50 सालों में किसी न किसी बहाने दो बार परिसीमन पर रोक लगाई गई। इसका नुकसान हिंदी पट्टी के राज्यों को विभिन्न योजनाओं में मिलने वाली राशि के नुकसान के तौर पर झेलना पड़ा है। क्योंकि परिसीमन नहीं होने से हिंदी पट्टी राज्यों में आज 31 लाख पर एक सांसद चुना जाता है।

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वहीं दक्षिण भारत के राज्यों में 21 लाख की आबादी पर एक सांसद होता है। इसका नुकसान सांसद और विधायक कोटे से विकास के लिए मिलने वाली राशि का नुकसान तो होता ही है।

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