मम्मा सभी बच्चों व प्रत्येक आत्मा के लिए रखतीं थीं समान की दृष्टि
सीवान, हिन्दुस्तान संवाददाता।बहुत जरूरी है आज इसको भेज दीजिएबहुत जरूरी है आज इसको भेज दीजिएबहुत जरूरी है आज इसको भेज दीजिए

सीवान, हिन्दुस्तान संवाददाता। शहर के महावीरी पथ स्थित परमात्म दर्शन भवन में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की स्थानीय शाखा में कार्यक्रम का आयोजन मंगलवार को किया गया। इस मौके पर संस्था की प्रथम महिला मुख्य प्रशासिका मातेश्वरी जगदंबा सरस्वती (मम्मा) की स्मृति दिवस अव्यक्त वातावरण में सभी यज्ञवत्स के बीच मनाया गया। मौके पर स्थानीय संचालिका बीके सुधा बहन ने मम्मा के जीवनी पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि मम्मा के नक्शे कदम पर चलना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि देना होगा। उन्होंने कहा कि मम्मा सभी बच्चों के लिए नहीं प्रत्येक आत्मा के लिए समान वह सम्मान की दृष्टि रखती थी।
उनकी आत्मिक उन्नति के लिए शुभ भावना शुभ कामना रखती, अपनी दृष्टि से अन्य को शांत करने की सामर्थ थी। उनके तर्क करने की शक्ति इतनी थी कि कोई उन्हें हरा नहीं सकता था। कहा कि मम्मा हमारे लिए अनगिनत उदाहरण छोड़ गई। हमें कर्मातीत अवस्था तक ले जाने के लिए प्रत्यक्ष साक्षी बनी। ऐसी अलौकिक, दिव्यता की मूर्ति थीं। अपने नाम के अनुरूप ही प्रेम की मूर्ति थीं। सिर्फ 17 साल की किशोर अवस्था में परमात्मा लग्न में रंग गई। ब्रह्मा बाबा ने उनकी लगन देखते ही उनसे जब पूछा की बच्ची तुम किससे शादी करना चाहोगी, तो उन्होंने कहा कि वह तो कृष्ण की ही राधे है। यही उनके अलौकिक जीवन का भरपूर रास्ता बना और प्रेरणा बन यही गुण उनको आगे की ओर बढ़ाता गया। इसी गुण के कारण 350 भाई बहनों की पालना की यज्ञ की संपूर्ण जिम्मेदारी बाबा ने राधे को सौंपी। इसी पालना के गुण के कारण यज्ञ वत्स उन्हें प्यार से मां-मां कहने लगे। आयु में उनसे बड़े भी उन्हें मम्मा ही पुकारते, यहां तक की ब्रह्मा बाबा भी मम्मा कहकर संबोधित करते। ब्रह्मा वंशावली की पहली संतान यज्ञ की आदि देवी मां जगदंबा गुणों में अलौकिक थीं। उनकी हां जी का पाठ इतना पक्का था कि चाहे किसी भी कार्य का अनुभव था या नहीं पर बाबा की हर बात को जी बाबा, जी बाबा कहकर निभाया और उदाहरण बनीं। मुरली की मस्ती थीं, उनके अनुसार मुरली ही परमात्मा से जुड़ने का आधार है। मुरली के प्रति श्रद्धा, विश्वास व नियम इतने पक्के थे कि जीवन के अंतिम चरणों में भी पूरी तैयार होकर बैठीं। नियम अनुसार मुरली सुनती थी क्योंकि वह कहती थी कि मुरली सुना कौन रहा है, हमें पढ़ा कौन रहा है, इतना प्यार व आधार था मुरली के प्रति उनका। मम्मा दृढ़तापूर्वक संपूर्ण और अटल निश्चिंत थीं। सबके साथ संस्कार मिलाकर चलने में परफेक्ट थी। मंच संचालन बीके रिंकी बहन ने किया। डॉ. पीके गिरि, बीके प्रेम भाई, सुभाष भाई, निर्मल भाई, अनिल भाई, ओमप्रकाश भाई, जयप्रकाश भाई तुलसी भाई समेत 200 भाई-बहनों ने मम्मा को पुष्पांजलि अर्पित की।
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