बोले पूर्णिया: सरकारी कर्मचारी का दर्जा मिले और हो स्थायीकरण
पूर्णिया जिले के जनवितरण विक्रेताओं को पिछले सात महीनों से कमीशन नहीं मिला है और वर्ष 2020 का लंबित बकाया भी अटका हुआ है। विक्रेताओं ने खराब गुणवत्ता के चावल और गेहूं की आपूर्ति के खिलाफ आवाज उठाई है।...

प्रस्तुति : मुकेश श्रीवास्तव
पूर्णिया जिले के जनवितरण विक्रेताओं की समस्याएं विकराल रूप लेती जा रही हैं। जिले के लगभग 1300 जनवितरण विक्रेताओं को न केवल पिछले सात माह से कमीशन की राशि नहीं मिली है, बल्कि वर्ष 2020 का लंबित बकाया का भुगतान भी अब तक नहीं हुआ है। इसके अलावा विक्रेताओं को गोदाम से अक्सर घटिया गुणवत्ता का चावल और गेहूं उपलब्ध कराया जाता है, जिसे वितरण करना उनके लिए चुनौती बन जाता है। अब देखना यह है कि सरकार और प्रशासन इन समस्याओं पर कब तक गंभीरता से कदम उठाते हैं। वर्षों से बकाया भुगतान और मूलभूत सुविधाओं के अभाव से जूझ रहे जनवितरण विक्रेताओं की मांगों को वाजिब माना जा रहा है। जरूरत है कि सरकार जल्द-से-जल्द उनकी समस्याओं का समाधान करे, ताकि गरीबों तक खाद्यान्न वितरण सुचारू रूप से जारी रह सके और विक्रेताओं का जीवन स्तर भी सुधर सके। यह बातें हिन्दुस्तान के बोले पूर्णिया संवाद के दौरान उभर कर सामने आईं।
पूर्णिया जिले के जनवितरण विक्रेताओं की समस्याएं दिनोंदिन विकराल रूप धारण करती जा रही हैं। विक्रेताओं का आरोप है कि केवल कागजी खानापूरी कर एरियर दर्शाया जा रहा है, लेकिन भुगतान के नाम पर हर बार सिर्फ आश्वासन ही मिलता है। विक्रेताओं का कहना है कि वे पिछले पांच वर्षों से लंबित भुगतान के लिए जिला प्रशासन से लेकर राज्य सरकार तक गुहार लगा चुके हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। इस बीच महंगाई लगातार बढ़ती जा रही है, जबकि उनकी आमदनी लगभग शून्य हो गई है।
विक्रेताओं ने मांग की कि यदि किसी जनवितरण विक्रेता का निधन हो जाए, तो उनके आश्रित को अनुकंपा के आधार पर बिना समय सीमा की बाध्यता के नियुक्त किया जाए। वर्तमान प्रणाली में अनावश्यक देरी और बाधाएं उत्पन्न होती हैं, जिससे मृतक विक्रेता के परिवार को गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है। विक्रेताओं की एक प्रमुख मांग यह भी है कि उन्हें सरकारी कर्मचारी का दर्जा दिया जाए और प्रति माह 50,000 रुपये मानदेय प्रदान किया जाए, ताकि वे सम्मानपूर्वक जीवन यापन कर सकें। उनका कहना है कि वर्तमान आर्थिक हालात में इससे कम राशि में परिवार का भरण-पोषण संभव नहीं है। विक्रेताओं का कहना है कि जनवितरण दुकानों के संचालन में लगने वाला गोदाम भाड़ा, नापतौल उपकरणों का खर्च और अन्य बुनियादी जरूरतों का बोझ भी उन्हीं पर है, जबकि उनका कमीशन समय पर नहीं मिलता। इस कारण वे दोहरा आर्थिक दबाव झेल रहे हैं। विक्रेताओं ने अफसोस जताया कि उनकी समस्याओं पर सरकार और प्रशासन दोनों की ओर से गंभीरता नहीं दिखाई जा रही है। कई बार ज्ञापन और आवेदन देने के बाद भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। विक्रेताओं ने चेतावनी दी है कि यदि मांगें शीघ्र पूरी नहीं की गईं, तो वे चरणबद्ध आंदोलन करने को बाध्य होंगे। उनका कहना है कि वे मजबूरी में राशन वितरण का कार्य कर रहे हैं। यदि बकाया भुगतान, स्थायीकरण और अन्य मूलभूत मांगें पूरी नहीं हुईं, तो वे सामूहिक रूप से दुकानें बंद करने पर भी विचार कर सकते हैं।
गोदाम से मिल रही खराब गुणवत्ता की चावल व गेहूं
अक्सर गोदाम से विक्रेताओं को घटिया गुणवत्ता का चावल और गेहूं प्रदान किया जाता है, जिससे उपभोक्ताओं के साथ विवाद की स्थिति बन जाती है। विक्रेताओं ने मांग की है कि गोदाम से केवल गुणवत्तापूर्ण खाद्यान्न की आपूर्ति सुनिश्चित की जाए, ताकि उपभोक्ता को बेहतर सामग्री मिले और विक्रेताओं की साख भी बनी रहे। विक्रेताओं का कहना है कि खाद्यान्न वितरण के लिए अनिवार्य पॉश मशीन की मरम्मत और रखरखाव का खर्च भी उन्हें ही उठाना पड़ता है, जबकि यह जिम्मेदारी संबंधित एजेंसी की होनी चाहिए। मशीन में होने वाली बिजली की खपत का बिल भी विक्रेताओं को ही भरना पड़ता है।
इनकी भी सुनिए
सरकार जनवितरण विक्रेताओं को सरकारी कर्मचारी का दर्जा दे और स्थायीकरण की प्रक्रिया शुरू करे।
- अनिल कुमार सिंह
सरकार जनवितरण विक्रेताओं को सरकारी कर्मचारी का दर्जा दे तथा 50 हजार रुपये मासिक मानदेय सुनिश्चित करे ।
- देव नारायण साह
जनवितरण विक्रेताओं को मिलने वाला कमीशन वर्ष 2020 का लंबित है। इससे आर्थिक कठिनाइयां हो रही हैं।
- आशुतोष कुमार
विक्रेताओं को न केवल सात माह से कमीशन नहीं मिला है, बल्कि वर्ष 2020 से लंबित एरियर का भी अब तक भुगतान नहीं हुआ है।
- अभय कुमार श्रीवास्तव
यदि किसी विक्रेता का निधन हो जाता है तो उसके आश्रित को अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति दी जाए, वह भी बिना समय सीमा की बाध्यता के।
- दिनेश सिंह
सरकार को जनवितरण दुकानों के संचालन के लिए गोदाम भाड़ा और माप-तौल कर्मचारियों का मानदेय भी देना चाहिए।
- भवानंद मिश्रा
विक्रेताओं को गोदाम से घटिया गुणवत्ता का चावल और गेहूं मिल रहा है, जिससे उपभोक्ताओं के साथ विवाद की स्थिति बन जाती है।
- विमल कुमार
हम बीते पांच वर्षों से बकाया भुगतान के लिए सरकार और प्रशासन से गुहार लगा रहे हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही। महंगाई बढ़ रही है और हमारी आय लगातार घट रही है।
- मनोज वर्मा
पॉश मशीन की देखभाल और मरम्मत का सारा खर्च विक्रेताओं को उठाना पड़ता है, जबकि इसकी जिम्मेदारी विभागीय एजेंसी की होनी चाहिए।
-विनोद प्रसाद शर्मा
विक्रेताओं को सरकारी कर्मचारी का दर्जा देकर स्थायी किया जाए और प्रति माह 50 हजार रुपये का मानदेय दिया जाए ताकि वे सम्मानजनक जीवन जी सकें।
- नीरज कुमार
पॉश मशीन की देखभाल और बिजली खपत का खर्च भी विक्रेताओं को ही वहन करना पड़ता है, जबकि यह एजेंसी की जिम्मेदारी है।
- संजय कुमार सिन्हा
हमारी समस्याओं पर न तो सरकार ध्यान दे रही है, न ही जिला प्रशासन। ज्ञापन और आवेदन के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो रही। हम आर्थिक और मानसिक दोनों रूप से परेशान हैं।
- रवि कुमार
यदि हमारी मांगें जल्द नहीं मानी गईं तो हम एकजुट होकर आंदोलन के लिए बाध्य होंगे। दुकानें बंद करने पर भी विचार किया जाएगा।
- दीनानाथ केसरी (1)
सरकार जनवितरण विक्रेताओं को सरकारी कर्मचारी का दर्जा दे और 50 हजार रुपये मासिक मानदेय प्रदान करे।
- दीनानाथ केसरी (2)
विक्रेताओं को सात माह से कमीशन नहीं मिला है और 2020 का लंबित बकाया भी अब तक अटका हुआ है। हर बार आश्वासन ही दिया जाता है।
- रंजीत कुमार
विक्रेताओं को गुणवत्तापूर्ण चावल और गेहूं उपलब्ध कराया जाए। उपभोक्ताओं की संतुष्टि और विक्रेताओं की साख बनी रहे।
- नदीम अनवर
बोले जिम्मेदार
जनवितरण विक्रेताओं को कमीशन भारत सरकार द्वारा सीधे उनके बैंक खातों में भेजा जाता है। वर्ष 2020 का लंबित कमीशन मेरे संज्ञान में नहीं है। हालांकि विभाग उनकी परेशानियों के निदान में सहयोग करता है। जिससे उनका कार्य सुचारू रूप से चलता रहे। उनकी मांगों को विभाग के समक्ष रखा जाता है। जिससे उनकी समस्याओें का जल्द से जल्द निदान हो सके।
- रवि शंकर उरांव, जिला आपूर्ति पदाधिकारी, पूर्णिया
शिकायत
1. जनवितरण विक्रेताओं को स्थायी करने और नियमित मानदेय की व्यवस्था नहीं रहने से परेशानी।
2. गोदामों से मिलने वाले खाद्यान्न की गुणवत्ता बेहद खराब, इसे झेलनी पड़ती है फजीहत।
3. अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति में निर्धारित समय सीमा की बाध्यता से परेशानी।
4. विक्रेताओं को मूलभूत सुविधाएं जैसे बैठने की जगह, पानी, शौचालय आदि तक उपलब्ध नहीं हैं। इससे लोग परेशान।
5. विभागीय अधिकारियों द्वारा शोषण व मनमानी की शिकायतें लगातार मिल रही हैं।
सुझाव
1. पिछले पांच वर्षों से लंबित बकाया राशि का सरकार शीघ्र भुगतान करे।
2. वर्तमान में सात माह से अटके कमीशन का भुगतान जिला प्रशासन तत्काल कराए।
3. अनुकंपा आधारित नियुक्ति में समय सीमा की बाध्यता को हटाने पर सरकार व जिला प्रशासन सहानुभूतिपूर्वक विचार करें।
4. विक्रेताओं को स्थायीकरण व मानदेय दिए जाने की मांग पर सरकार गंभीरता से निर्णय ले।
5. जनहित में गोदामों से गुणवत्तापूर्ण खाद्यान्न की आपूर्ति सुनिश्चित करना जिला प्रशासन की प्राथमिकता होनी चाहिए।
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