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बोले कटिहार: आवास और परिवहन की कमी से उच्च शिक्षा बन रही दूर का सपना

कटिहार की बेटियां शिक्षा का सपना देखती हैं, लेकिन संसाधनों की कमी और असुरक्षित माहौल उनके लिए बड़ी चुनौतियां बन जाते हैं। एकमात्र महिला कॉलेज में सीमित सुविधाएं हैं और छात्रावास की कमी से कई लड़कियां...

Newswrap हिन्दुस्तान, पूर्णियाFri, 27 June 2025 05:06 AM
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बोले कटिहार: आवास और परिवहन की कमी से उच्च शिक्षा बन रही दूर का सपना

प्रस्तुति: ओमप्रकाश अम्बुज, मोना कश्यप

जब किसी बेटी की आंखों में पढ़ाई का सपना पलता है तो उसे सिर्फ किताबें नहीं, एक सुरक्षित और सहायक माहौल भी चाहिए होता है। कटिहार की बेटियां भी डॉक्टर, शिक्षक, अफसर बनने का सपना देखती हैं, लेकिन संसाधनों की कमी, असुरक्षित सफर और रहने की व्यवस्था न होने से उनका रास्ता कांटों भरा हो जाता है। जब गांव से शहर आने वाली एक होनहार बेटी रोज़ अपमान और असुविधा सहकर भी हार नहीं मानती, तो उसका संघर्ष समाज के लिए एक आईना बन जाता है। सवाल यह है-क्या हम उसकी उड़ान के लिए आसमान दे पाए हैं? यह बातें हिन्दुस्तान के बोले कटिहार संवाद के दौरान उभर कर सामने आईं।

कटिहार की बेटियां जब शिक्षा का सपना आंखों में संजोती हैं, तो उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती होती है-संसाधनों की कमी और असुरक्षित माहौल। जिले में जहां लड़कों के लिए कई विकल्प मौजूद हैं, वहीं बेटियों को आज भी उच्च शिक्षा के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है। कटिहार का एकमात्र महिला कॉलेज खुद संसाधनों से जूझ रहा है। कॉलेज के पीछे बना एक मात्र 100 सीटों वाला कल्याण छात्रावास हजारों छात्राओं में से केवल कुछ को ही आश्रय दे पाता है। बाकी की बेटियों को किराए पर कमरा लेकर रहना पड़ता है या रोजाना गांवों से शहर आने के लिए भीड़भाड़ वाली बसों में सफर करना पड़ता है।

बड़े शहरों में जहां छात्राओं के लिए विशेष बस सेवाएं, सुरक्षित हॉस्टल और शैक्षणिक माहौल की सुविधा मिलती है, वहीं सीमांचल जैसे इलाके आज भी उस बुनियादी जरूरत को तरस रहे हैं, जो एक छात्रा को आत्मविश्वास से पढ़ने का हक देती है। गांवों की छात्राएं हर दिन असुरक्षा, अपमानजनक टिप्पणियों और भारी किराए जैसे संकटों का सामना करती हैं। निजी बसों में सफर करना जहां थकावट और तनाव से भरा होता है, वहीं ई-रिक्शा और टेंपो जैसी सवारी की लागत उनके माता-पिता की जेब पर भारी पड़ती है।

शहर में कमरे का किराया इतना अधिक है कि कई होनहार बेटियां सिर्फ इसलिए कोचिंग या कॉलेज की पढ़ाई छोड़ देती हैं क्योंकि परिवार के पास एक साथ किराया, खाना और पढ़ाई का खर्च उठाने की सामर्थ्य नहीं होती। पढ़ाई के लिए 75 प्रतिशत उपस्थिति अनिवार्य है, लेकिन जब रोज़ स्कूल या कॉलेज पहुंचना ही एक जंग जैसा हो, तो उपस्थिति भी बाधित होती है और उनका भविष्य भी।आज जरूरत है कि कटिहार की बेटियों के सपनों को पंख दिए जाएं। उन्हें सुरक्षित हॉस्टल, छात्राओं के लिए विशेष परिवहन सेवा और कॉलेजों में पर्याप्त संसाधन दिए जाएं। ये सिर्फ सुविधाएं नहीं होंगी, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की नींव रखने वाली नारी शिक्षा की असली शुरुआत होंगी।

बेटियों को नारे से आगे, जमीन पर सच्चा सहारा दिया जाए

कटिहार की बेटियां सिर्फ शिक्षा नहीं चाहतीं, वे एक सुरक्षित और सशक्त माहौल चाहती हैं, जिसमें वे बिना डरे अपने सपनों की उड़ान भर सकें। अगर हम वाकई ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ के नारे को सार्थक बनाना चाहते हैं, तो अब वक़्त है कि इन बेटियों को नारे से आगे, ज़मीन पर सच्चा सहारा दिया जाए। तभी कटिहार की ये संघर्षशील बेटियां, समाज की दिशा बदलने वाली प्रेरणा बन सकेंगी।

इनकी भी सुनिए

यह हॉस्टल पढ़ाई की शुरुआत के लिए एक सहारा जरूर है, लेकिन सुविधाओं की इतनी कमी है कि हर दिन एक नई चुनौती सामने होती है।

-जय श्री

हॉस्टल में रहना मजबूरी है, मगर यहां की हालत देखकर पढ़ाई में मन नहीं लगता। बदइंतजामी से दिन खराब हो जाता है।

-प्रिया दास

यहां जगह तो मिली है, मगर जगह के साथ इज्जत, सुविधा और सुरक्षा नहीं मिली। रात में बाहर जाने से डर लगता है।

-प्रीति घोष

कमरे इतने छोटे हैं कि चार लोग मिलकर सांस भी लें तो घुटन महसूस होती है। पढ़ाई का माहौल नहीं, शांति नहीं, सुविधाएं तो बिल्कुल नहीं।

-नंदनी कुमारी

रोज़मर्रा की छोटी-छोटी समस्याएं जैसे पानी न आना, साफ-सफाई का अभाव और लाइब्रेरी की कमी पढ़ाई में बड़ी रुकावट बन जाती हैं।

-शालिनी

शुरुआत में लगा कि हॉस्टल की सीट मिलना सौभाग्य है, पर यहां आकर समझ आया कि असल संघर्ष तो अब शुरू हुआ है।

-अनुष्का

हमने कभी सोचा था कि शहर में पढ़ाई करेंगे तो जिंदगी बदल जाएगी, लेकिन हॉस्टल की हालत देखकर मन ही बुझ जाता है।

-गुनगुन कुमारी

पढ़ाई के लिए जो हिम्मत जुटाई थी, वह हॉस्टल की बदहाल व्यवस्था में कमजोर पड़ने लगी है।पांच लड़कियों को एक ही कमरे में रख दिया जाता है।

-प्रियंका राय

हर सुबह सोचती हूं कि आज शांति से पढ़ लूंगी, मगर दिनभर पानी के लिए भागना पड़ता है, शोर और भीड़ से जूझना पड़ता है।

-साक्षी

हॉस्टल का माहौल इतना असुविधाजनक है कि कई बार रात में नींद नहीं आती। न पंखे चलते हैं, न खिड़कियों से हवा आती है।

-लकी कुमारी

रोज़ाना किसी न किसी छोटी-बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ता है। न समय पर बिजली, न सुरक्षा, न साफ

-महक सिन्हा

हमें हॉस्टल मिला, ये राहत की बात थी। पर जब रहना शुरू किया तो लगा -ये राहत नहीं, परीक्षा है। सुविधाएं नहीं, गंदगी बहुत है।

-मीनाक्षी

कमरा तो मिला है, मगर हालात ऐसे हैं कि पढ़ाई में मन नहीं लगता। एक बिस्तर पर दो-दो लोग सोते हैं, खाना कभी ठीक तो कभी बेस्वाद।

-पायल

यहां सुरक्षा एक गंभीर चिंता है। गेट बिना निगरानी के होता है, कोई बाहर से आसानी से आ सकता है। हम लड़कियां यहां पढ़ने आई हैं, डरने नहीं।

-समी

सबसे बड़ी समस्या साफ पानी की है। दिन में कई बार पानी नहीं आता, टंकी गंदी रहती है। कई लड़कियां पेट की बीमारी से जूझ रही हैं। पढ़ाई तब होती है जब शरीर स्वस्थ हो।

-रिंपा गुप्ता

शहर की लड़कियां जहां डिजिटल लाइब्रेरी और शांति से पढ़ने की सुविधा पाती हैं, वहीं हम शोर, गंदगी और असुविधा के बीच दिन काट रहे हैं।

-मेघा कुमारी

बोले जिम्मेदार

कटिहार जिले की छात्राओं की समस्याएं हमारे संज्ञान में हैं। महिला शिक्षा के क्षेत्र में सुधार हमारी प्राथमिकता है। हम हॉस्टल की सुविधाएं बढ़ाने, सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने और महिला कॉलेज में संसाधन विस्तार की दिशा में गंभीरता से काम कर रहे हैं। आगामी सत्र से अतिरिक्त छात्रावास की योजना प्रस्तावित है और स्थानीय प्रशासन से समन्वय बनाकर छात्राओं के लिए सुरक्षित परिवहन की व्यवस्था पर भी विचार चल रहा है। हम चाहते हैं कि हर छात्रा बिना किसी भय या असुविधा के पढ़ाई कर सके और अपने सपनों को साकार कर सके।

-डॉ. विवेकानंद सिंह, कुलपति, पूर्णिया विश्वविद्यालय, पूर्णिया

शिकायत

1. छात्रावास की भारी कमी: जिले में सिर्फ एक महिला हॉस्टल है, जिसमें मात्र 100 सीटें हैं।

2. परिवहन सुविधा नहीं: दूरदराज गांवों से आने-जाने के लिए कोई विशेष बस या सुरक्षित साधन नहीं है।

3. महाविद्यालय में संसाधनों की कमी: महिला कॉलेज में लाइब्रेरी, कंप्यूटर, शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं।

4. सुरक्षा व्यवस्था लचर: सफर के दौरान छात्राओं को अशोभनीय टिप्पणियां और असुरक्षित माहौल का सामना करना पड़ता है।

5. किराये का बोझ: कमरा किराए पर लेकर रहना महंगा पड़ता है, जिससे कई छात्राएं पढ़ाई छोड़ देती हैं।

सुझाव

1. हर अनुमंडल में छात्राओं के लिए हॉस्टल बने: कल्याण विभाग के माध्यम से अतिरिक्त छात्रावासों की स्थापना हो।

2. विशेष बस सेवा शुरू हो: छात्राओं के लिए स्कूल-कॉलेज तक सुरक्षित परिवहन की सुविधा दी जाए।

3. महिला कॉलेज को स्मार्ट बनाया जाए: संसाधनों, फैकल्टी और डिजिटल सुविधाओं में सुधार किया जाए।

4. सुरक्षा गश्ती बढ़ाई जाए: बस स्टॉप, हॉस्टल और कोचिंग एरिया में महिला पुलिस की तैनाती हो।

5. गरीब छात्राओं के लिए किराया अनुदान: सामाजिक कल्याण विभाग से किराया व छात्रवृत्ति की विशेष योजना लाई जाए।

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