पिंक व सिटी बसें चले तो सुगम हो आधी आबादी का सफर
पिंक व सिटी बसें चले तो सुगम हो आधी आबादी का सफर कैप्शन

मुजफ्फरपुर। शहर में कामकाजी महिलाओं के लिए सुरक्षित सफर के साधन नहीं हैं। कहीं आने-जाने के लिए ऑटो और ई-रिक्शा की ही सुविधा है। हर सुबह महिलाएं जब घर से काम पर निकलती हैं तो उनके परिवार को यह चिंता सताती रहती है कि शाम तक वे सुरक्षित घर लौट सकें। इनका कहना है कि जिले के लिए सरकार की ओर से पिंक बसों की सौगात तो मिली, लेकिन ये प्रखंडों में ही संचालित होंगी। ऐसे में बड़ी संख्या में घर से बाहर काम पर निकलने वाली शहर की महिलाएं, स्कूल-कॉलेज और कोचिंग पढ़ने जाने वाली छात्राओं की समस्या वहीं की वहीं रह गई है।
अगर पिंक बसें और बंद हो चुकीं सिटी बसों का परिचालन फिर से शहर में शुरू हो जाए तो बड़ी राहत मिलेगी। शहर की आबादी दिनोंदिन बढ़ती जाने से इसका विस्तार साल दर साल नये इलाकों में होता जा रहा है। इससे नये इलाकों में सार्वजनिक परिवहन सेवा की जरूरत भी बढ़ती जा रही है, लेकिन शहर में सार्वजनिक परिवहन के तौर पर एकमात्र साधन ऑटो रिक्शा है। तीन दशक पूर्व दो दर्जन बसों में सवार होकर लोग शहर के एक छोर से दूसरे छोर तक आते-जाते थे, लेकिन पांच छह साल सफल परिचालन के बाद इन्हें बंद कर दिया गया। इससे खासकर कामकाजी महिलाओं और छात्राओं को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। सरकार की ओर से जिले की महिलाओं को पिंक बसों का उपहार मिला भी है तो वे ग्रामीण रूटों पर ही चलेंगी। ऐसे में शहर की महिलाओं की ओर से बंद हो चुकीं सिटी बसें चालू करने व शहर में भी पिंक बसों के परिचालन की मांग उठी है। निशा देवी, मुन्नी देवी आदि का कहना है कि शहर के अंदर सार्वजनिक परिवहन की जरूरत पूरी करने के लिए सरकार के स्तर पर अभी तक किए गए प्रयास संतोषजनक नहीं हैं। पिछले तीन-चार दशकों में दो बार सिटी बसों के परिचालन की शुरुआत की गई, लेकिन बाद में इनके परिचालन पर ब्रेक लग गया। लोगों को फिर से कहीं आने-जाने के लिए या तो ऑटो रिक्शा का सहारा लेना पड़ रहा है या परिवहन के निजी साधनों से जरूरत पूरी की जा रही है। इससे शहर में बढ़ती भीड़ जाम का कारण बन रही है। बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं के मामले से जानमाल की भी क्षति हो रही है।
पिंक बसें चलने से रुकेगी ऑटो वालों की मनमानी
मीरा देवी, अंशु देवी, निशा देवी ने बताया कि सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना वक्त की जरूरत है। सरकारी प्रयास नाकाफी होने के कारण ऑटो रिक्शा और अन्य वाहनों से शहर के अंदर सफर करना लोगों की मजबूरी बनती जा रही है। ऐसे में ऑटो वाले मनमाने तरीके से किराया वसूलते हैं। कई बार बात बहस से भी आगे बढ़ जाती है। ऐसे में सवारियों, विशेषकर महिलाओं और स्कूल-कॉलेज जानेवाली बच्चियों की सुरक्षा बड़ी चिंता बन जाती है। कहा कि जिले को मिली चार पिंक बसों को सिटी बसों के तौर पर परिचालित किया जाए। महिलाओं की सुविधा के लिए इसे प्रखंड मुख्यालयों तक चलाने के फैसला से ज्यादा लाभ नहीं होने वाला है। कामकाजी महिलाओं और स्कूल-कॉलेज जानेवाली छात्राओं की बड़ी संख्या शहर में रहती है। इसलिए शहर में पिंक बसें चलाने से बड़ी आबादी को लाभ होगा।
कम खर्च व सुरक्षा के लिए जरूरी है सिटी बस का परिचालन
सुनीता देवी और सीता कुमारी ने बताया कि पहले करीब 20 सिटी बसों के परिचालन से पूरे शहर में आने-जाने में काफी सुविधा होती थी। कम खर्च में अधिक सुरक्षा के साथ महिलाएं सफर कर पाती थीं। खासकर उन महिलाओं को मदद मिलती थी, जो सुबह अपने बच्चे-बच्चियों को स्कूल छोड़ने जाती थीं। इन बसों का परिचालन बंद होने से अब उनको या तो स्कूल बसों का सहारा लेना पड़ता है या ऑटो रिक्शा की मदद लेनी पड़ती है। ऐसे में जेब पर बोझ बढ़ गया है। पिंक बसों का सिटी बसों के तौर पर परिचालन होने से हम महिलाओं को काफी सहूलियत होती। शहर में एक बार फिर से सिटी बसों के तौर पर पिंक बसों का परिचालन किए जाने की जरूरत है।
शहर के बाहरी हिस्सों में आवागमन होगा आसान
समीना खातून, कविता देवी, सुनीता देवी का कहना था कि पहले सिटी बसों के परिचालन से शहर के बनारस बैंक चौक से पक्की सराय चौक, पानी टंकी चौक, मिठनपुरा, नीम चौक, अघोरिया बाजार, कलगबाग चौक, बिहार विश्वविद्यालय होते हुए भगवानपुर और चांदनी चौक बौरिया तक जाना आसान था। एक बार बैठते थे तो सीधे अपने गंतव्य तक पहुंचते थे। बसों में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित होती थीं, लेकिन अब बनारस बैंक चौक से विश्वविद्यालय जाने के लिए तीन जगह ऑटो बदलना पड़ता है। इससे किराए के तौर पर अधिक राशि का भुगतान करना पड़ता है। साथ ही बार-बार वाहन बदलने में भी परेशानी होती है। इससे समय भी बर्बाद होता है। सिटी बसों के चलने से जेब पर बिना अतिरिक्त बोझ पड़े सुगमता से गंतव्य तक पहुंचा जा सकता है।
सिटी बस सेवा के रूप में पिंक बसों के परिचालन का होगा प्रयास
सिटी बस सेवा के रूप में पिंक बसों के परिचालन के लिए प्रयास किए जाएंगे। पहले किन कारणों से सिटी बस सेवा बंद हुई, इसका पता लगाने की कोशिश होगी। साथ ही संभावित मार्गों और यात्रियों के फुटफॉल सहित अनुमानित खर्च का भी अध्ययन कराया जाएगा। इन सबके आधार पर एक प्रस्ताव तैयार कर उसे परिवहन विभाग के मुख्यालय भेजा जाएगा। इसके लिए पर्यटन विभाग और परिवहन विभाग के अधिकारियों के अलावा नगर विकास विभाग से समन्वय बनाने का प्रयास होगा।
-राजू कुमार सिंह, पर्यटन मंत्री, बिहार सरकार
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