आकर्षण रही ग्वालियर घराने की गायकी
विश्व संगीत दिवस 2025 के अवसर पर ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के संगीत विभाग में आयोजित सात दिवसीय कार्यशाला का समापन हुआ। इस दौरान पंडित समीर भालेराव ने छात्रों को विभिन्न रागों का प्रशिक्षण...

दरभंगा। विश्व संगीत दिवस 2025 के अवसर पर ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के पीजी संगीत एवं नाट्य विभाग में आयोजित सात दिवसीय कार्यशाला रविवार को संपन्न हो गई। इन सात दिनों में ऑनलाइन एवं ऑफलाइन मोड में देश के विभिन्न भागों के विषय विशेषज्ञों ने छात्र-छात्राओं का मार्गदर्शन किया। कार्यशाला के समापन समारोह में ग्वालियर घराने के प्रसिद्ध गायक एवं गुरु पंडित समीर भालेराव आकर्षण का केंद्र रहे। पंडित भालेराव ने अपनी आरंभिक शिक्षा अपने पिता पं. प्रभाकर भालेराव से प्राप्त की जो ग्वालियर घराने के प्रसिद्ध एवं विद्वान संगीतज्ञ राजाभैया पूंछ वाले के प्रमुख शिष्य थे। इसी परंपरा में पं. समीर भाले राव ने अपनी शिक्षा प्राप्त की और पं. गंगाधर राव तैलंग तथा पं. अजय पोहनकर से अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाया।
स्थापित संगीतज्ञों में शामिल पं. भालेराव उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी अवार्ड सहित अनेकों सम्मान से सम्मानित हैं। पं. भालेराव ने शनिवार एवं रविवार को प्रतिभागियों को अनेक तरह के सांगीतिक तत्वों को विस्तार से सिखाया। कार्यशाला के अंतिम दिन उन्होंने प्रतिभागियों को सर्वप्रथम राग विलासखानी तोड़ी सिखाया। राग विलास खानी थोडी में बड़ा ख्याल की बंदिश नीके घुंघरिया, छोटा ख्याल की बंदिश तज रे. अभिमान (तीन ताल) तथा कोयलिया काहे करत पुकार (तीन ताल) थी। राग में अलाप, बढ़त आदि को सिखाने के बाद अभ्यास कराते हुए सरगम, पलटे और तानों को भी सिखाया। इसके बाद राग शुद्ध सारंग में छोटा ख्याल (तीन ताल-मध्य लय) अब मोरी बात को सिखाया और अभ्यास कराया। अंत में राग पहाड़ी के स्वरों को समझाते हुए मूर्छनाओं के माध्यम से राग का विस्तार अन्य रागों के साथ करते हुए बातों बातों में बीती रात दादरा की प्रस्तुति करते हुए छात्र-छात्राओं को सिखाया भी। इनके साथ तबला संगति विभाग के छात्र चंद्रमणि झा और हार्मोनियम पर ऋषभ कुमार झा ने संगति की। कार्यशाला आरंभ होने से पूर्व विभागीय छात्र-छात्राओं ने भी अपनी प्रस्तुति की, जिसकी विषय विशेषज्ञ ने खूब सराहना की। द्वितीय सेमेस्टर के छात्र ऋषभ कुमार झा, सुमन कुमार सिंह और चंद्र प्रकाश ने राग जोग का गायन किया तथा चतुर्थ सेमेस्टर के छात्र हर्षवर्धन झा, प्रतीक कुमार झा, अमित कुमार झा और आर्यन भट्ट ने राग यमन का गायन प्रस्तुत किया। अंतिम दिवस के सत्र का मुख्य विषय संगीत शास्त्र और राग परंपरा थी। उप विषय के अंतर्गत बिहार के विश्वविद्यालयों में संगीत शिक्षा और शिक्षकों का योगदान भी समाहित किया गया था। फलत: बिहार के विश्वविद्यालयों के कई शिक्षकों ने भी इस कार्यशाला में महत्वपूर्ण भागीदारी की। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए विभागाध्यक्ष सह कार्यशाला की संयोजिका प्रो. लावण्य कीर्ति सिंह काव्या ने सभी विषय विशेषज्ञों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि विभाग की ओर से किया जाने वाला प्रत्येक आयोजन भारतीय ज्ञान प्रणाली को समृद्ध करने की पहल के अंतर्गत किया जा रहा है। इसके लिए उन्होंने कुलपति प्रो. संजय कुमार चौधरी के प्रति आभार जताया।
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