बोले कटिहार: बीज और खाद मिलने में विलंब, बाजार में नकली पर नकेल नहीं
कटिहार के किसान मौसम के साथ-साथ सरकारी व्यवस्थाओं से भी जूझ रहे हैं। समय पर बीज और खाद नहीं मिलने के कारण उनकी मेहनत बेकार हो रही है। महंगे डीजल और घटती आमदनी के बीच किसान आर्थिक रूप से टूट रहे हैं।...

प्रस्तुति: ओमप्रकाश अम्बुज, आशीष कुमार सिंह
धूप में झुलसी पीठ, पसीने से भीगा कुर्ता और आंखों में एक बेजान-सी उम्मीद लिए खड़ा है कटिहार का किसान। उसने वक्त पर हल चलाया, आसमान की ओर देखा, लेकिन न बीज मिला, न भरोसा। अब जब खेत प्यासा है, तब व्यवस्था बीज दे रही है। हर साल की तरह इस बार भी उसने उम्मीद बोई और तन्हा मायूसी काट रहा है। जब खेत में हल चला, तब बीज नहीं था। अब बीज आया है, तो खेत सूख रहा है। सरकार का समय किसान के समय से कभी नहीं मिलता...। धान की बुआई का आदर्श समय रोहिणी नक्षत्र बीत चुका है। कटिहार का किसान फिर एक बार सरकारी व्यवस्थाओं की लाचारी के सामने हारता नजर आ रहा है।
बारिश रुक-रुककर हो रही है और खेती की शुरुआत में ही किसान पटवन के लिए डीजल पंप का सहारा ले रहे हैं। महंगे डीजल और घटती आमदनी के बीच किसान आर्थिक रूप से टूट रहे हैं। ऊपर से सरकारी मदद समय पर न मिलकर उनके जले पर नमक का काम कर रही है। विभागीय योजनाएं विलंब से उतरतीं हैं। पंचायतों में कृषि विभाग की योजनाएं पंचायत तक पहुंचने में इतनी देर कर रही हैं कि जब बीज आता है, तब किसान खेत में मेहनत कर चुके होते हैं या इंतजार में हिम्मत हार चुके होते हैं। इस बार भी पंचायतों को जो बीज मिला, वह जरूरतमंदों की तुलना में ऊंट के मुंह में जीरा जैसा साबित हुआ। 10 फीसदी किसानों तक ही बीज पहुंच सका, वह भी देर से।
किसानों की एक और पीड़ा है-नकली खाद और बीज। किसान बताते हैं कि खुले बाजार में उपलब्ध बैग में कंकड़-पत्थर वाली खाद मिल रही है। बीज ऐसा मिल रहा है कि बोवाई के बाद एक खेत में अलग-अलग ऊंचाई के पौधे निकलते हैं। नतीजा-उत्पादन पर सीधा असर और पूरे सीजन की मेहनत पर पानी। आधुनिक युग में जहां कृषि को वैज्ञानिक बनाना चाहिए था, वहीं जिले के 80 फीसदी किसान अब भी परंपरागत तरीकों से खेती करने को मजबूर हैं। क्योंकि न तो समय पर संसाधन मिलते हैं और न ही समुचित प्रशिक्षण। सरकार की ओर से घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों को राहत देने की बजाय निराशा दे रहा है। लागत बढ़ गई है-जुताई, बीज, खाद, मजदूरी, पटवन... हर चीज दोगुना महंगी हो गई, लेकिन एम एस पी अब भी पुराने ढर्रे पर है। किसानों की पीड़ा सिर्फ मौसम से नहीं, व्यवस्था से है। वे मुआवजा नहीं चाहत-बस इतना चाहते हैं कि फसल डूबे नहीं, सूखने न पाए। अगर सरकार सिर्फ सिंचाई और बीज की समय पर व्यवस्था कर दे, तो हम अपने दम पर खेत को सोना बना सकते हैं, कहते हैं कुरसेला के एक बुजुर्ग किसान, जिनकी आंखें अब भी इंतजार में हैं। कटिहार का किसान सिर्फ अन्नदाता नहीं, बल्कि इस सिस्टम की चुप गवाही है-जो हर साल उम्मीद बोता है और मायूसी काटता है।
इनकी भी सुनिए
इस बार धान बुवाई का वक्त निकल गया, अब बीज मिला है। सिंचाई के लिए डीजल खरीदना महंगा पड़ रहा है। किसानों के साथ अनदेखी क्यों होती?
-अनिल झा
नकली खाद, महंगा डीजल, एम एस पी में बढ़ोतरी नहीं। इससे किसान कहां टिक पाएगा? खेती अब सिर्फ संघर्ष रह गया है।
-संतोष कुमार झा
जब बीज नहीं था तब मौसम साथ दे रहा था, अब बीज आया तो खेत सूख चुका है। हम किसान किसी से लड़ भी नहीं सकते।
-दिलखुश झा
इस बार तो बीज भी समय पर नहीं मिला और जो मिला वो सबके लिए नहीं था। बस हाशिये पर हैं हम किसान।
-मनीष कुमार झा
सब कुछ इतना महंगा हो गया है कि लागत निकलना मुश्किल है। ऊपर से नकली खाद और घटिया बीज से मेहनत बेकार चली जाती है।
-संजय झा
किसान मुआवजा नहीं चाहता, सिर्फ यह चाहता है कि उसे समय पर बीज और खाद मिले। हम भी अपनी मेहनत से फसल उगाना जानते हैं।
-शंकर राम
इस बार धान का बीज लेने गया तो पता चला कि पंचायत में तो पहले ही खत्म हो चुका है। जो भी मिला, वह भी भरोसे लायक नहीं था।
-जागेश्वर मंडल
इस बार बीज वितरण बहुत देर से हुआ और कम मात्रा में। और जो मिला भी, वो इतना घटिया कि बीज अंकुरित ही नहीं हुआ।
-लुखो ठाकुर
हमारी पंचायत में तो कोई अधिकारी ठीक से जानकारी देने भी नहीं आते। किसान अपनी मेहनत से फसल उगाता है।
-चंदन चौधरी
सरकारी सिस्टम इतना धीमा है कि बीज बांटते-बांटते बुवाई का समय ही बीत जाता है। अब खेत सूख रहे हैं, पानी के लिए डीजल चाहिए।
- शंकर मुनि
खुले बाजार में जो खाद मिलता है, उसमें कंकड़ मिलते हैं। बीज भी ऐसा कि पौधे एक साथ नहीं निकलते। फसल एक जैसी नहीं होती।
-सुरेश मुनि
इस बार बीज लेने गया तो पता चला, सूची में नाम नहीं है। जबकि मैंने फॉर्म पहले ही जमा किया था। हर साल गड़बड़ हो ही जाता है।
-सुनील मंडल
खेती अब जोखिम बन गई है। जितना पैसा लगाओ, उतनी ही अनिश्चितता बढ़ती है। अगर समय पर बीज और खाद मिल जाए, तो आधी समस्या वहीं खत्म हो जाए।
-राजेश राम
मैंने 15 दिन पहले से बीज के लिए पंचायत में दौड़ लगाई, लेकिन जब तक मिला, खेत सूख चुका था। अब सिंचाई कर बिचड़ा गिरा रहा हूं, लेकिन नमी नहीं टिक रही।
-विकास कुमार
सरकार हर साल योजनाएं बनाती है, लेकिन उसका लाभ हमें वक्त पर नहीं मिलता। इस बार बीज इतनी देर से मिला कि खेत में अब नमी ही नहीं बची।
-कामदेव झा
कृषि विभाग की योजनाएं पोस्टर में अच्छी लगती हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत बिल्कुल अलग है। बीज और खाद समय से नहीं मिलते, जो मिलते हैं वो घटिया होते हैं।
-बच्चन झा
बोले जिम्मेदार
धान बिचड़ा आच्छादन को लेकर विभाग पूरी सक्रियता से काम कर रहा है। बीज वितरण का कार्य प्रखंड और पंचायत स्तर पर किया गया है, हालांकि कुछ स्थानों पर आपूर्ति में विलंब हुआ, जिसे अब तेजी से पूरा किया जा रहा है। किसानों को गुणवत्तापूर्ण बीज मिले, इसके लिए लगातार निगरानी की जा रही है। नकली खाद और बीज की शिकायतों पर छापेमारी कर कार्रवाई की जा रही है। किसानों से अपील है कि वे विभागीय योजनाओं का लाभ लेने के लिए समय पर पंजीकरण कराएं और किसी भी समस्या की जानकारी तुरंत संबंधित अधिकारी को दें। सरकार राज्य भर के किसानों के लिए नीति बनाती है। जिससे कोई पीछे नहीं छूट जाए।
मिथिलेश कुमार, जिला कृषि पदाधिकारी, कटिहार
शिकायत
1. बुवाई का समय निकल जाने के बाद बीज मिलना खेती को नुकसान पहुंचा रहा है। जिससे उपज घटता जा रहा है। इससे किसानों को आर्थिक नुकसान होेता है।
2. बाजार में मिल रही खाद में अशुद्धता और घटिया बीज से उत्पादन प्रभावित हो रहा है। इससे किसानों समय और रुपये बर्बाद हो रहा है।
3. बारिश अनियमित है और समय पर पटवन के लिए नहर या सोलर सिस्टम की सुविधा नहीं मिलती। जिससे किसानों पर अतिरिक्त बोझ बढ़ता है और बचत कम हो जाता है।
4. योजनाएं पंचायतों तक देर से पहुंचती हैं और जरूरतमंद किसानों को समय पर लाभ नहीं मिलता। इससे किसानों को नुकसान होता है।
5. बढ़ती लागत के मुकाबले एमएसपी अपर्याप्त है, जिससे किसानों को घाटा हो रहा है।
सुझाव
1. बुवाई से पहले ही पंचायत स्तर पर प्रमाणित बीज और खाद मुहैया कराई जाए। जिससे उपज बढ़े और किसानों के घर आर्थिक समृद्धि आए।
2. बाजार की निगरानी कर दोषी विक्रेताओं पर दंडात्मक कार्रवाई हो। इससे किसानों की फसल बर्बाद नहीं होगी और आर्थिक रूप से मजबूत होंगेे।
3. गांवों में सौर ऊर्जा आधारित सिंचाई प्रणाली और नहरों का जीर्णोद्धार किया जाए। जिससे किसानों पर आर्थिक बोझ नहीं बढ़ेगा और लाभ मिलेगा।
4. परंपरागत खेती से बाहर निकलने के लिए किसानों को आधुनिक कृषि का प्रशिक्षण दिया जाए। जिससे उपज में बढ़ोत्तरी होगी।
5. हर साल खेती की लागत के आधार पर समर्थन मूल्य की समीक्षा और बढ़ोतरी की जाए। जिससे किसान बिचौलिये से बचेंगे और फायदा होगा।
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