बोले कटिहार: फलों की प्रोसेसिंग यूनिट नहीं, बिचौलिये गटक जा रहे मुनाफा
कटिहार में आम की बागवानी किसानों के लिए आजीविका का प्रमुख स्रोत है। हालांकि, किसानों को अपने परिश्रम का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है। कई किसान मधुआ रोग और बाजार की बेरुखी से परेशान हैं। सरकार और संबंधित...

प्रस्तुति: ओमप्रकाश अम्बुज, मोना कश्यप
जब गर्मियों की पहली हवा आम के बौर की खुशबू लेकर कटिहार के बागानों से गुजरती है तो हर दिल मीठे रस में डूब जाता है। लेकिन इस मिठास के पीछे एक किसान की दिन-रात की मेहनत, जागी हुई रातें और पसीने से भीगी उम्मीदें होती हैं। आम के पेड़ की हर डाल पर झूलती हैं उसकी ख्वाहिशें, जो अक्सर बाजार की बेरुखी और व्यवस्था की अनदेखी में टूट जाती हैं। कटिहार का आम देश-विदेश में अपनी पहचान बना चुका है, लेकिन आम किसान आज भी अपने हक, मेहनत की कीमत और सम्मान के लिए तरस रहा है। यह बातें हिन्दुस्तान के बोले कटिहार संवाद के दौरान उभर कर सामने आईं।
गर्मियों में जब कटिहार के बागानों में आम की मिठास बिखरती है, तो उसकी खुशबू सीमाओं को लांघ जाती है। लेकिन इस मिठास के पीछे की कहानी अक्सर अनसुनी रह जाती है -एक किसान की मेहनत, संघर्ष और टूटी उम्मीदों की। कटिहार जिले में 5165 हेक्टेयर में आम के बगीचे फैले हैं। जिला उद्यान कार्यालय के अनुसार प्रतिवर्ष 45843 मैट्रिक टन आम का उत्पादन होता है, लेकिन किसानों का दावा है कि यह आंकड़ा 70 हजार मैट्रिक टन से भी अधिक है।
सबसे बड़ा आम उत्पादन क्षेत्र कदवा प्रखंड है, जहां के सैकड़ों किसान पारंपरिक खेती छोड़ आम की बागवानी पर निर्भर हो चुके हैं। दूसरी ओर, डंडखोरा प्रखंड के सिमरी गांव के कालीदास बनर्जी का विशेष किस्म का आम अपनी सुगंध, स्वाद और रंग के कारण नेपाल व विदेशों तक मशहूर हो चुका है। लेकिन अफसोस, यह ख्याति आम किसान की जिंदगी में कोई खास बदलाव नहीं ला पाई है। किसान बताते हैं कि आम के मौसम के छह महीने पहले से ही वे पूरे परिवार सहित बागानों में डेरा डाल देते हैं। वहीं खाना, सोना और दिन-रात पेड़ों की देखभाल उनका जीवन बन जाता है। मंजर आने पर वे कीटनाशकों का नियमित छिड़काव करते हैं। एक किसान ने बताया कि इस बार नौ बार दवा छिड़की, हजारों रुपये खर्च हो गए, लेकिन मधुआ रोग से फसल नहीं बची। घरों में अब दवाओं के खाली डिब्बे भरकर पड़े हैं, पर लाभ की जगह घाटा हाथ लग रहा है। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जिले में अब तक कोई फलों की प्रोसेसिंग यूनिट नहीं खुली है। मजबूरी में किसानों को अपना मेहनत से उगाया आम औने-पौने दामों पर बेचना पड़ता है। आम का सही मूल्य न मिलने से कई किसान कर्ज में डूबे हुए हैं। कटिहार के आम ने स्वाद से बाजार जीता है, लेकिन उसके पीछे पसीने की बूंदें सूखती जा रही हैं। अब जरूरत है कि सरकार, उद्यान विभाग और संबंधित एजेंसियां मिलकर किसानों की इस व्यथा को समझें और उनके लिए ऐसी नीति बनाएं जिससे उनके परिश्रम को सम्मान और उनकी फसल को सही मूल्य मिल सके।
इनकी भी सुनिए
आम की खेती हमारे जीवन की रीढ़ है, लेकिन जिस मेहनत से हम पेड़ों की देखभाल करते हैं, उसका फल हमें नहीं मिलता।
- शंकर
मेरे बगीचे में इस बार आम की अच्छी पैदावार हुई, लेकिन मधुआ रोग ने कई पेड़ खराब कर दिए। कीटनाशक महंगे हैं और असर कम।
- गुलफाम
आम का मौसम हमारे लिए रोज़गार का वक्त होता है, लेकिन जब मेहनत के बाद आम सस्ते में बिकता है तो दिल टूट जाता है।
-जावेद
हमने नौ बार दवा छिड़की, हजारों रुपये खर्च हुए, फिर भी आम के पेड़ सूखते जा रहे हैं। वैज्ञानिक सलाह मिले तो हम बहुत कुछ कर सकते हैं।
- मो. मुख्तार
सबकुछ हम करते हैं। लेकिन जब बिक्री होती है तो कोई पूछने वाला नहीं। अगर सीधा बाजार मिले तो हमें भी जीने का हक मिलेगा।
– मुख्तार
कटिहार का आम दुनिया में नाम कमा रहा है, लेकिन किसान अब भी गुमनाम है। हमें फसल का सही दाम नहीं मिलता।
- आज़ाद
मेरे पिताजी के ज़माने से हम आम की खेती कर रहे हैं। पहले लोग खेती को इज्जत देते थे, अब मज़ाक बन गया है।
- मो. जलाल
इस बार आम की फसल अच्छी थी, लेकिन तेज़ हवा और कीटों ने नुकसान कर दिया।मौसम, बाजार और बीमारियों से लड़ना पड़ता है।
-मो. आज़ाद
हमने अपने बच्चों की पढ़ाई रोक दी, ताकि बगीचे में काम कर सकें। हमें मेहनत की कीमत और फसल की गारंटी चाहिए।
-रंजन कुमार
हर साल हजारों रुपये दवा, मजदूरी और देखभाल में लगते हैं। आम की अच्छी पैदावार के बाद भी जो दाम मिलता है, उससे घर नहीं चलता।
- परिमल झा
आम तुड़वाते हैं तब व्यापारी 4-5 रुपये किलो में खरीदते हैं। सरकार को किसानों से सीधी खरीद करनी चाहिए, तभी बदलाव होगा।
-अशोक कुमार
मैंने आम के बागानों के लिए लोन लिया था। फसल तो अच्छी हुई लेकिन दाम नहीं मिला। अब बैंक वाले भी परेशान कर रहे हैं।
- नंद गोपाल मंडल
आम की फसल के समय पूरा परिवार खेत में रहता है। यह केवल खेती नहीं, हमारी जिंदगी है। लेकिन व्यवस्था ऐसी है कि हम अपना ही फल ठीक से खा नहीं सकते।
-रामानंद शर्मा
जब तक आम बाजार में पहुंचता है, उसकी कीमत गिर जाती है। जिले में कोल्ड स्टोरेज और पैकेजिंग यूनिट हो, तो हम अपने माल को बेहतर तरीके से बेच सकते हैं।
- कैलाश प्रसाद मंडल
पहले आम से घर चलता था, अब कर्ज चलता है। हमें आधुनिक तकनीक, सस्ता इलाज और विपणन की सुविधा चाहिए। नहीं तो अगली पीढ़ी बागवानी से मुंह मोड़ लेगी।
-सूर्यनारायण मंडल
किसान की सबसे बड़ी ताकत उसकी जमीन और फसल होती है, लेकिन जब मेहनत के बाद भी उसे सही दाम न मिले, तो वह टूट जाता है।
– कौशल किशोर
बोले जिम्मेदार
कटिहार जिले में आम की बागवानी किसानों के लिए एक प्रमुख आजीविका का स्रोत है। किसानों की समस्याओं को गंभीरता से लिया गया है। मधुआ रोग के नियंत्रण के लिए विभागीय वैज्ञानिकों की टीम लगातार निरीक्षण कर रही है। किसानों को उन्नत किस्म की दवाएं सुलभ कराईं जा रहीं हैं। फ्रूट प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना के लिए प्रस्ताव भेजा गया है। विभाग का प्रयास है कि किसानों को तकनीकी प्रशिक्षण, बीमा और बाजार सुविधा मिले। हम चाहते हैं कि कटिहार का आम राष्ट्रीय पहचान बनाए और इसके पीछे किसान का चेहरा भी उजागर हो। जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो और उनके घरों में तरक्की आए।
— मिथिलेश कुमार, जिला कृषि पदाधिकारी, कटिहार
शिकायत
1. बार-बार स्प्रे करने पर हजारों रुपये खर्च हो जाते हैं, फिर भी रोग नियंत्रण नहीं होता।
2. वैज्ञानिक समाधान न होने से पेड़ सूखते जा रहे हैं, उत्पादन घट रहा है।
3. आम को सही मूल्य नहीं मिल पाता, किसान मजबूरी में औने पौने दाम पर बेचते हैं।
4. उद्यान विभाग से समय पर सलाह, प्रशिक्षण और अनुदान नहीं मिल पाते।
5. किसान को उचित मूल्य नहीं मिलता, मुनाफा बिचौलियों की जेब में चला जाता है।
सुझाव
1. स्थानीय प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना हो, ताकि आम से पल्प, जैम, अचार आदि बनाकर बेहतर कीमत मिल सके।
2. उद्यान वैज्ञानिकों की नियमित टीम बनाकर निरीक्षण हो, जिससे रोगों की पहचान और उपचार समय पर हो सके।
3. सरकार की ओर से सस्ता और असरदार कीटनाशक उपलब्ध कराया जाए।
4. बागवानी के लिए विशेष बीमा योजना लागू हो, जिससे नुकसान की भरपाई संभव हो सके।
5. किसानों के लिए सीधा बाजार तंत्र विकसित किया जाए
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