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बोले कटिहार: रेलवे लाइन में कैद बघुआबाड़ी, एंबुलेंस तक की राह मुश्किल

कटिहार जिले के बघुआबाड़ी मोहल्ले के लोग रेलवे ट्रैक के कारण गंभीर समस्याओं का सामना कर रहे हैं। एंबुलेंस, स्कूल वैन और पुलिस सेवाएं समय पर नहीं पहुंच पातीं, जिससे जिंदगी पर खतरा मंडराता है। लोग...

Newswrap हिन्दुस्तान, भागलपुरThu, 26 June 2025 05:04 AM
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बोले कटिहार: रेलवे लाइन में कैद बघुआबाड़ी, एंबुलेंस तक की राह मुश्किल

प्रस्तुति: ओमप्रकाश अम्बुज, मोना कश्यप

कटिहार शहर के बिल्कुल पास, मगर सुविधाओं से कोसों दूर-यही पहचान बन गई है बघुआबाड़ी की। यहां हर दिन जिंदगी पटरियों से टकराती है, हर घंटा एक नई जद्दोजहद लेकर आता है। न एंबुलेंस समय पर पहुंचती है, न बच्चे स्कूल। कई बार इलाज के इंतज़ार में सांसे थम जाती हैं। रेलवे ट्रैक के इस घेरे ने मोहल्ले को एक कैदखाने में बदल दिया है, जहां आने-जाने के सारे रास्ते अक्सर बंद मिलते हैं। लोग चुपचाप सह रहे हैं, उम्मीदों की आंख लिए। अब वक्त है कि प्रशासन जागे और बघुआबाड़ी को इस पीड़ा से निजात दिलाए। यह बातें हिन्दुस्तान के कटिहार संवाद के दौरान उभर कर सामने आईं।

कटिहार जिला मुख्यालय से महज दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित बघुआबाड़ी मोहल्ला सुविधाओं से नहीं, बल्कि मुश्किलों से घिरा है। यहां के लोगों की ज़िंदगी हर रोज़ रेलवे के पहियों के नीचे रुक जाती है। इस मोहल्ले को चारों ओर से रेलवे लाइन ने इस कदर घेर रखा है कि यह किसी ‘रेलवे टापू’ में तब्दील हो गया है।

पूर्णिया गेट, संतोषी चौक, छीटाबाड़ी, भगवान चौक और मोगरा फाटक-इन पांच समपार फाटकों के सहारे लोग अंदर-बाहर आने-जाने को मजबूर हैं। लेकिन असली संकट तब शुरू होता है जब बायपास ट्रैक पर मालगाड़ी या पिट लाइन की ट्रेनें लगातार खड़ी रहती हैं। यह लाइन बारसोई-सिलीगुड़ी से पूर्णिया को जोड़ने वाली है और सीधे बघुआबाड़ी से सटकर गुजरती है।

जब किसी को मिर्चाईबाड़ी, गेराबाड़ी या पूर्णिया की ओर जाना होता है तो सीधे रास्ते की जगह उन्हें छीटाबाड़ी, भगवान चौक, दुर्गास्थान और केबी झा कॉलेज की ओर घूमकर जाना पड़ता है, जिससे दूरी काफी बढ़ जाती है। इसका असर सबसे ज्यादा इमरजेंसी सेवाओं पर पड़ा है। एम्बुलेंस यहां पहुंच नहीं पाती या घंटों फंसी रहती है। दर्जनों मरीज समय पर अस्पताल नहीं पहुंच सके और कई बार जिंदगी की डोर टूट गई। डायल-112 की पुलिस गाड़ी को भी मोहल्ले तक पहुंचने में घंटों लग जाते हैं। स्कूल वैन यहां तक नहीं आतीं, जिससे बच्चे समय पर स्कूल नहीं पहुंच पाते। नौकरीपेशा लोग ट्रेन और बस छूट जाने की वजह से ऑफिस देर से पहुंचते हैं। बघुआबाड़ी के लोगों की अपील है कि नगर प्रशासन और रेलवे मिलकर जल्द कोई वैकल्पिक रास्ता बनाए। दुर्गास्थान से संतोषी चौक होते हुए मिर्चाईबाड़ी को जोड़ने वाले प्रस्तावित ओवरब्रिज में एक लिंक रोड बघुआबाड़ी को भी दिया जाए। इससे न केवल इस मोहल्ले के लोगों को राहत मिलेगी, बल्कि समय पर इलाज, शिक्षा और सुरक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएं मिल सकेंगी। रेलवे लाइन से घिरे इस मोहल्ले के वाशिंदे हर दिन समय, सुविधा और सुरक्षा से लड़ाई लड़ते हैं। बघुआबाड़ी को जल्द इस 'रेलवे कैद' से आजादी दिलाने की ज़रूरत है।

इनकी भी सुनिए

हमें लगता है जैसे हम रेलवे टापू में रह रहे हैं। एंबुलेंस, पुलिस, फायर ब्रिगेड-कुछ भी समय पर नहीं पहुंचता। मोहल्ले को मुख्य सड़क से जोड़ने के लिए अलग पुल या अंडरपास जरूरी है।

-भागवत प्रसाद साह

नई ओवरब्रिज योजना में बघुआबाड़ी को जोड़ दिया जाए, यही हमारी सबसे बड़ी मांग है। अगर ये नहीं हुआ, तो आने वाले दिनों में हालात और बिगड़ सकते हैं। हम तो जैसे हर रोज़ जंग लड़ रहे हैं।

-कन्हैया लाल दास

रेलवे लाइन ने बघुआबाड़ी को जैसे कैद कर दिया है। इमरजेंसी में न एंबुलेंस आ पाती है, न पुलिस। ट्रेन और बसें छूट जाती हैं।

-राजेश प्रसाद

मेरे पिता बीमार थे, एंबुलेंस समय पर नहीं पहुंच सकी। हम रेलवे लाइन के किनारे घंटों फंसे रहे। आखिरकार खुद ही टेंपो से अस्पताल ले गए।

-महेश प्रसाद

स्कूल वैन मोहल्ले तक नहीं आती। हमें बच्चों को उठाकर छीटाबाड़ी तक ले जाना पड़ता है। बारिश में तो हाल और खराब हो जाता है।

-मोहनदास

जब मालगाड़ी बायपास पर खड़ी रहती है, तब फाटक घंटे भर बंद रहता है। कोई जरूरी काम हो, तो भी निकलना मुश्किल हो जाता है।

-अशोक दास

रेलवे को चाहिए कि मालगाड़ी पार्किंग व्यवस्था में बदलाव करे। हर दिन इस मोहल्ले की जिंदगी पटरी पर रुक जाती है।

-अरविंद प्रसाद

मैं युवा हूं, लेकिन रोज ट्रेन, बस छूट जाने से नौकरी का नुकसान होता है। बघुआबाड़ी से निकलना अपने आप में एक

संघर्ष है।

-विनोद सिंह

कई बार मरीजों को चारपाई पर उठाकर ट्रैक पार कराया गया है। हम चाहते हैं कि रेलवे और नगर प्रशासन मिलकर समाधान करें।

-अशोक रजत

बच्चों की पढ़ाई सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही है। समय पर स्कूल नहीं पहुंच पाते, कई बार डर के मारे नहीं जाते। ऐसे माहौल में कैसे भविष्य बनेगा?

-महेंद्र सिंह

सड़क पर न तो ढंग का लाइट है, न सुरक्षा। रात में ट्रैक पार करना खतरे से खाली नहीं। एक स्थायी लिंक रोड होनी चाहिए।

-कालू पासवान

मेरी बस रोज छूट जाती है। कोई जल्दी में बाहर निकलना चाहे, तो फाटक या ट्रेन रास्ता रोक लेती है। इससे अच्छा तो गांव में होते।

-लगन दास

बघुआबाड़ी की हालत आपातकाल जैसी है। हम हर दिन डर में जीते हैं कि कब कौन फंसेगा। मालगाड़ियों को दूसरी जगह पार्क करनी चाहिए।

-दिलीप रविदास

बायपास पर खड़ी मालगाड़ियों की वजह से न सिर्फ आवाजाही रुकती है, बल्कि ध्वनि प्रदूषण भी बढ़ता है।

-उपेंद्र दास

एक बार मेरी पत्नी को डिलीवरी के लिए ले जाना था, लेकिन एंबुलेंस ट्रैक पर फंसी रही। हम पैदल पार कर किसी तरह अस्पताल पहुंचे। ये कैसी व्यवस्था है?

-राजू श्रीवास्तव

क्या एक मोहल्ले को मुख्य शहर से जोड़ना इतना मुश्किल है? हर नेता आता है, वादा करता है और चला जाता है। हमें सिर्फ रास्ता चाहिए-सुरक्षित और स्थायी।

-सुरेश प्रसाद

रेलवे फाटक पर रोजाना का जाम अब आदत बन गई है। लेकिन जब कोई बीमार होता है या बच्चा फंसता है, तब दिल बैठ जाता है। हम थक चुके हैं इस लड़ाई से।

-श्याम प्रसाद

डायल-112 की गाड़ी को आने में 2 घंटे लगते हैं। सोचिए अगर कोई घटना हो जाए तो क्या होगा? बघुआबाड़ी के लोगों की जान खतरे में है और कोई सुनने वाला नहीं।

-लालू कुमार

बोले जिम्मेदार

बघुआबाड़ी की समस्या हमारे संज्ञान में है और यह वाकई गंभीर है। नगर प्रशासन रेलवे विभाग से समन्वय स्थापित कर वैकल्पिक मार्ग की योजना पर काम कर रहा है। दुर्गा स्थान से संतोषी चौक होते हुए जो ओवरब्रिज बनाया जा रहा है, उसमें बघुआबाड़ी को जोड़ने का प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है। हमारा प्रयास है कि इस क्षेत्र की एंबुलेंस, फायर ब्रिगेड, पुलिस सेवा जैसी आवश्यक सुविधाएं बाधित न हों। हम तकनीकी रिपोर्ट के आधार पर एक स्थायी समाधान निकालेंगे ताकि बघुआबाड़ी के लोग भी सुगम और सुरक्षित जीवन जी सकें। जल्द ही सकारात्मक परिणाम मिलेगा।

-संतोष कुमार, नगर आयुक्त, कटिहार

शिकायत

1. समपार फाटक अक्सर बंद और खड़ी मालगाड़ी के कारण घंटों जाम की स्थिति रहती है।

2. एंबुलेंस और डायल 112 की गाड़ियां समय पर नहीं पहुंच पातीं, जिससे कई बार गंभीर मरीजों की जान चली जाती है।

3. स्कूली बच्चों की वैन और बसें मोहल्ले तक नहीं आतीं, जिससे उनकी पढ़ाई प्रभावित हो रही है।

4. नौकरीपेशा लोगों की ट्रेन और बसें छूट जाती हैं, जिससे समय पर दफ्तर पहुंचना मुश्किल हो गया है।

5. किसी भी आपात स्थिति में मोहल्ले के लोग नहीं निबट सकते। इसके कारण डर के साये में रहते हैं।

सुझाव

1. दुर्गा स्थान से संतोषी चौक होते हुए बन रहे नए ओवरब्रिज में बघुआबाड़ी के लिए कनेक्टिंग लिंक रोड जोड़ा जाए।

2. रेलवे पटरियों पर अंडरपास या फुट ओवरब्रिज का निर्माण किया जाए।

3. समपार फाटकों पर ऑटोमेटिक गेट सिस्टम और बेहतर ट्रैफिक प्रबंधन की व्यवस्था की जाए।

4. बायपास लाइन पर मालगाड़ियों को नियत समय के बाद खड़ा किया जाए।

5. बघुआबाड़ी को 'संवेदनशील क्षेत्र' मानते हुए नगर प्रशासन विशेष आपदा प्रबंधन योजना तैयार करे।

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