बोले कटिहार : राजस्व में आगे, सुविधा में पीछे जिम्मेदारों को कोई चिंता नहीं
कटिहार के मनिहारी, कुरसेला और कोढ़ा बस स्टैंड पर हजारों मुसाफिरों को सुविधाओं की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। यहाँ न बैठने की जगह है, न शौचालय और न ही पीने का पानी। यात्री बारिश और धूप में सड़क...

प्रस्तुति: ओमप्रकाश अम्बुज, मोना कश्यप
हर दिन हजारों मुसाफिर उम्मीद लेकर कटिहार के मनिहारी, कुरसेला और कोढ़ा बस स्टैंड पहुंचते हैं। कोई अपने बीमार पिता को देखने जा रहा है, कोई नौकरी की तलाश में तो कोई बच्चे के साथ मायके लौट रही महिला। लेकिन इन स्टैंडों पर उन्हें स्वागत नहीं, बल्कि बेवसी, अव्यवस्था और उपेक्षा मिलती है। सिर पर छत नहीं, बैठने को जगह नहीं, न शौचालय की सुविधा और न पीने का पानी। बारिश हो या धूप, यात्री अपने सामान सहित सड़क किनारे खड़े रहते हैं। क्या सुविधा के हकदार ये आम मुसाफिर यूं ही तरसते रहेंगे? यह बातें हिन्दुस्तान के बोले कटिहार संवाद के दौरान उभरकर सामने आईं।
कटिहार जिले के तीन प्रमुख बस स्टैंड - मनिहारी, कुरसेला और कोढ़ा, साल भर में लाखों का राजस्व सरकार को देते हैं, लेकिन यहां से रोज़ाना यात्रा करने वाले हजारों यात्रियों की स्थिति बेहद दयनीय है। यात्री सुविधाओं की भारी कमी, अव्यवस्था और प्रशासनिक उदासीनता के चलते ये बस स्टैंड अब ‘स्टैंड’ नहीं बल्कि सिर्फ एक ‘रुकावट’ बनकर रह गए हैं।
सुबह पांच बजे से लेकर रात आठ बजे तक इन बस स्टैंडों पर मुसाफिरों की भारी भीड़ उमड़ती है। भागलपुर, पूर्णिया, जोगबनी, सहरसा, मधेपुरा, रुपौली, धमदाहा समेत दर्जनों स्थानों के लिए यहां से बसें गुजरती हैं, लेकिन यात्रियों को न तो बैठने की जगह है, न ही सिर छुपाने को छत। बारिश हो या तेज धूप, यात्री सड़कों किनारे सामान सहित भीगते-सुलगते खड़े नजर आते हैं। महिलाओं, बुजुर्गों और बीमार लोगों के लिए तो यह असुविधा और भी पीड़ादायक होती है।
टॉयलेट और यूरिनल जैसी बुनियादी सुविधाएं तक नदारद हैं। महिलाओं के लिए यह स्थिति असहनीय बन जाती है। शुद्ध पेयजल की कोई व्यवस्था नहीं, रोशनी की व्यवस्था रात में अपर्याप्त और असुरक्षित महसूस कराती है। यहां तक कि जहां बसें रुकती हैं, वो जगह भी इतनी तंग है कि बस रुकते ही बाकी यातायात जाम में तब्दील हो जाता है। स्थानीय दुकानों की छतें और ठेले ही यात्रियों की अस्थायी छावनियां बन चुकी हैं। कई बार बारिश में यात्री अपने सामान के साथ भीग जाते हैं, कपड़े, दवाइयां और जरूरी कागजात खराब हो जाते हैं, जिससे उनकी यात्रा कठिन और तनावपूर्ण बन जाती है। यह दृश्य सिर्फ अव्यवस्था का नहीं, बल्कि सार्वजनिक सुविधाओं की वर्षों से चली आ रही उपेक्षा का दर्पण है। यह विडंबना ही है कि सरकार को भारी राजस्व देने वाले इन स्टैंडों को अब तक एक मॉडल बस स्टैंड का दर्जा तक नहीं मिला। समय आ गया है कि मनिहारी, कुरसेला और कोढ़ा जैसे अहम बस स्टैंड को सिर्फ 'राजस्व का केंद्र' नहीं, यात्री सुविधा केंद्र के रूप में विकसित किया जाए।
इनकी भी सुनिए
बस स्टैंड पर न तो छाया है, न पानी और न ही शौचालय की सुविधा। महिलाएं और बुजुर्ग सबसे ज्यादा परेशान होते हैं।
-नटवरलाल
भीषण गर्मी में सड़क किनारे खड़ा रहना पड़ता है। बारिश हो तो हालात और खराब हो जाते हैं। न छत है, न बैठने की जगह।
-मो. रियाजुल
हर बार चुनाव में वादे होते हैं कि बस स्टैंड सुधरेगा, लेकिन चुनाव के बाद कोई नहीं आता। दवाइयों के लिए निकलते हैं, और भीगकर लौटते हैं।
– डॉ. भोला प्रसाद
बस आते-आते आधे घंटे तक तपती धूप में खड़ा रहना पड़ता है। कोई शेड नहीं है। बुजुर्गों को बैठने तक की जगह नहीं मिलती।
-राजकुमार सिंह
हमें हर रोज़ कोढ़ा से पूर्णिया जाना होता है। न पानी, न सफाई, न सुरक्षा। रात में तो डर से महिलाएं खड़ी नहीं हो पातीं।
-रामप्रवेश सिंह
छोटे बच्चों के साथ सफर करना कठिन हो गया है। बस का इंतजार करते समय न टॉयलेट मिलता है, न कोई जानकारी।
-अरुण महतो
मनिहारी बस स्टैंड पर जरा सी बारिश होती है तो सारा मैदान कीचड़ में तब्दील हो जाता है। कीचड़ पार कर बस पकड़नी पड़ती है।
-जयप्रकाश यादव
हर बार जब कुरसेला जाता हूं, वही पुरानी बदहाली। बसें आती हैं, लोग दौड़ते हैं, जगह नहीं मिलती। कोई पूछने वाला नहीं।
-दिलशाद खान
रोशनी की हालत इतनी खराब है कि रात में कुछ दिखता ही नहीं। डर और असुरक्षा बनी रहती है। महिलाओं को इससे ज्यादा खतरा होता है।
-एसके निराला
यात्री सुविधाएं शून्य हैं, लेकिन टैक्स पूरा वसूला जाता है। बस स्टैंड सिर्फ बस रुकने की जगह नहीं, एक व्यवस्था का प्रतीक होना चाहिए।
– उमेश यादव
रात में सफर करने वाले यात्रियों को भारी परेशानी होती है। कोई गार्ड नहीं, कोई लाइट नहीं, कोई आश्रय नहीं। एक बार मोबाइल चोरी हो गई थी।
-मो. रमजानी
कोढ़ा बस स्टैंड पर सिर्फ दुकानें हैं, छाया नहीं। दुकानदारों की छतों के नीचे लोग छुपते हैं। इतनी बदहाली है कि परेशान हो जाते हैं।
-सुरेंद्र कुमार यादव
यात्री सूचना बोर्ड तक नहीं है। बस कब आएगी, कहां जाएगी - कोई नहीं बताता। ऐसे में छात्रों और मरीजों को बहुत परेशानी होती है।
-जयप्रकाश राय
सड़क पर बसों की भीड़ इतनी होती है कि पैदल चलना मुश्किल हो जाता है। यातायात जाम की स्थायी समस्या है। पार्किंग और बस-स्टॉप की योजना होनी चाहिए।
-शेख सियाज
महिलाओं के लिए शौचालय न होना सबसे बड़ी समस्या है। कई बार शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है। क्या महिलाओं की गरिमा की कोई कीमत नहीं?
- शेख सज्जाद
अगर इतने राजस्व वाले स्टैंड पर बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं, तो छोटे स्टैंडों की हालत सोचनीय है। सरकार को यहां एक मॉडल बस स्टैंड बनाना चाहिए, तभी स्थिति सुधरेगी। – सुरेश यादव
बोले जिम्मेदार
जिम्मेदार
मनिहारी बस स्टैंड के लिए उपयुक्त स्थान की तलाश की जा रही है, जहां यात्रियों को शेड, शुद्ध पेयजल, भोजनालय और सुरक्षा जैसी अत्याधुनिक सुविधाएं मिलें। मनिहारी को एक धार्मिक स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है, जिससे श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ेगी और स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा। इसके लिए प्रशासन और आम जनता का सहयोग ज़रूरी है। हमारा प्रयास है कि शीघ्र ही मनिहारी के नागरिकों को एक सुसज्जित बस स्टैंड की सौगात दी जाए। यह विकास यात्रियों और स्थानीय दोनों के लिए लाभकारी सिद्ध होगा।
— राजेश कुमार उर्फ लाखो यादव, मुख्य पार्षद, मनिहारी
शिकायत
1. बुजुर्ग, बीमार व महिलाएं घंटों ज़मीन पर बैठने को मजबूर। इसके कारण परेशानी होती है।
2. महिलाओं को सबसे ज़्यादा परेशानी, स्वच्छता की घोर अनदेखी। सुविधा नहीं है।
3. सिर पर छत नहीं, सामान भीग जाता है, यात्रियों की तकलीफ बढ़ जाती है।
4. शाम होते ही अंधेरा, जिससे महिलाओं और यात्रियों में असुरक्षा की भावना।
5. बस स्टैंड की जगह तंग, जिससे आए दिन जाम और हादसे की स्थिति बनती है।
सुझाव
1. छायादार प्रतीक्षालय, बैठने की समुचित व्यवस्था हो। इससे यात्रियों को राहत मिलेगी।
2. महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों को ध्यान में रखते हुए निर्माण हो। जिससे उनको सुविधाओं का लाभ मिले।
3. वाटर एटीएम या फ्री प्याऊ की व्यवस्था हो। जिससे पेयजल के लिए भटकना नहीं पड़े।
4. सुरक्षा और निगरानी के लिए रोशनी व कैमरे जरूरी हैं। महिला यात्री सुरक्षित रहेंगे।
5. सड़क पर बस खड़ी करने पर पाबंदी और व्यवस्थित बस लाइन हो। जाम से मुक्ति मिलेगी।
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