बोले भागलपुर: लहेरी समाज को अनुसूचित जाति में शामिल करे सरकार
बिहार के लहेरी समाज की आबादी कम हो रही है। शिक्षा और आर्थिक तंगी के कारण युवा पलायन कर रहे हैं और परंपरागत लाह की चूड़ियों का काम छोड़ रहे हैं। समाज के लोग सरकार से अनुसूचित जाति में शामिल करने और...
जिले में लहेरी समाज की आबादी कम है। परंपरागत काम नहीं मिलने और आर्थिक तंगी के चलते समाज के युवा पलयान कर रहे हैं। लाह से शृंगार संबंधित सामान बनाने वाले लहेरी समाज के लोग शिक्षा की कमी और आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण इस कला को छोड़ दूसरे क्षेत्र में जा रहे हैं। समाज के लोगों का कहना है कि बिहार में उनकी आबादी कम है। इन्हें सरकार का संरक्षण मिलना चाहिए। सरकार को लहेरी जाति को अनुसूचित जाति में शामिल करना चाहिए। ताकि सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सके। सत्ता में लहेरी समाज की भागीदारी नहीं होने से भी लोगों में नाराजगी है। समाज के लोगों का कहना है कि भले ही आबादी कम है। लेकिन सत्ता में भागीदारी होनी चाहिए। तभी समाज के लोग विकास के मुख्यधारा से जुड़ पायेंगे।
भागलपुर स्टेशन से कुछ दूरी पर लहेरी टोला मोहल्ला है। पहले सड़क के दोनों तरफ लहेरी समाज के लोग काफी संख्या में रहते थे। मोहल्ला में एक लहेरीटोला दुर्गा मंदिर है। लेकिन अब लहेरी टोला में समाज का एक परिवार रहता है। समाज के लोग दूसरे शहर या मोहल्लों में चले गये। मिरजानहाट, सबौर, नाथनगर, अलीगंज आदि मोहल्लों में लहेरी समाज के लोग रहते हैं। बिहार में बांका, अमरपुर, कहलगांव, असरगंज, संग्रामपुर, लहेरियासराय, दरभंगा, मधुबनी, कटिहार, गया और बिहारशरीफ में लहेरी समाज के लोगों की अच्छी आबादी है। पहले लहेरी समाज के लोगों की कई दुकानें शहर में हुआ करती थीं। लेकिन अब गिने-चुने दुकान ही रह गये हैं। समाज के लोगों का कहना है कि आर्थिक रूप से कमजोर रहने के कारण समाज के लोग दूसरे कामों से जुड़ गये हैं। सरकार को लहेरी जाति के लिए विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा करनी चाहिए। सत्ता में भी समाज के लोगों की भागीदारी होनी चाहिए।
लहेरी टोला के प्रेम कुमार ने बताया कि यह जाति मुख्य रूप से जनजाति में आता है। जो बबुल, पीपल आदि पेड़ों से लाह निकाल कर लाह की चूड़ियां बनाने का काम करते थे। शिक्षा का अभाव और आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण लोग इस कला को छोड़कर अन्य क्षेत्रों में चले गए। यह काम अब सीमित होता जा रहा है। लहेरी समाज में लाह का काम करने वाले व्यक्ति मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी तक ही सीमित रह गया है। जबकि यह कार्य 1970 से पहले बिहार के अधिकतर जिलों में होता था। आधुनिक युग में लाह की चूड़ियों की मांग भी कम होने लगी है। जिसके कारण भी इस उद्योग को काफी नुकसान पहुंचा है। जबकि कांच और लाह की चूड़ियां पहनना स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा माना गया है। लहेरी जाति के लोगों का आर्थिक विकास के मामले में पीछे रहना या अन्य जातियों की तुलना में कम विकसित होना एक जटिल समस्या है। कला का उचित मूल्य नहीं मिलने के कारण भी समाज में आर्थिक पिछड़ापन आया। इस कारोबार को सरकार के संरक्षण की जरूरत है। इस कला को बचाने के लिए सरकार को विशेष व्यवस्था करनी चाहिए। अगर लाह की चूड़ी को जीआई टैग मिल जाए तो दुनिया में इसकी अलग पहचान होगी और कला को भी संरक्षित रखा जा सकेगा।
अमित कुमार ने बताया कि बिहार में एक भी विधायक इस समाज के नहीं हैं। सत्ता में इस समाज की भी भागीदारी होनी चाहिए। समाज के लोगों को मुख्यधारा में लाने के लिए सरकार लहेरी जाति को अनुसूचित जाति में शामिल करे। अनुसूचित जाति में शामिल करने के साथ ही सरकार बिहार की पांच विधानसभा सीटों को लहेरी जाति के लिए आरक्षित करे। लहेरी समाज के लोगों की सरकारी नौकरियों में भी भागीदारी कम है। सरकार को लेहरी समाज के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए भी नि:शुल्क कोचिंग की व्यवस्था होनी चाहिए। अनुसूचित जाति में शामिल करने से युवाओं को नौकरी पाने का मौका मिलेगा। लहेरी टोला में अच्छी आबादी थी। लेकिन बहुत सा परिवार दूसरी जगहों पर चला गया। आज भी लहेरीटोला दुर्गामंदिर में अंतिम विदाई के समय लहेरी समाज की महिला ही खोईंछा भरती हैं।
लहेरीटोला के शंभू प्रसाद साह ने बताया कि पहले लहेरीटोला की पहचान समाज के लोगों से होती थी। लेकिन बहुत से परिवार दूसरी जगहों पर जाकर रहने लगे हैं। आर्थिक तंगी के चलते समाज के लोग अपना कारोबार नहीं कर पा रहे हैं। रोजगार नहीं मिलने से परिवार का भरण-पोषण करने में परेशानी होती है। सरकार को लहेरी समाज के लोगों को आर्थिक पैकेज देना चाहिए। ताकि समाज के लोग कारोबार कर सकें। अनुसूचित जाति में शामिल करने से सरकार की योजनाओं का लाभ समाज के लोगों को मिल पाएगा। समाज के बच्चों को बेहतर शिक्षा देने की व्यवस्था सरकार को करना चाहिए।
बोले जिम्मेदार
पहले लहेरी जाति पिछड़ा वर्ग में शामिल था। 2015 में इसे अतिपिछड़ा वर्ग में शामिल किया गया। इस समाज की आबादी बहुत कम है। समाज में गरीबी अधिक है। इसके चलते युवा उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते हैं। काम नहीं मिलने से समाज के लोगों का पलायन हो रहा है। सत्ता में भी लहेरी समाज की भागीदारी नहीं है। आर्थिक तंगी के चलते लोग परंपरागत काम को छोड़ दूसरे काम से जुड़कर परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं। सरकार लहेरी जाति को अनुसूचित जाति में शामिल करे। ताकि समाज के लोगों का विकास हो सके। महासंघ द्वारा लंबे समय से इसकी मांग की जा रही है।
शंकर प्रसाद साह, जिला सचिव, बिहार राज्य लाहकार (लहेरी) महासंघ
आर्थिक तंगी के चलते समाज के लोग पलायन कर रहे
शंकर प्रसाद साह ने बताया कि उनलोगों का मुख्य कारोबार लाख (लाह) से लहटी बनाने का रहा है। उनके पूर्वज लंबे समय तक इस काम से जुड़े रहे। लेकिन समय के साथ लाह की उपलब्धता की कमी और आर्थिक तंगी के कारण समाज के लोगों के समक्ष पारंपरिक पेशा से जुड़े रहना चुनौती बन गया है। लाख जिसे बोलचाल की भाषा में लाह भी कहते हैं। इसी से उनलोगों की पहचान लहेरी समाज के रूप में होती है। भागलपुर में लहेरीटोला का नाम भी उन्हीं लोगों के समाज के नाम पर रखा गया। जहां कभी लहेरी समाज के लोगों की बहुलता हुआ करती थी। कच्चा माल उपलब्ध नहीं होने से व्यवसाय प्रभावित हुआ। जिसके कारण धीरे-धीरे उनकी संख्या भी भागलपुर में कम होती चली गई। काफी लोग परिवार के भरण-पोषण एवं रोजगार की तलाश में भागलपुर और बिहार से पलायन को मजबूर हो गये।
अनुसूचित जाति में शामिल होने पर मिलेगा लाभ
प्रेम कुमार ने बताया कि बिहार राज्य लाहकार महासंघ द्वारा लहेरी जाति को अनुसूचित जाति में शामिल करने की मांग लंबे समय से की जा रही है। वर्तमान में लहेरी जाति को अति पिछड़ा वर्ग में रखा गया है। इसके चलते समाज के लोगों का पूरा विकास नहीं हो पा रहा है। अनुसूचित जाति में शामिल करने पर लहेरी जाति के लोगों को सरकार की सभी योजनाओं का लाभ मिल पाएगा। शिक्षा और नौकरी के क्षेत्र में युवाओं को काफी लाभ मिलेगा। समाज में बहुत गरीबी है। शिक्षा के क्षेत्र में भी यह समाज पिछड़ा हुआ है। सरकारी नौकरी में भी इस समाज के लोगों की कम भागीदारी है। इसके चलते समाज के लोगों को परिवार का भरण-पोषण करने में परेशानी हो रही है। गरीबी के चलते लोग अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं दे पा रहे हैं। अनुसूचित जाति में शामिल करने से समाज के लोगों को आरक्षण का लाभ मिलने लगेगा।
लहेरी जाति को मिले राजनीति हिस्सेदारी
अमित कुमार ने बताया कि भागलपुर में अभी भी लहेरी समाज के काफी लोग रहते हैं। जो आर्थिक रूप से कमजोर होने और सरकारी मदद के अभाव में दूसरे रोजगार से जुड़ने को विवश हो गये हैं। लहेरी समाज के उत्थान के लिए शिक्षा और आर्थिक रूप से मजबूत करने की जरूरत है। समाज के लोगों की सत्ता में भागीदारी मिलनी चाहिए। समाज के विकास के लिए सरकार को लोकसभा और विधानसभा में लहेरी जाति के लिए सीट आरक्षित करना चाहिए। चुनाव में सभी राजनीतिक दल उनके समाज के योग्य व्यक्ति को टिकट दे। इससे लहेरी समाज के लोग भी चुनाव जीतकर सदन तक पहुंच सकेंगे। इससे लहेरी समाज के उत्थान और विकास से जुड़े मुद्दे को सदन और सरकार के समक्ष मजबूती से रखा जा सकेगा।
कम ब्याज दर पर कर्ज के साथ प्रशिक्षण मिले
राजेश प्रसाद ने बताया कि लहेरी समाज पेड़ों से लाह निकालकर उसे एकत्रित करते थे। उसके बाद आग की मदद से लाह से लहटी, चूड़ी और शृंगार से जुड़े कई तरह के सामान तैयार किया जाता था। अतिपिछड़ा जाति में शामिल होने के बाद भी उनके समाज को आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाता है। बिहार लाहकार महासंघ द्वारा उन लोगों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की मांग की जा रही है। रोजगार के लिए सरकार को लहेरी समाज के व्यापारियों और युवाओं को कम ब्याज दर पर लोन मुहैया कराने के साथ प्रशिक्षण की व्यवस्था करनी चाहिए। इससे युवा और भावी पीढ़ी अपने पेशा से जुड़कर आर्थिक रूप से सशक्त होंगे। सरकार को लहेरी समाज को मुख्यधारा में शामिल करने की पहल करनी चाहिए।
इनकी भी सुनिए
लाख (लाह) से काम करने वाले लहेरी समाज की आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति कमजोर होने के कारण जाति के लोगों को इस कला को छोड़कर अन्य कारोबार से जुड़ना मजबूरी बन गयी है। कच्चे माल की उपलब्धता का अभाव और सरकार से मदद और संरक्षण नहीं मिल पाने के कारण यह काम सीमित हो गया है।
-रामजी प्रसाद
1970 के पहले बिहार के अधिकतर जिलों में लहेरी समाज की कला से व्यवसाय भी फल-फूल रहा था। वर्तमान में लहेरी समाज में लाख (लाह) का काम करने वाले बिहार में मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मधुबनी और सीतामढ़ी तक ही समिति रह गये हैं। सरकार द्वारा इस कला को संरक्षित करने की आवश्यकता है।
-शंभू प्रसाद साह
वर्तमान समय में महिलाओं की रुचि प्लास्टिक और मेटल की चूड़ियों में अधिक हो गई है। इसके कारण लहेरी समाज के उद्योग को काफी नुकसान पहुंचा है। कांच और लाख (लाह) की चूड़ियां स्वास्थ्य के लिए भी अच्छी मानी गयी है।
-मुरारी प्रसाद साह
पश्चिमी सभ्यता के बढ़ने से भारतीय संस्कृति से जुड़ी कला और रोजगार को काफी नुकसान पहुंचा है। लहेरी समाज के कारीगर भी कच्चे माल की उपलब्धता कम होने और महंगाई बढ़ने से आर्थिक रूप से प्रभावित हो गये हैं। सरकार उनके व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए सहयोग करे।
-श्रवण साह
लाह को आग की मदद से पिघलाकर चूड़ी-लहटी आदि तैयार किया जाता है। लहेरी समाज की यह कला विलुप्त होने के कगार पर पहुंच रही है। इसके कारण चाहकर भी नई पीढ़ी इस कारोबार से जुड़ने में कतरा रही है। सरकार को आर्थिक मदद करनी चाहिए।
-फंटूश साह
आज लहटी चूड़ी उद्योग की स्थिति काफी कमजोर हो गई है। इसका कारण महंगाई का बढ़ना और कच्चे माल की उपलब्धता कम होना है। इससे यह स्वरोजगार प्रभावित हो रहा है। लहेरी समाज के सशक्तीकरण के लिए राजनीतिक संरक्षण की आवश्यकता है।
-शंकर साह
सरकार लहेरी समाज के लोगों को रोजगार के लिए प्रोत्साहित करे। सरकार की सभी योजनाओं का लाभ समाज के लोगों को मिलना चाहिए। लहेरी समाज आर्थिक रूप से बहुत कमजोर है। कला को संरक्षित रखने के लिए उन्हें सरकार से आर्थिक सहायता मिलनी चाहिए।
-बबलू कुमार साह
जिस तरह से भागलपुर में सिल्क उद्योग, जर्दालू आम और कतरनी के विकास के लिए काम किया जा रहा है। उसी तरह लहेरी समाज के पारंपरिक पेशे को संरक्षित करने के लिए सरकार को इस कला के प्रशिक्षण कार्यक्रम की व्यवस्था करनी चाहिए। ताकि प्रशिक्षित युवक स्वरोजगार से जुड़ सकें।
-विक्रम कुमार साह
लहेरी जाति का आर्थिक विकास के मामले में पीछे होना बड़ी समस्या है। जीवन स्तर को बेहतर करने के लिए शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ना होगा। सरकार को लहेरी समाज को बुनियादी सुविधा मुहैया कराने के साथ स्वास्थ्य सेवा की व्यवस्था करनी चाहिए।
-राजेश कुमार
स्टेशन रोड में फुटपाथ पर दुकान लगाकर चूड़ी-लहटी बेचते हैं। सरकार को लहेरी समाज के विकास और रोजगार का इंतजाम करना चाहिए। समाज के पढ़े-लिखे बच्चों को सरकारी नौकरी में आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। सरकार को समाज के विकास के लिए पहल करनी चाहिए।
-रूखमणि देवी
लहेरी समाज के लोग भी अन्य समाज के लोगों की तरह आगे बढ़ सकें, इसके लिए सरकार को लहेरी जाति को अनुसूचित जाति में शामिल करना चाहिए। ताकि उन्हें नौकरी और शिक्षा में आरक्षण मिल सके। वर्तमान समय में करीब दो हजार से अधिक परिवार इस कारोबार पर आश्रित हैं।
-दिलीप साह
जिस प्रकार मखाना और जर्दालू आम समेत अलग-अलग चीजों को संरक्षित करने के लिए जी आई टैगिंग की व्यवस्था की गई है। उसी प्रकार लाह (लाख) के चूड़ी को भी जीआई टैग मिलना चाहिए। ऐसा होने पर यह व्यवसाय आगे बढ़ेगा और पूरी दुनिया में इस कला की अलग पहचान बनेगी।
-अमन कुमार
शिकायतें
1. लहेरी समाज को उनकी कला का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है। जिसके कारण उन्हें आर्थिक पिछड़ेपन का सामना करना पड़ता है। लहेरी समाज इस पेशे से दूर होता जा रहा है।
2. लहेरी समाज की आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति कमजोर है। जिसके कारण परिवार के भरण के लिए उन्हें इस कला को छोड़कर अन्य कारोबार से जुड़ना मजबूरी है।
3. आर्थिक रूप से कमजोर होने, कच्चा माल की उपलब्धता कमी और उचित मजदूरी नहीं मिलने के कारण लहेरी समाज के लोग भागलपुर और बिहार से पलायन कर रहे हैं।
4. कई वर्षों से लहेरी समाज सरकार से अनुसूचित जाति में शामिल करने की मांग कर रहा है। आबादी कम होने के बाद भी अब तक सरकार उनकी मांग पर ध्यान नहीं दे रही है।
5. आर्थिक तंगी के चलते पारंपरिक कला से दूर होकर लहेरी समाज को दूसरे व्यवसाय से जुड़ना पड़ रहा है। कभी लाह का सामान तैयार करते थे। अब दूसरों से खरीदकर बेचना पड़ता है। जिससे मुनाफा भी कम होता है।
सुझाव
1. सरकार लहेरी जाति की स्थिति को बेहतर करने के लिए अनुसूचित जाति में शामिल करे। ताकि समाज के लोगों को नौकरी, शिक्षा और सरकारी योजनाओं का लाभ मिले।
2. लहेरी समाज के जीवन स्तर को बेहतर करने के लिए अच्छी शिक्षा मिलनी चाहिए। सरकार लहेरी समाज को बुनियादी सुविधा मुहैया कराने के साथ बच्चों के बेहतर शिक्षा की व्यवस्था करे।
3. सभी राजनीतिक दलों को लहेरी जाति को चुनाव में प्रत्याशी बनाने में प्राथमिकता देनी चाहिए, ताकि राजनीति और सत्ता में भागीदारी पर समाज की बातों को मजबूती से रखा जा सके।
4. सरकार स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए कई तरह की योजना चला रही है। लहेरी समाज की पारंपरिक कला को संरक्षित करने के लिए सरकार को प्रशिक्षण और आर्थिक मदद देनी चाहिए।
5. व्यवसाय को बढ़ाने और रोजगार के लिए सरकार को लहेरी समाज के व्यापारियों और युवाओं को कम ब्याज दर पर लोन मुहैया कराना चाहिए। ताकि इस कला को जीवंत रखा जा सके।
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