बोले कटिहार: सपना है तकनीकी शिक्षा, दूरी और खर्च बनी है दीवार
कटिहार के हजारों छात्र-छात्राएं हर साल तकनीकी शिक्षा का सपना लेकर पॉलिटेक्निक कॉलेज की सीमित सीटों के सामने हार मान जाते हैं। अनुमंडल स्तर पर पॉलिटेक्निक कॉलेज खोलने की मांग की जा रही है, जिससे...

प्रस्तुति: ओमप्रकाश अम्बुज, मणिकांत रमण हर साल कटिहार के हजारों छात्र-छात्राएं तकनीकी शिक्षा का सपना लिए पॉलिटेक्निक कॉलेज की सीमित सीटों के आगे हार मान लेते हैं। किसी के पास आर्थिक मजबूरी है, तो किसी के सामने दूरी की दीवार। प्रतिभा होते हुए भी अवसरों का अभाव उन्हें पीछे धकेल देता है। ऐसे में यदि अनुमंडल स्तर पर पॉलिटेक्निक कॉलेज खुलते हैं तो यह न सिर्फ बच्चों के भविष्य को नई राह देगा, बल्कि कटिहार के गांव-गांव तक हुनर और आत्मनिर्भरता की रोशनी भी पहुंचेगी। अब समय है सपनों को पंख देने का, तकनीकी शिक्षा को घर के दरवाजे तक लाने का।
यह बातें हिन्दुस्तान के बोले कटिहार संवाद में उभर कर सामने आईं। कटिहार जिले के हजारों छात्र-छात्राएं हर साल एक बेहतर तकनीकी शिक्षा का सपना लेकर घर से निकलते हैं, लेकिन सीमित सीटें और संसाधनों की कमी उनके रास्ते में दीवार बन जाती है। जिले में अभी सिर्फ एक ही राजकीय पॉलिटेक्निक कॉलेज है, जो हर वर्ष सैकड़ों विद्यार्थियों को अवसर तो देता है, लेकिन हजारों की भीड़ उस एक दरवाजे पर दस्तक देती रह जाती है। अब समय आ गया है जब तकनीकी शिक्षा को केवल एक शहर तक सीमित न रखकर इसे अनुमंडल स्तर तक पहुंचाया जाए। अगर फलका, बारसोई, कुरसेला, मनिहारी जैसे अनुमंडलों व प्रखंडों में राजकीय पॉलिटेक्निक कॉलेज खोले जाएं, तो यह कटिहार के लिए केवल एक शैक्षणिक विस्तार नहीं होगा, बल्कि यह सामाजिक बदलाव की दिशा में भी ऐतिहासिक कदम साबित होगा। इससे उन छात्रों को अवसर मिलेगा जो आर्थिक, सामाजिक या भौगोलिक कारणों से दूरस्थ शहरों में जाकर पढ़ाई नहीं कर सकते। यह कदम गरीब, दलित, पिछड़े और ग्रामीण तबके के बच्चों के जीवन को एक नई दिशा देगा। तकनीकी शिक्षा से बच्चों के हाथों में होता है हुनर और सोच में सृजन तकनीकी शिक्षा केवल किताबों का ज्ञान नहीं देती, यह बच्चों के हाथों में हुनर, सोच में सृजन और जीवन में आत्मनिर्भरता भरती है। जब बच्चा वेल्डिंग सीखता है, ड्राफ्टिंग करता है, मशीन को समझता है, तो वह न केवल पढ़ाई कर रहा होता है, बल्कि भविष्य की नींव रख रहा होता है। ऐसे में यदि अनुमंडल स्तर पर संस्थान स्थापित होते हैं, तो स्थानीय स्तर पर हुनरमंद युवाओं की फौज तैयार होगी। पढ़ने की इच्छा रखने वाले कई छात्र आज इसलिए पीछे रह जाते हैं क्योंकि सीटें कम हैं, दूरी ज्यादा है और परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर है। बेटियों के लिए तो यह स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण हो जाती है। अनुमंडल स्तर पर कॉलेज खुलेंगे तो बेटियां भी बिना डर और दूरी के शिक्षा की रोशनी से रोशन हो सकेंगी। पॉलिटेक्निक कॉलेज की उठी मांग कटिहार। मैं वेल्डर बनना चाहती थी… मशीनों को खोलना-जोड़ना मुझे बचपन से अच्छा लगता है। लेकिन घर से दूर पटना या पूर्णिया भेजने की बात पर पापा चुप हो गए। मां डर गईं। और मेरा सपना वहीं रुक गया… यह कहना है बारसोई की 17 वर्षीय रूबी कुमारी का, जो 10वीं के बाद पॉलिटेक्निक में पढ़ना चाहती थी। कटिहार जिले में अभी एकमात्र राजकीय पॉलिटेक्निक कॉलेज है, जो सैकड़ों बच्चों का भविष्य संवार रहा है। लेकिन हजारों की भीड़ में एक सीट मिलना हर किसी की किस्मत में नहीं होता। खासकर गांवों की लड़कियों के लिए, जिनके रास्ते में सामाजिक सोच, दूरी और सुरक्षा सबसे बड़ी दीवार बन जाते हैं। अगर अनुमंडल स्तर पर - जैसे फलका, कुरसेला, बारसोई, मनिहारी - में राजकीय पॉलिटेक्निक कॉलेज खोले जाएं, तो रूबी जैसी हजारों बेटियों के सपने रुकेंगे नहीं, उड़ान भरेंगे। बेटे को तो किसी तरह बाहर भेज भी दें, लेकिन बेटी के लिए गांव के पास कॉलेज हो तभी ठीक है, यह कहना है कुरसेला के किसान गोपाल मंडल का। तकनीकी शिक्षा केवल पढ़ाई नहीं, बेटियों को हुनरमंद और आत्मनिर्भर बनाने की राह है। नजदीक कॉलेज होने से वे डर, दूरी और पैसे की बंदिशों से आज़ाद होकर अपनी पहचान बना सकेंगी। कटिहार की बेटियों को अब सपनों से नहीं, अवसरों से जोड़े जाने की जरूरत है। यही वक्त है जब सरकार तकनीकी शिक्षा को गांवों तक पहुंचाकर एक नई पीढ़ी को सशक्त बनाने का संकल्प ले। इनकी भी सुनिए कटिहार जैसे सीमांत जिले में अगर अनुमंडल स्तर पर पॉलिटेक्निक कॉलेज खुलते हैं, तो इससे युवाओं को बहुत फायदा मिलेगा। -जयंत राज एकमात्र पॉलिटेक्निक कॉलेज में दाखिला मिलना हर किसी के बस की बात नहीं। यदि हर अनुमंडल में ऐसा संस्थान हो, तो आत्मनिर्भर बन सकते हैं। -आदित्य कुमार मैंने खुद दो साल पहले पॉलिटेक्निक में आवेदन किया था, लेकिन सीट न मिलने के कारण बाहर जाना पड़ा। इसके कारण आर्थिक बोझ बढ़ा। -राजदीप कुमार तकनीकी शिक्षा वह नींव है, जिस पर आत्मनिर्भर भारत की इमारत खड़ी होगी।अनुमंडल में भी एक आधुनिक पॉलिटेक्निक खुले। -अनुपम कुमार घर की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण बहुत से छात्र बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं। अनुमंडल में कॉलेज होगा, तो पढ़ाई आसान होगी। -दर्शन कुमार पढ़ाई का सपना लेकर चलने वाले बच्चों के लिए सीट की कमी सबसे बड़ी बाधा बन जाती है। क्या तकनीकी शिक्षा केवल शहर के बच्चों के लिए है? -अभिषेक कुमार तकनीकी शिक्षा के बिना आज के दौर में आत्मनिर्भर बनना मुश्किल है। मुझे खुशी होगी अगर मेरे क्षेत्र में पॉलिटेक्निक कॉलेज खुले। -संतोष कुमार हर साल पॉलिटेक्निक में नामांकन के लिए हजारों छात्र आवेदन करते हैं लेकिन सीमित सीटें सपना तोड़ देती हैं। -निलेश कुमार हम जैसे छात्रों के लिए तकनीकी शिक्षा एक जरिया है, जिससे हम परिवार और समाज दोनों की स्थिति सुधार सकते हैं। -नीरज कुमार अनुमंडल स्तर पर पॉलिटेक्निक कॉलेज स्थापित होते हैं, तो न केवल शिक्षा का स्तर बढ़ेगा, बल्कि समाज में बदलाव भी आएगा। -अनमोल कुमार हर बच्चा कुछ बनने का सपना लेकर चलता है, लेकिन तकनीकी शिक्षा के सीमित संसाधन कई सपनों को अधूरा छोड़ देते हैं। -तुषार कुमार मैं खुद तकनीकी शिक्षा में रुचि रखता हूं, लेकिन अब तक कटिहार में पर्याप्त अवसर नहीं मिले। एक कॉलेज होने से ही सैकड़ों छात्र पीछे रह जाते हैं। -सुधांशु कुमार हर बार जब पॉलिटेक्निक का एडमिशन निकलता है, हजारों छात्र उम्मीद लगाते हैं। पर 90% छात्र सिर्फ इसलिए वंचित रह जाते हैं। -पलटू कुमार लेकिन शहर जाकर पढ़ना आसान नहीं होता। अगर हमारे अनुमंडल में पॉलिटेक्निक कॉलेज खुल जाए तो हम भी बिना डर अपने सपने पूरे कर सकें। - पलटू कुमार लड़कियों के लिए तकनीकी शिक्षा एक नया रास्ता खोल सकती है, लेकिन दूरी, सुरक्षा और संसाधनों की कमी हमारे लिए बड़ी दीवार है। -सोनम कुमारी हमारे समाज में अब भी यह सोच है कि बेटियां बाहर जाकर तकनीकी शिक्षा नहीं ले सकतीं। लेकिन अगर कॉलेज पास में हो, तो पढ़ाई में रुकावट नहीं आएगी। -मुन्नी कुमारी बोले जिम्मेदार कटिहार जैसे सीमांत जिले में तकनीकी शिक्षा का विस्तार बेहद जरूरी है। हमारे युवा प्रतिभाशाली हैं, लेकिन संसाधनों की कमी उनके सपनों को रोक देती है। एकमात्र पॉलिटेक्निक कॉलेज में सीमित सीटें होने के कारण हजारों छात्र-छात्राएं हर साल वंचित रह जाते हैं। मैं खुद इस मुद्दे को विधानसभा में उठा चुका हूं और तकनीकी शिक्षा विभाग से आग्रह किया है कि अनुमंडल स्तर पर नए राजकीय पॉलिटेक्निक कॉलेज खोले जाएं। इससे ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को घर के पास ही गुणवत्तापूर्ण तकनीकी शिक्षा मिल सकेगी, और वे आत्मनिर्भर भारत की दिशा में मजबूती से आगे बढ़ सकेंगे। -तारकिशोर प्रसाद, पूर्व डिप्टी सीएम एवं भाजपा विधायक, कटिहार शिकायत 1. एक पॉलिटेक्निक कॉलेज होने से हजारों छात्र वंचित रह जाते हैं। 2. सीटें मात्र कुछ सौ ही हैं जिससे भारी असमानता है। 3. ग्रामीण इलाकों से आने वाले छात्रों के लिए कोई परिवहन सुविधा नहीं है, जिससे वे समय पर कॉलेज नहीं पहुंच पाते। 4. कॉलेज में लैब उपकरण और प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी है। इससे परेशानी होती है। 5. बेटियों को तकनीकी शिक्षा दिलवाने में परिवार झिझकता है, क्योंकि नजदीक कोई सुरक्षित संस्थान नहीं है। सुझाव 1. अनुमंडल स्तर पर पॉलिटेक्निक कॉलेज की स्थापना की जाए। 2. सीटों की संख्या दोगुनी की जाए, ताकि हर इच्छुक छात्र को नामांकन का मौका मिल सके। 3. लड़कियों के लिए अलग होस्टल और सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित हो, ताकि वे भी निडर होकर पढ़ाई कर सकें। 4. उद्योगों से लिंक कर व्यावहारिक प्रशिक्षण (इंटरनशिप) की व्यवस्था होे। 5. प्रत्येक स्कूल में करियर काउंसलिंग सत्र हो, जिससे 10वीं के बाद बच्चे तकनीकी शिक्षा के विकल्पों को समझ सकें।
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।