दलित व पिछड़े मुहल्ले में स्कूलों की कमी
सरकार शिक्षा पर ध्यान दे रही है, विशेषकर दलित और पिछड़े वर्ग के बच्चों के लिए। मध्याह्न भोजन, पाठ्य पुस्तकें और छात्रवृत्ति जैसी सुविधाएँ दी जा रही हैं, लेकिन स्कूलों की कमी के कारण बच्चों को शिक्षा...

खोदावंदपुर, निज संवाददाता। सरकार शिक्षा पर काफी जोर दे रही है। ख़ासकर समाज के कमजोर वर्ग के बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। बच्चों को मध्याह्न भोजन, पाठ्य पुस्तकें, पोशाक राशि, छात्रवृत्ति राशि उपलब्ध करवाई जा रही है। परन्तु, दलित व पिछड़ा वर्ग बाहुल्य मुहल्लों में स्कूल क़ी कमी है जिसके चलते ऐसे मुहल्ले के छोटे-छोटे बच्चे जल्दी स्कूली शिक्षा से जुड़ नहीं पा रहे हैं। ऐसे मुहल्ले के छोटे बच्चों को पढ़ाई के लिए घर से दूर जाना पड़ता है जिससे न केवल बच्चों को ही बल्कि उनके अभिभावकों को भी परेशानी होती है।
बताते चलें कि वर्ष 2006 में कई प्राथमिक स्कूल की स्थापना की गई थी। दलित व अत्यंत पिछड़ा वर्ग बाहुल्य मुहल्ले में खोले गए ऐसे स्कूलों को अपनी जमीन नसीब नहीं हुई। भूमि के अभाव में ऐसे स्कूलों को दूसरे स्कूलों में मर्ज कर दिया गया। मेघौल पंचायत का प्राथमिक विद्यालय भीड़ बाबा स्थान, इसी पंचायत का प्राथमिक विद्यालय पासवान टोला, मलमल्ला, फफौत पंचायत का प्राथमिक विद्यालय दास टोला मटिहानी,बरियारपुर पश्चिमी पंचायत का प्राथमिक विद्यालय मटकोरा टोला, इसी पंचायत का प्राथमिक विद्यालय सुबी टोला, दौलतपुर पंचायत का प्राथमिक विद्यालय बेगमपुर पट्टी एवं सागी पंचायत का प्राथमिक विद्यालय इसमैला टोला जैसे स्कूलों को स्थापना के कुछ सालों के बाद ही भूमिहीन बताकर विभाग ने दूसरे स्कूलों में मर्ज कर दिया। इसके कारण दलित व पिछड़े वर्ग बाहुल्य मुहल्लों में पहले की तरह कोई स्कूल नहीं रहा। इस मुहल्ले के सैकड़ो बच्चों को पढ़ने के लिए अपने घर से एक से डेढ़ किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ रही है।
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