रजौन में पिछले चार दिनों से देखने को मिल रही है, विलुप्त हो रही रामलीला की झलक।
माला उठाने की पौराणिक परंपरा का बखूबी निर्वहन कर रहे है ग्रामीण, उमड़ रही है श्रद्धालुओं की भीड़।माला उठाने की पौराणिक परंपरा का बखूबी निर्वहन कर रहे

रजौन(बांका)। निज संवाददाता रामलीला की विलुप्त हो रही सांस्कृतिक व आध्यात्मिक परम्परा की झलक रजौन थाना मार्ग स्थित राजवनेश्वरनाथ महादेव मंदिर के यज्ञशाला के निकट पिछले 24 जून से ही यहां देखने को मिल रही है। काशी-वाराणसी से आए महंत पंडित श्रीकांत महाराज और कथाव्यास पंडित अनुज द्विवेदी सहित कई विद्वतजन के सानिध्य में काशी के सुप्रसिद्ध धर्म प्रचारक रामलीला मंडली के 25 कलाकारों द्वारा इस रामलीला का आयोजन प्रतिदिन एक सत्र में रात्रि 7 बजे से 10 बजे तक हो रहा है इस रामलीला में माला उठाने की पौराणिक परंपरा भी देखने को मिल रही है। समाज के लोग धर्म के प्रचार को लेकर काफी उत्साहित भी है।
10 दिवसीय भव्य रामलीला महोत्सव परवान पर है, यहां लीला के दर्शन व कथा प्रसंग के श्रवण के लिए रजौन बाजार सहित आसपास से काफी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। रामलीला के तीसरे दिन गुरुवार की रात्रि सीता स्वयंवर एवं रावण-बाणासुर संवाद का जीवंत मंचन किया गया, जबकि चौथे दिन शुक्रवार को परशुराम संवाद एवं श्रीसीता-राम विवाह प्रसंग का मंचन हुआ। माला उठाने की पौराणिक परंपरा का निर्वहन कर रहे है, कुछ धार्मिक विचार धारा के ग्रामीण रामलीला में माला उठाने की परंपरा, जिसे "माला उठाना" या "भोजन का खर्च" भी कहा जाता है। इसमें गाँव या क्षेत्र के लोग स्वेच्छा से रामलीला मंडली के कलाकारों के भोजन और अन्य खर्चों के लिए धन या वस्तुएँ दान करते हैं। यह एक सामुदायिक भागीदारी और समर्थन का प्रतीक है।रामलीला, रामायण की कथाओं का पारंपरिक नाट्य रूपांतरण है। रामलीला के आयोजन में कलाकारों, संगीतकारों, और अन्य सहयोगियों की एक बड़ी टीम शामिल होती है। इन सभी लोगों के भोजन, आवास, और अन्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, समुदाय के लोग "माला उठाना" नामक एक प्रथा में भाग लेते हैं।
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